लौटने वालों की ज़ुबान पर एक चीज रही कि बड़े शहरों में कोरोना से भले बच जाएं, लेकिन भूख से ज़रूर मर जाएंगे. तमाम लोग अपने घरों में लौटे, लेकिन भूख का इलाज नहीं हो पाया. देश में रोज़गार की हालत खराब है. घर लौटकर मनरेगा से तमाम लोग जुड़े हैं. लेकिन बहुतों के पास अभी भी काम नहीं है. हालत ये है कि लॉकडाउन में ढील के बाद कई लोग वापस शहर भी लौट रहे हैं.
पीएम गरीब कल्याण रोजगार अभियान
अपने गांव-ज़िलों में लौटे जिन मज़दूरों-कामगारों के पास काम नहीं है, उनके लिए केंद्र सरकार एक अभियान चलाने जा रही है. नाम है- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान. 125 दिनों में तेजी से इन मज़दूरों को रोज़गार देने की बात कही गई है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 18 जून को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस अभियान के बारे में जानकारी दी.
मौजूदा जानकारी के आधार पर आगे कुछ सवाल-जवाबों के जरिए इस अभियान के बारे में जानेंगे.

18 जून को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस अभियान के बारे में बताया. उनके साथ श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार भी मौजूद थे. फोटो: PTI
कब से अभियान शुरू हो रहा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जून को बिहार के खगड़िया ज़िले के तेलिहार गांव से वर्चुअल तरीके से इस अभियान की शुरुआत करेंगे. बिहार में जहां 15 लाख से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर लौटे हैं. साल के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव भी हो सकते हैं.
अभियान का मकसद क्या है?
इसे 'मिशन मोड' वाला अभियान बताया जा रहा. इसका मकसद दूसरे राज्यों से घर लौटे मज़दूरों-कामगारों को 125 दिनों में उनकी स्किल के हिसाब से रोज़गार देना है. इन ज़िलों में केंद्र और राज्य सरकार ने स्किल मैपिंग की है. मतलब कि किस शख्स में कौन सा काम करने की योग्यता है, इसका सर्वे. अभियान का ज़ोर गांवों में रोज़गार देने और ग्रामीण विकास पर ज़्यादा होगा. इसके लिए कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) और कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) की मदद ली जाएगी.
कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए सरकार की तमाम ई-सर्विसेस गांवों, रिमोट इलाकों में पहुंचाई जाती हैं. वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र लोकल स्तर पर खेती से जुड़ी रिसर्च, ट्रेनिंग में मदद करते हैं.
कितना बजट है?
सरकार इस अभियान के लिए 50,000 करोड़ रुपयों को आगे बढ़ाएगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि ये पैसे पहले से ही बजट का हिस्सा हैं. मतलब कोई नई राशि जारी नहीं की जा रही है. बस इतना पैसा एक जगह चैनलाइज किया जा रहा है.
कितने राज्य, कितने ज़िलों में अभियान चलेगा?
अभियान के लिए छह राज्यों के कुल 116 ज़िलों को चुना गया है. लाइव मिंट
के मुताबिक, इस अभियान से 67 लाख से ज़्यादा मज़दूर कवर होंगे. छह राज्य और उनके कितने ज़िले शामिल हैं:
बिहार- 32 ज़िले
उत्तर प्रदेश- 31 ज़िले
मध्य प्रदेश- 24 ज़िले
राजस्थान- 22 ज़िले
ओडिशा- 4 ज़िले
झारखंड- 3 ज़िले
इन ज़िलों को ही क्यों चुना गया?
सरकार का कहना है कि अगर एक ज़िले में कम से कम 25 हज़ार मज़दूर लौटे हैं, तो उसे इसमें रखा गया है. अगर एक ज़िले में इससे ज़्यादा मज़दूर होते हैं, तो उन्हें भी शामिल किया जाएगा. 25 हज़ार मिनिमम लिमिट है.

करीब तीन महीने तक देश भर से मज़दूरों के वापस अपने गृह राज्य लौटने की ख़बरें और तस्वीरें आईं. हालांकि बहुत से मज़दूर बड़े शहरों की तरफ फिर से लौटने लगे हैं लेकिन जो घर पर रुके हैं, उनके पास काम नहीं है. फोटो: PTI
रोज़गार कैसे दिए जाएंगे?
इसके लिए केंद्र सरकार की 25 योजनाओं को एक साथ लाया जाएगा. सरकार से जुड़े 25 अलग-अलग कामों में लोगों को रोज़गार दिया जाएगा. मतलब इन योजनाओं के रिसोर्स का इस्तेमाल मज़दूरों के लिए किया जा रहा है. इनमें जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री कुसुम योजना, पीएम ऊर्जा गंगा प्रोजेक्ट, स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाएं हैं.
जैसे- पीएम आवास योजना के तहत घर दिए जाते हैं लेकिन उन घरों को बनाने के लिए वर्कफोर्स की ज़रूरत होती है. ऐसे ही सड़क बिछाने का काम है. इन कामों में मज़दूरों को शामिल किया जाएगा.
इन योजनाओं के तहत कौन से 25 तरह के काम होंगे
1. सुलभ शौचालय बनाना
2. ग्राम पंचायत भवन बनाना
3. फाइनेंस कमीशन फंड्स के तहत काम
4. नेशनल हाइवे से जुड़े काम
5. जल संरक्षण और हार्वेस्टिंग
6. कुओं की खुदाई
7. पौधारोपण
8. हॉर्टीकल्चर (बागवानी)
9. आंगनबाड़ी केंद्रों में
10. ग्रामीण आवास में (प्रधानमंत्री आवास योजना)
11. गांव की सड़कें और बॉर्डर रोड नेटवर्क बनाने में
12. रेलवे से जुड़े काम
13. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूरल-अर्बन मिशन के काम
14. पीएम कुसुम योजना के तहत सोलर पंप का काम
15. भारत नेट के तहत फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाने का काम
16. जल जीवन मिशन के तहत काम
17. पीएम ऊर्जा गंगा प्रोजेक्ट
18. कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के जरिए ट्रेनिंग
19. डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड के तहत आने वाले काम
20. सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट वर्क (कूड़ा-कचरा प्रबंधन)
21. खेती के लिए तालाब
22. कैटल शेड बनाना (जानवरों के रहने के लिए)
23. गोट शेड (बकरियों का शेड)
24. पोल्ट्री शेड (मुर्गियों का शेड)
25. वर्मीकंपोस्टिंग (केंचुए से खाद बनाना)

शहरों की तरह गांवों में भी सुलभ शौचालय बनने वाले हैं.
कितने मंत्रालय शामिल हैं?
ये अभियान 12 मंत्रालयों-विभागों की मदद से चलेगा. मतलब जो काम-काज इन मंत्रालयों का है, उस क्षेत्र में मज़दूरों को रोजगार देने में ये मदद करेंगे. इसमें ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय, सड़क और परिवहन, माइन्स, पेय जल और स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, पेट्रोलियम और नेचुरल गैस, न्यू एंड रीन्यूएबल एनर्जी, बॉर्डर रोड, टेलीकॉम और कृषि मंत्रालय शामिल हैं.
कैसे मिलेगा लोकल लेवल पर काम?
इसके लिए गांव के सरपंच या प्रधान से संपर्क करना होगा. उसे अपनी स्किल बतानी होगी. प्रधान नाम ब्लॉक ऑफिस भेजेंगे. काम पाने वालों को ब्लॉक और तहसील स्तर के अधिकारियों से संपर्क करना होगा. सरकार का दावा है कि उसने उन लोगों का आकलन कर लिया है, जिन्हें रोज़गार देना है.
अप्लाई करने के लिए शर्तें
अप्लाई करने वाला इन छह राज्यों में किसी एक का नागरिक होना चाहिए. उसके पास आधार कार्ड या निवास प्रमाण पत्र होना चाहिए. रोजगार 18 साल से ऊपर के लोगों को दिया जाएगा.
कितनी न्यूनतम मज़दूरी मिलेगी?
सरकार ने फिलहाल ये साफ-साफ नहीं बताया है कि हर मज़दूर या उसके परिवार को काम का कितना न्यूनतम पैसा मिलेगा.
किस राज्य में कितने प्रवासी मजदूर लौटे?
उत्तर प्रदेश: 35 लाख से ज़्यादा
मध्य प्रदेश: 25 लाख से ज़्यादा
बिहार: 15 लाख से ज़्यादा
झारखंड: 2 लाख से ज़्यादा
राजस्थान: 10 लाख से ज़्यादा
ओडिशा: एक लाख से ज़्यादा
मनरेगा की नकल?
डीडी न्यूज से बातचीत में 'बिजनेस स्टैंडर्ड' के एडिटोरियल डायरेक्टर अशोक कुमार भट्टाचार्य कहते हैं-
ये अभियान एक तरह से मनरेगा की ही नकल है. लेकिन इसमें प्रवासी मज़दूरों पर फोकस किया गया है. सरकार ने 12 मंत्रालयों में पहले से मौजूद रिसोर्सेज, उनके पैसों को एक जगह ला दिया है. इसका उद्देश्य मज़दूरों को कमाई करने के लिए प्रोत्साहित करना है. लेकिन उन्हें लंबे समय तक कमाई के लिए प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है.महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत एक परिवार को कम से कम 100 दिनों का रोज़गार मिलता है. अकुशल श्रम के लिए. मनरेगा के तहत राष्ट्रीय औसत न्यूनतम मज़दूरी 182 रुपए प्रति दिन है. मार्च, 2020 में लॉकडाउन के दौरान
इसे बढ़ाकर 202 रुपए करने का ऐलान हुआ. जबकि 2019 में श्रम मंत्रालय के एक पैनल ने कहा है कि न्यूनतम मज़दूरी 375 रुपए प्रति दिन होनी चाहिए.
मनरेगा में तमाम तरह के भ्रष्टाचार की ख़बरें आती हैं. वो लोग भी इसमें रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं, जो काम नहीं करते हैं और पैसे उठाते हैं. पैसा सही लोगों तक पहुंचता नहीं है या समय पर मिलता नहीं है. आरोप लगे हैं बिचौलिए और प्रधान सांठ-गांठ कर बहुत सा पैसा दबा लेते हैं.
एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर पीएम गरीब कल्याण रोजगार अभियान को मनरेगा की तरह मानकर चलें तो इसमें भी भ्रष्टाचार की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता. अभी तक सरकार ने इस अभियान की न्यूनतम मज़दूरी भी तय नहीं की है. क्या मनरेगा वाला ही पैसा मिलेगा या कुछ और? इसके लिए कुछ दिन इंतज़ार करते हैं और देखते हैं कि एक और ज़ोर-शोर से शुरू किया जा रहा अभियान कितना ज़मीन पर उतर पाता है.
पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज नहीं मिला?