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'जिला अदालत से दूर रहे सुप्रीम कोर्ट...', इलाहाबाद हाई कोर्ट बोला- 'ये हमारे अधिकार क्षेत्र में आता है'

Allahabad High Court: पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ, जेवी चंद्रन और जॉयमाल्य बागची भी शामिल हैं, यह जांच कर रही है कि जिला न्यायपालिका में डायरेक्ट रिक्रूट, प्रमोट होने वालों और लेटरल एंट्री वालों के लिए एक जैसी कोटा पॉलिसी होनी चाहिए या नहीं.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट (PHOTO-Wikipedia)

इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट एक मुद्दे पर आमने-सामने हैं. दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य के न्यायिक अधिकारियों की सेवा से जुड़े नियम बनाने को लेकर दोनों अदालतों के विचार अलग हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वो इस मामले में कोई दखल न दे.

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मामलों में देरी के लिए लगी थी फटकार

हाल ही में कई मामलों में फैसला सुनाने में हुई देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को फटकार लगाई थी. इस वजह से कई बार दोनों अदालतों में मतभेद जगजाहिर हो चुके हैं. हालिया अधिकार के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा 

सुप्रीम कोर्ट को कैरियर न्यायिक अधिकारियों और सीधी भर्ती वाले जिला जजों के लिए पर्याप्त प्रमोशन के अवसर सुनिश्चित करने के लिए रूपरेखा तैयार करने का काम हाई कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए. आर्टिकल 227(1) हाई कोर्ट को जिला न्यायपालिका पर सुपरीटेंडेंस देता है.

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इस मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा 

हाई कोर्ट्स को संविधान के तहत मिले उनके अधिकार और कर्तव्य से वंचित क्यों किया जाए? अब समय है कि सभी हाई कोर्ट्स को मजबूत किया जाए, न कि उन्हें कमजोर किया जाए. 

हम कोई अतिक्रमण नहीं कर रहे

हाइकोर्ट की इन चिंताओं का जवाब देते हुए, चीफ जस्टिस बीआर गवई ने साफ किया कि बेंच का हाई कोर्ट्स के अधिकार को कम करने का कोई इरादा नहीं है. CJI ने कहा, 

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हम नाम रिकमेंड करने में हाई कोर्ट्स का अधिकार नहीं छीनेंगे. लेकिन हर हाई कोर्ट के लिए अलग-अलग पॉलिसी क्यों होनी चाहिए? हमारा तो इनडायरेक्टली भी उनका अधिकार छीनने का कोई इरादा नहीं है.

इसी बेंच के सदस्य जस्टिस सूर्यकांत भी है. जस्टिस सूर्यकांत ही अगले चीफ जस्टिस बनने वाले हैं. उन्होंने भी हाई कोर्ट को भरोसा दिलाते हुए कहा कि आपस में सीनियरिटी पर विचार करने का कोई सवाल ही नहीं है. यह एक जनरल डायरेक्शन होगा. हमारा मकसद किसी का हक छीनना नहीं है. 

उन्होंने कहा कि ऐसे कई राज्य हैं जहां एक व्यक्ति सिविल जज जूनियर डिवीजन के तौर पर जॉइन करता है. वरिष्ठता-योग्यता के आधार पर उस व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट जज बनने में 20 साल लग जाते हैं. वहीं एक वकील जिसकी प्रैक्टिस 10 साल की है, वो एक एग्जाम पास कर के डिस्ट्रिक्ट जज बन सकता है. एक तीसरी कैटेगरी भी है जिसमें न्यायिक अधिकारी सीमित तौर पर डिपार्टमेंटल कम्पटेटिव एग्जाम देकर डिस्ट्रिक्ट जज बन सकते हैं.

सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि हमारा हाई कोर्ट की शक्तियां छीनने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन सीजेआई ने ये भी पूछा कि इलाहबाद हाई कोर्ट न्यायिक अधिकारियों के लिए एक समान सेवा नियम के इतने खिलाफ क्यों है? और इसके क्या सुझाव हैं?

इस पर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा 

मैं कोई सुझाव नहीं दे रहा हूं. बल्कि मैं सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर दखल न देने के लिए प्रेरित कर रहा हूं.

पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ, जेवी चंद्रन और जॉयमाल्य बागची भी शामिल हैं, यह जांच कर रही है कि जिला न्यायपालिका में डायरेक्ट रिक्रूट, प्रमोट होने वालों और लेटरल एंट्री वालों के लिए एक जैसी कोटा पॉलिसी होनी चाहिए या नहीं. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका असर जजों के प्रमोशन और करियर में ठहराव पर पड़ता है. पंजाब और हरियाणा और कलकत्ता सहित अन्य हाई कोर्ट के वकीलों ने डेटा पेश किया जिसमें दिखाया गया कि प्रमोट होने वालों और डायरेक्ट रिक्रूट के बीच का अंतर कम हो रहा है, जिससे पता चलता है कि हाई कोर्ट में प्रमोशन के लिए "कंसीडरेशन जोन" में अब दोनों तरह के लोग शामिल हैं. अब बेंच अगले हफ्ते इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी.

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