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विकी विद्या का वो वाला वीडियो- फिल्म रिव्यू

Rajkummar Rao और Triptii Dimri की नई फिल्म Vicky Vidya Ka Woh Wala Video कैसी है, जानिए ये रिव्यू पढ़कर.

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'विकी विद्या का वो वाला वीडियो' को 'ड्रीम गर्ल' फेम राज शांडिल्य ने डायरेक्ट किया है. राज फिल्म के एक गाने में खुद भी नज़र आते हैं.

फिल्म- विकी विद्या का वो वाला वीडियो 
राइटर-डायरेक्टर- राज शांडिल्य
एक्टर्स- राजकुमार राव, तृप्ति डिमरी, टिकू तलसानिया, मल्लिका शेरावत, विजय राज, मुकेश तिवारी 
रेटिंग- 2 स्टार

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1992 में मणिरत्नम की एक फिल्म आई थी 'रोजा'. इस फिल्म में एक गाना था,    

रुकमणी रुकमणी,
शादी के बाद क्या क्या हुआ
कौन हरा कौन जीता
खिड़की मे से देखो ज़रा

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इसे शास्त्रों में Voyeurism कहा गया है. यानी दूसरों की ज़िंदगियों में ताक-झांक करना. आम तौर पर इस शब्द को सेक्शुअल मामलों में इस्तेमाल किया जाता है. मगर समय के साथ समाज में इसका दायरा बढ़ा. इंडिया में बड़े ही रूढ़िबद्ध तरीके से हम इसका ठीकरा मोहल्ले की आंटियों पर फोड़ देते हैं. मगर दुनियाभर में इस विषय पर कई गंभीर फिल्में बन चुकी हैं. इसमें कपोला की 'द कॉन्वर्सेशन' से लेकर नोलन की 'फॉलोइंग' और 'द ट्रूमैन शो' जैसी महानतम फिल्मों के नाम शामिल हैं. अब कमोबेश इसी विषय पर एक हिंदी फिल्म बनी है, जिसका नाम है 'विकी विद्या का वो वाला वीडियो'. ये एक komedy फिल्म है. मगर फिल्म में इस सब्जेक्ट को जिस तरह से बरता गया है, वो फिल्म से ज़्यादा फनी है.

2014 में एक हॉलीवुड फिल्म आई थी 'सेक्सटेप'. ये एक शादीशुदा जोड़ने की कहानी थी, जो अपनी सेक्स लाइफ को थोड़ा स्पाइस-अप करना चाहते हैं. इसलिए वो अपना एक सेक्स टेप बनाते हैं. जो कहीं ग़ुम हो जाता है. 'विकी विद्या' की कहानी घटती है 1997 के ऋषिकेश में. विकी और विद्या नाम के पड़ोसी हैं. जो एक दूसरे से प्रेम करते हैं. बड़े जोड़-जुगाड़ से इनकी शादी होती है. ये लोग सुहागरात के दिन ही अपना सेक्सटेप बना लेते हैं. जो कहीं खो जाता है. जिसे ढूंढने की जद्दोजहद में पूरी फिल्म निकलती है. मगर मेकर्स का कहना है कि ये ओरिजिनल फिल्म है. किसी हॉलीवुड फिल्म का रीमेक नहीं है.  

ख़ैर, इस फिल्म को उन्हीं राज शांडिल्य ने लिखा और डायरेक्ट किया है, जो पहले 'कॉमेडी सर्कस' में चुटकुले लिखा करते थे. आगे चलकर उन्होंने 'ड्रीम गर्ल' नाम की फिल्म भी बनाई. किसी गंभीर मसले पर गंभीर फिल्म बनाने से ज़्यादा ज़िम्मेदारी और जटिलता का काम है, किसी सीरियस टॉपिक पर कॉमेडी फिल्म बनाना. जो करने में हम लगातार बड़े मार्जिन से चूकते रहे हैं. 'विकी विद्या...' भी इससे अछूती नहीं रह पाती. अच्छा चलिए, हमने ये मान लिया कि आप अपने सब्जेक्ट को ढंग से हैंडल नहीं कर पाए. जिस सेंसिटिविटी की दरकार थी, वो नहीं आ पाई. मगर 'विकी विद्या...' एक साधारण कॉमेडी फिल्म के तौर पर भी अपनी पहचान स्थापित नहीं कर पाती.

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शुरुआती 15 से 20 मिनट तक ये फिल्म सही चलती है. अच्छे पंचेज़ हैं, जो बिल्कुल ही हमारी बोलचाल की भाषा का हिस्सा हैं. मगर हमने उन्हें उस तरीके से नोटिस नहीं किया. मसलन, विकी और विद्या की शादी के बाद विकी के दादा जी कहते हैं-

"अब मैं तुम्हारे बच्चे का मुंह देखकर ही मरूंगा"

इसके जवाब में विकी कहता है-

"हमारे बच्चे इतने खराब नहीं होगे कि आप देखकर मर जाएंगे!"

फिल्म में ऐसे कई डायलॉग्स, वन-लाइनर्स हैं, जो मज़ेदार हैं. उसके आगे-पीछे कुछ नहीं है. मगर वो फनी लगते हैं. मगर जब प्रॉपर तरीके से फिल्म शुरू होती है. यानी जब विकी-विद्या का सेक्सटेप खो जाता है, उसके बाद ये फिल्म भी रसातल का रास्ता पकड़ लेती है. क्योंकि ये कई हिस्सों में बोरिंग और अनफनी लगने लगती है. ये फिल्म अपने हिस्से की सारी गलतियां करती है. और फिर आखिर में एक लंबा-चौड़ा सोशल भाषण देकर उससे फारिग हो लेती है. आप न तो इस फिल्म की कॉमेडी हजम कर पाते हैं, न इसकी गंभीरता झेल पाते हैं. तिस पर हर 10 मिनट में एक गाना. जिसमें से एक भी गाना आपको सिनेमाघर से बाहर निकलने के बाद याद नहीं रहता.

फर्स्ट हाफ तो एक बार को झिल भी जाए. मगर सेकंड हाफ में तो कुछ और ही हो जाता है. ये कॉमेडी से हॉरर-कॉमेडी बन जाती है. अचानक से एक 'स्त्री' नुमा भूतनी की एंट्री हो जाती है. वो कहां से आई, क्यों आई, उसकी क्या बैकस्टोरी है, कहानी से क्या कनेक्शन है, इसका कुछ अता-पता नहीं. ऐसा लगता है कि मेकर्स ने पिछले महीने 'स्त्री 2' देखी, तो ये हिस्सा अलग से शूट करके अपनी फिल्म में जोड़ दिया. क्या पता हॉरर-कॉमेडी फिल्में चल रही हैं, उसी हवा में 'विकी विद्या...' भी चल जाए.

'विकी विद्या...' अपनी लिखाई की वजह से सभी एक्टर्स की बलि चढ़ा देती है. क्योंकि आप उनकी स्क्रिप्ट की चॉइस पर सवाल खड़े करने लगते हैं. जब आप राजकुमार राव को सेम वही चीज़ें करते देखते हैं, जो वो 'स्त्री 2' में कर चुके हैं, तो वो रिपीटिटीव लगता है. तृप्ति डिमरी अपना काम निकाल ले जाती हैं. मल्लिका शेरावत का होना फिल्म में वैल्यू एडिशन करता है. मगर एक एक्टर ऐसा है, जिसकी परफॉरमेंस आपको मेस्मराइज़ कर देती है. वो हैं विजय राज. विजय ने फिल्म में लाडले नाम के पुलिस ऑफिसर का रोल किया है. अगर वो फिल्म में नहीं होते, तो इस फिल्म को देखना टास्क बन जाता.  

शेष, 'विकी विद्या का वो वाला वीडियो' में कुछ अलग करने का स्कोप था. क्योंकि मेकर्स ने एक संजीदा विषय का चुनाव किया था. एक ऐसा सब्जेक्ट, जिस पर भारत में गिनी-चुनी फिल्में बनी हैं. ये मौका 'विकी और विद्या' बड़ी आसानी से गंवा देती है. फिल्म की लंबाई भी आपके धैर्य की परीक्षा लेती है. अगर इसकी लेंग्थ आधे घंटे कम होती है, तो शायद बहुत से ऐसे हिस्से कट जाते, जो फिल्म की क्वॉलिटी में सेंध मारी कर गए. जिसकी वजह से 'विकी विद्या' एक बिलो एवरेज फिल्म बनकर रह जाती है. इस फिल्म की रिपीट वैल्यू सिर्फ और सिर्फ विजय राज की परफॉरमेंस तक महदूद होकर रह जाती है. 

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