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रेप के 4 दोषियों की मौत हो गई, तब हुई सजा... 42 साल बाद फैसला सुनाने पर हाई कोर्ट ने मांगी माफ़ी

Allahabad High Court News: जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डॉ. गौतम चौधरी की दो जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने मामले पर फ़ैसले में हुई देरी पर खेद जताया. क्या कहा?

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फ़ैसला देने में 42 साल की देरी पर खेद जताया है. (फ़ोटो - इंडिया टुडे)

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक मामले पर फ़ैसला देने में हुई देरी को लेकर खेद जताया है. दो महिलाओं के रेप और उनमें से एक की हत्या के सिलसिले में स्थानीय कोर्ट ने 4 दोषियों को सज़ा सुना दी थी. लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट को इस मामले में फ़ैसला देने में 42 साल लग गए. इस रेप-मर्डर केस में दोषी 4 आरोपियों की मौत हो चुकी है. अब हाई कोर्ट ने एक ज़िंदा बचे 74 साल के दोषी को ताउम्र जेल भेजने का फ़ैसला सुनाया है.

घर में घुसकर रेप-मर्डर किया

बार एंड बेंच की ख़बर के बताती है कि मामला अप्रैल 1979 का है. 5 लोग ललितपुर के बटवाहा गांव में एक घर में घुसे. कीमती सामान लूटा और मौक़े से भाग गए. इस दौरान उन्होंने दो महिलाओं का रेप भी किया. इनमें से एक की मौत हो गई और एक अन्य महिला की हत्या कर दी गई.

23 अप्रैल, 1983 को स्थानीय कोर्ट ने पांचों लोगों को इस रेप-मर्डर केस का दोषी पाया. उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई. इसके बाद पांचों लोगों ने हाई कोर्ट में अपील दायर की. उनकी अपील लंबित रहने के दौरान 2 मई, 1983 को उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. इस बीच, चार दोषियों की मौत हो गई और उनकी अपील को ख़ारिज कर दिया गया.

इसी मामले में अब हाई कोर्ट ने फ़ैसला दिया है. जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डॉ. गौतम चौधरी की दो जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. कोर्ट को इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त सबूत मिल गए कि महिलाओं का रेप किया गया था और उनके साथ मारपीट की गई थी.

ऐसे में एकमात्र ज़िंदा बचे दोषी बाबू लाल भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 396 (हत्या के साथ डकैती) के तहत सजा हुई. इस दौरान बेंच ने मामले पर फ़ैसले में हुई देरी पर खेद जताया. कहा,

कोर्ट मामले में पक्षकारों और समाज के सामने खेद जताता है. क्योंकि इस अपील की सुनवाई में 42 साल लग गए. पांच दशकों की बहुत लंबी अवधि में पक्षों को न्याय नहीं मिला है. चार आरोपी/अपीलकर्ता- वीर सिंह, गंगाधर, धर्मलाल और बंधु न्याय मिलने के बिना ही मर चुके हैं. पीड़ित भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.

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बार एंड बेंच की ख़बर के मुताबिक़, कोर्ट ने आगे कहा,

ऐसे मामलों में आदर्श रूप से अदालतों को सही समय में न्याय देने की ज़रूरत होती है. कोर्ट को अधूरे काम का अफसोस अभी भी है.

कोर्ट ने बाबू लाल को तत्काल आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया. ऐसा न करने पर चीफ़ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, ललितपुर को शेष सज़ा काटने के लिए उसे गिरफ़्तार करने का आदेश दिया.

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