इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) पर एक अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का मकसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों के आपसी सहमति से बने रोमांटिक संबंध को अपराध बनाना नहीं है. कोर्ट ने यह बात एक नाबालिग लड़की के साथ रेप के आरोप में गिरफ्तार युवक को जमानत देते हुए कही.
POCSO कानून पर HC का बड़ा बयान, 'किशोरों के रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाने के लिए नहीं'
Allahabad High Court ने 16 साल से उम्र की लड़की के साथ रेप के मामले में आरोपी को जमानत दे दी है. हाई कोर्ट ने बेल ऑर्डर में कहा कि POCSO Act का मकसद नाबालिगों को यौन उत्पीड़न से बचाना है. जानिए कोर्ट ने किस आधार पर आरोपी को जमानत दी.
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यह मामला चंदौली जिले के चकिया थाने का है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, 18 साल के एक लड़के पर एक 16 साल से कम उम्र की एक लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा. इस मामले में आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 137(2), 87, 65(1) और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4(2) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक युवक के वकील ने कोर्ट में बताया कि लड़का और लड़की, दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे. वकील ने तर्क दिया कि यह 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़की के बीच आपसी सहमति से बने रोमांटिक संबंध का मामला है. लड़की की उम्र स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार 16 साल से थोड़ी कम है, जबकि लड़का 18 साल का है.
वकील ने यह भी कहा कि लड़की पक्ष की तरफ से FIR दर्ज कराने में लगभग 15 दिन की देरी की गई, जिसका कोई साफ कारण नहीं बताया गया. इसके अलावा मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की से किसी तरह की जबरदस्ती की पुष्टि नहीं हुई. ये तर्क भी दिया गया कि आरोपी 7 मार्च, 2025 से जेल में बंद है और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है.
सुनवाई के बाद कोर्ट ने माना कि इस तरह के मामलों में किशोरों के बीच ‘आपसी सहमति को नजरअंदाज करना न्याय के साथ अन्याय’ होगा. जस्टिस कृष्ण पहल की बेंच ने कहा,
"पॉक्सो एक 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था. आजकल यह अक्सर उनके शोषण का एक जरिया बन गया है. इस एक्ट का मकसद किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए रोमांटिक संबंधों को अपराध घोषित करना नहीं था. हालांकि, इसे हरेक मामले के तथ्यों और हालातों के तहत देखा जाना चाहिए."
कोर्ट ने आगे कहा,
“जमानत देते समय प्यार में आपसी सहमति से बने संबंध के तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि अगर पीड़िता के बयान को नजरअंदाज किया जाता है और आरोपी को जेल में यातनाएं झेलने के लिए छोड़ दिया जाता है तो यह न्याय के साथ खिलवाड़ होगा.”
इन सभी बातों पर गौर करते हुए कोर्ट ने आरोपी युवक को जमानत दे दी. कोर्ट ने केस की मेरिट पर कुछ नहीं कहा और साफ किया कि यह फैसला केस की सुनवाई को प्रभावित नहीं करेगा और ट्रायल कोर्ट स्वतंत्र रूप से अपना निर्णय लेगा.
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