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IndiGo वाला लफड़ा अभी चल ही रहा है, लोको पायलट्स ने भी वर्किंग आवर्स का मुद्दा उठा दिया

Loco Pilots के Association ने रोजाना छह घंटे की लिमिट के साथ FRMS-बेस्ड वर्किंग आवर सिस्टम को तुरंत अपनाने की मांग की. इसके अलावा, इसने हर ड्यूटी के बाद 16 घंटे के अनुमानित आराम के समय और रोजाना के आराम के अलावा हर हफ्ते आराम करने की भी मांग की है.

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रेलवे के लोको पायलट्स ने काम के घंटे निर्धारित करने की मांग की है (PHOTO-X)

इंडिगो एयरलाइंस प्रकरण (Indigo Crisis) के बाद अब इंडियन रेलवे के लोको पायलट्स (Railway Loco Pilots) ने भी अपने काम के घंटों को रेगुलेट करने की मांग की है. लोको पायलट्स के एसोसिएशन का कहना है कि इंडिगो विवाद का जो कारण है, ठीक वही समस्या रेलवे में भी है. थकान होते हुए भी एक लोको पायलट से ट्रेन चलवाना जानमाल का नुकसान करवा सकता है.

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इंडिगो मामले पर केंद्र के रुख की आलोचना करते हुए, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) ने एक बयान जारी किया है. एसोसिएशन के बयान में इस बात को जोर तुलना की गई है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए अपनाई गई स्ट्रैटेजी के मुकाबले यह कितना नरम है. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक एसोसिएशन ने कहा कि किसी भी पब्लिक सेक्टर या सरकारी इंडस्ट्री में हर कर्मचारी आंदोलन पर अक्सर डिसिप्लिनरी एक्शन, चार्जशीट या दमन का सामना करना पड़ता है. एसोसिएशन ने कहा.

सरकारी सेक्टर पर हर तरह के ‘काले नियम’ लागू होते हैं और उन्हें यात्रा करने वाले लोगों की सुविधा या जरूरी सामान के ट्रांसपोर्टेशन के लिए उठाए गए कदमों के तौर पर सही ठहराया जाता है. लेकिन जब बड़ी प्राइवेट कंपनियां सुरक्षा नियमों का विरोध करती हैं, तो सरकार उनके आदेशों के आगे घुटने टेक देती है. यहां तक कि सिस्टम की सुरक्षा को भी नजरअंदाज कर देती है.

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इंडिगो और रेलवे पर अलग-अलग रुख क्यों?

पायलट के आराम के घंटों पर सरकारी नियमों का पालन न करने की इंडिगो की नाकामी से घरेलू एविएशन इंडस्ट्री में मंदी की स्थिति आ गई. सिविल एविएशन रेगुलेटर की चिंता ये है कि इंडिगो की फटीग (Fatigue माने अत्यधिक थकान) रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम (FRMS) और नोटिफाइड रिवाइज्ड फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) को लागू नहीं किया जा सका है. इन्हें नवंबर 2025 से से लागू किया गया है.  एसोसिएशन के मुताबिक, एविएशन विवाद भारतीय रेलवे में लोको पायलटों की लंबे समय से चली आ रही दिक्कतों जैसा ही है. AILRSA का कहना है कि दशकों से, रेलवे क्रू साइंटिफिक तरीके से डिजाइन किए गए काम करने के माहौल की मांग कर रहा है. एसोसिएशन ने कहा कि जो फटीग-रिस्क नियम हैं, वो दशकों की रिसर्च और सेफ्टी फेलियर के बाद दुनिया भर में सामने आए हैं. फिर भी रेलवे के लोको पायलट्स की हालत में कोई सुधार नहीं है. एसोसिएशन ने कहा, 

EU (यूरोपियन यूनियन) रेलवे कुल ड्यूटी और आराम की लिमिट का सख्ती से पालन करते हैं. अमेरिकन रेलरोड Hours of Service Act के तहत काम करते हैं, जिसमें ड्यूटी के बाद आराम करना जरूरी है. ऑस्ट्रेलिया और कनाडा क्रू ड्यूटी शेड्यूल बनाने के लिए एडवांस्ड बायो मैथमेटिकल मॉडल का इस्तेमाल करते हैं.

FRMS पर आधारित हो वर्किंग आवर

एसोसिएशन ने लोको पायलटों के लिए रोजाना छह घंटे की लिमिट के साथ FRMS-बेस्ड वर्किंग आवर सिस्टम को तुरंत अपनाने की मांग की. इसके अलावा, इसने हर ड्यूटी के बाद 16 घंटे के अनुमानित आराम के समय और रोजाना के आराम के अलावा हर हफ्ते आराम करने की भी मांग की है. भारतीय रेल में प्रतिदिन 2 करोड़ से अधिक लोग सफर करते हैं. कई बार त्योहारों या पीक सीजन में ये आंकड़ा 3 करोड़ तक पहुंच जाता है. ऐसे में लोको पायलट्स का थकान की हालत में ट्रेन चलाना, निश्चित तौर पर यात्रियों की जान के साथ खिलवाड़ है.

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ट्रेन छोड़कर चले गए लोको पायलट

इससे पहले कई बार ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जब लोको पायलट लगातार ट्रेन चलाने की वजह से अत्यधिक थकान के शिकार हुए हैं. लिहाजा वो बीच में ही ट्रेन छोड़कर चले गए. दिसंबर 2023 में यूपी के बाराबंकी में लोको पायलट्स दो ट्रेनों को छोड़कर चले गए. एक लोको पायलट ने जहां ड्यूटी आवर से ज्यादा काम करने की बात कही थी, वहीं दूसरे ने कहा था कि ट्रेन में पानी, पावर सप्लाई की भी दिक्कत है. इसके अलावा महाकुंभ के दौरान भी एक ऐसा ही वाकया देखने को मिला था. जनवरी 2025 में महाकुंभ के दौरान लोको पायलट एक महाकुंभ स्पेशल ट्रेन को निगतपुर स्टेशन पर छोड़ कर चला गया. उसका कहना था कि वो लगातार 16 घंटे से ड्यूटी पर है.

वीडियो: महाकुंभ की ट्रेन बीच में छोड़ भागा लोको पायलट, थक गया हूं....मेमो में क्या बताया?

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