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रूस की बनाई वैक्सीन कैंसर को कैसे खत्म करेगी, पता चल गया

ऐसा नहीं है कि कैंसर की कोई वैक्सीन नहीं है. HPV वैक्सीन, महिलाओं को सर्विकल कैंसर से बचाने में मदद करती है. वहीं, Hepatitis B की वैक्सीन लिवर कैंसर का रिस्क घटाती है, तो फिर रूस की ये वैक्सीन इतनी खास क्यों है?

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रूस की कैंसर वैक्सीन का पहला फोकस कोलोरेक्टल कैंसर है (फोटो: Freepik)

रूस के वैज्ञानिकों ने कैंसर की वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है. कई सालों की रिसर्च और प्री-क्लीनिकल स्टडीज़ को पूरा करने के बाद, अब ये वैक्सीन मरीज़ों पर इस्तेमाल के लिए तैयार है. इस कैंसर वैक्सीन का नाम है एंटेरोमिक्स. ये सारी जानकारी रूस की न्यूज़ एजेंसी Tass के हवाले से है.

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Tass के मुताबिक, कैंसर वैक्सीन तैयार होने की जानकारी 10वें Eastern Economic Forum में Federal Medical and Biological Agency यानी FMBA की मुखिया Veronika Skvortsova ने दी. ये Forum 3 से 6 सितंबर तक रूस के शहर Vladivostok में आयोजित हुआ था.

FMBA की मुखिया Skvortsova ने कहा, ‘वैक्सीन इस्तेमाल के लिए तैयार है. हम बस ऑफिशियल अप्रूवल का इंतज़ार कर रहे हैं.’

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अब ऐसा नहीं है कि कैंसर की कोई वैक्सीन नहीं है. HPV वैक्सीन, महिलाओं को सर्विकल कैंसर से बचाने में मदद करती है. वहीं, Hepatitis B की वैक्सीन लिवर कैंसर का रिस्क घटाती है, तो फिर रूस की ये वैक्सीन इतनी खास क्यों है?

इसकी कई वजहें हैं. पहली, ये कैंसर से बचाने में नहीं, बल्कि उसके इलाज में मदद करती है. यानी पहले व्यक्ति को कैंसर होगा. उसके बाद ही एंटेरोमिक्स वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

दूसरी, ये पर्सनलाइज़्ड वैक्सीन है. यानी इसे मरीज़ के ट्यूमर के हिसाब से तैयार किया जाता है.

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तीसरी, ये mRNA टेक्नोलॉजी पर बेस्ड है. इसी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से कोविड-19 वैक्सीन बनी थी. mRNA यानी मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड. ये शरीर के सेल्स को बताता है कि कौन-सा प्रोटीन बनाना है. mRNA वैक्सीन में सेल्स को मैसेज भेजा जाता है, कि वो वायरस का एक खास प्रोटीन बनाएं. इससे शरीर की इम्यूनिटी उस प्रोटीन को पहचानती है और एंटीबॉडी बनाती है, ताकि असली वायरस आने पर शरीर तैयार रहे.

चौथी, ये वैक्सीन कई सालों की रिसर्च के बाद तैयार हुई है. आखिरी 3 साल प्री-क्लीनिकल ट्रायल हुए. इनसे पता चला कि वैक्सीन पूरी तरह सेफ और बहुत असरदार है. कुछ केसों में ट्यूमर 60 से 80 पर्सेंट तक सिकुड़ गए या उनका बढ़ना बहुत धीमा हो गया.

ट्रायल में 48 वॉलंटियर्स ने हिस्सा लिया. ये ट्रायल रूस के नेशनल मेडिकल रिसर्च रेडियोलॉजिकल सेंटर और एंगेलहार्ड इंस्टिट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के सहयोग से किए गए. ट्रायल के बहुत अच्छे नतीजे सामने आए. सारे वॉलंटियर्स का सर्वाइवल रेट बढ़ गया. यानी उनकी ज़िंदगी बचने की संभावना बढ़ गई.

एंटेरोमिक्स वैक्सीन का पहला फोकस कोलोरेक्टल कैंसर है. यानी बड़ी आंत का कैंसर. कुछ दूसरे कैंसर की वैक्सीन तैयार करने पर भी काम चल रहा है. जैसे ग्लियोब्लास्टोमा और ऑक्युलर मेलानोमा वगैरा. ग्लियोब्लास्टोमा तेज़ी से बढ़ने वाला दिमाग का कैंसर है. वहीं ऑक्युलर मेलानोमा आंख पर असर डालता है.

हमने दिल्ली के सी.के. बिड़ला हॉस्पिटल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर, डॉक्टर मंदीप सिंह मल्होत्रा से पूछा कि रूस की कैंसर वैक्सीन एंटेरोमिक्स काम कैसे करती है. और इससे कैंसर का इलाज कितना आसान होने वाला है.

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डॉ. मंदीप सिंह मल्होत्रा, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, सी.के. बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

डॉक्टर मंदीप बताते हैं कि रूस में कैंसर वैक्सीन पर काफी अच्छा काम हुआ है. ये हर मरीज़ के लिए पर्सनलाइज्ड यानी अलग-अलग बनाई जाती है. ये कोई जनरल वैक्सीन नहीं है.

हर मरीज़ का एंटीजन प्रिज़ेंटेशन अलग होता है. एंटीजन प्रेज़ेंटेशन का मतलब है, कैंसर सेल्स की सतह पर मौजूद खास प्रोटीन, जिन्हें देखकर इम्यून सिस्टम उन्हें पहचानता है.

रूस की ये कैंसर वैक्सीन आर्टिफिशियन इंटेलिजेंस यानी AI का इस्तेमाल करती है. इसमें पहले मरीज़ का सैंपल लिया जाता है. फिर AI ये तय करता है कि उस मरीज़ के एंटीजन कैसे हैं. इसके बाद उन्हीं एंटीजन का mRNA तैयार किया जाता है और उसे शरीर में डाल दिया जाता है.

ये mRNA शरीर के अंदर जाकर उन एंटीजन को बड़ी मात्रा में बनाने लगता है. फिर जहां-जहां ऐसे खराब एंटीजन मिलते हैं, इम्यून सिस्टम उन्हें खत्म करने लगता है. इस तरह से ये वैक्सीन मरीज़ के शरीर को खुद ही कैंसर सेल्स से लड़ने के लिए तैयार कर देती है.

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रूसी कैंसर वैक्सीन को हर मरीज़ के ट्यूमर के हिसाब से तैयार किया जाता है (फोटो: Freepik)

हर मरीज़ के हिसाब से वैक्सीन तैयार करना भी आसान है. पहले सैंपल लिया. फिर AI से उसका एनालिसिस किया. इसके बाद mRNA बनाया और शरीर में डाल दिया. ये तकनीक एडवांस होने के साथ ही मरीज़ के लिए बहुत आसान है.

अभी तक कैंसर की जितनी भी वैक्सीन हैं वो फर्स्ट लाइन ऑफ ट्रीटमेंट नहीं हैं. यानी शुरुआती इलाज के तौर पर नहीं दी जातीं. ये ज़्यादातर सेकंड लाइन ऑफ ट्रीटमेंट में इस्तेमाल होती हैं. जैसे किसी मरीज़ को पहले स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट दिया गया. यानी सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी वगैरा. अगर फिर भी मरीज़ का कैंसर लौट आया तब कैंसर वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

मरीज़ को स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट देने के साथ भी कैंसर वैक्सीन का इस्तेमाल कर सकते हैं. खासकर इम्यूनोथेरेपी के साथ. इससे इम्यूनोथेरेपी का रिज़ल्ट और बेहतर हो जाता है.

लेकिन अगर वैक्सीन को कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी के साथ दिया जाए. तब अक्सर वैक्सीन उतनी असरदार नहीं रहती. असल में कीमोथेरेपी या रेडिएशन से शरीर बहुत कमज़ोर हो जाता है. T-Cells की संख्या घट जाती है. जबकि कैंसर वैक्सीन का काम ही इन्हीं T-cells को एक्टिवेट करके कैंसर सेल्स से लड़ाना है. अगर T-cells ही कम हैं, तो वैक्सीन उतनी असरदार नहीं होगी. इसलिए वैक्सीन का सबसे अच्छा इस्तेमाल कैंसर रिकरेंस में होता है. यानी जब कैंसर दोबारा लौट आए.

भारत और रूस के रिश्ते काफी अच्छे हैं. इसलिए ये भी उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में ये टेक्नोलॉजी भारत में भी आ सकती है. और, यहां के मरीज़ों को इसका फायदा मिल सकता है. उम्मीद ये भी की जा रही है कि ये वैक्सीन बहुत महंगी नहीं होगी.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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