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वरुण धवन ने हर्षवर्धन कपूर और पैरलल सिनेमा पर कुछ ऐसा बोल दिया कि सिनेमाप्रेमी सिर पीटने लगे

पैरलल सिनेमा पर इस बयान के बाद जनता का कहना है कि जिस इंडस्ट्री में वरुण धवन काम करते हैं, उसके बारे में उन्हें बुनियादी चीज़ें भी नहीं पता. जानिए पूरा मसला.

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फिल्म 'बदलापुर' के एक सीन में वरुण धवन. दूसरी तरफ अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन कपूर, जो इस पूरे विवाद के केंद्र में हैं.

अपनी फिल्म 'जुग जुग जियो' के प्रमोशन के दौरान वरुण धवन ने कुछ ऐसा बोल दिया, जो सिनेमाप्रेमियों के गले नहीं उतर रहा. वरुण ने हालिया इंटरव्यू में कहा कि इंडिया में पैरेलल सिनेमा हर्षवर्धन कपूर ने शुरू किया. हर्षवर्धन अनिल कपूर के बेटे हैं. जब ये इंटरव्यू चल रहा था, तब अनिल भी वहां बैठे हुए थे. मगर उन्होंने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की. 

'जुग जुग जियो' की स्टारकास्ट यानी अनिल कपूर, नीतू कपूर, कियारा आडवाणी और वरुण धवन चर्चित फिल्म जर्नलिस्ट अनुपमा चोपड़ा के साथ बातचीत कर रहे थे. बात ये चल निकली कि आम जनता को किस तरह की फिल्में पसंद हैं. कियारा ने बताया कि उनके पापा इस बात से खुश हैं कि वो 'जुग जुग जियो' नाम की फिल्म कर रही हैं. मगर उन्हें 'गिल्टी' जैसी फिल्में समझ नहीं आती हैं. नीतू कपूर ने प्लग इन करते हुए कहा कि उनके बेटे रणबीर ने भी 'राजनीति' जैसी कॉन्टेंट ड्रिवन फिल्म की है. अनिल कपूर ये सारी बातें चुप-चाप सुन रहे थे. उन्हें इस बातचीत में शामिल करने के लिए वरुण ने कहा कि

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''ये सवाल आपको अनिल सर से पूछना चाहिए, क्योंकि असल पैरेलल सिनेमा मूवमेंट हर्ष ने शुरू किया है.''

वरुण धवन ने खालिस मज़ाक में वो बात कही. ताकि अनिल कपूर उस कॉन्वरसेशन का हिस्सा बनें. मगर मसला ये है कि इस तरह की बात मज़ाक में भी नहीं कही जानी चाहिए. क्योंकि वो बहुत बेवकूफाना साउंड करता है. जब से ये इंटरव्यू रिलीज़ हुआ है, वरुण को खूब भला-बुरा कहा जा रहा है. लोगों का कहना है कि जिस इंडस्ट्री में वरुण काम करते हैं, उसके बारे में उन्हें बुनियादी चीज़ें भी नहीं पता.

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ये पैरेलल सिनेमा मूवमेंट क्या है, जिससे जुड़ी तथ्यहीन टिप्पणी पर सिनेमा लवर्स नाराज़ हो रहे हैं.

पैरेलल यानी समानांतर. यानी वो सिनेमा जो मुख्यधारा के कमर्शियल सिनेमा के पैरेलल बना हो जो ज्यादा सच्चा हो, यथार्थवादी हो, आर्टिस्टिक और मुख्यधारा के टोटकों से कोसों दूर हो.

पैरेलल के कुछ अंश सिनेमा में 1920 और 1930 के दशकों जितना पीछे जाते हैं. वी. शांताराम की फ़िल्मों में ये होता था. आर्ट, रियलिज़्म और सोशलिज़्म तीनों. आधिकारिक रूप से 1940 के अंत से लेकर 1960 के बीच पैरेलल ने जगह बनानी शुरू की. तभी फ्रेंच और जैपनीज़ सिनेमा में भी ऐसी फ़िल्मों की न्यू वेव आ रही थी. तब सत्यजीत रे, मृणाल सेन, ऋत्विक घटक, बिमल रॉय, वी. शांताराम, चेतन आनंद जैसे लोग इस पैरेलल को लीड कर रहे थे. बाद में श्याम बेनेगल, अडूर गोपालकृष्णन, केतन मेहता, गुलज़ार, जी. अरविंदन, शाजी एन. करुण, गोविंद निहलानी, सईद अख्तर मिर्जा, कुमार साहनी, दीपा मेहता, गिरीश कासरवल्ली, अपर्णा सेन जैसे अनेक फिल्ममेकर्स ने ऐसी फ़िल्में बनाईं.

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90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद पैरेलल अपनी ग्रोथ को बढ़ा नहीं पाया. हालांकि ऐसी फ़िल्में हमेशा बनती रही हैं.

हालांकि पैरेलल के फिल्ममेकर्स ने कभी इस टर्म को स्वीकार नहीं किया. उनके मुताबिक सिनेमा सिनेमा होता है. अच्छा या बुरा. लेकिन सिनेमा पर लिखने वालों ने सहूलियत के लिए ये टर्म गढ़ी थी. मंशा गलत नहीं थी.

आज लोगों में कन्फ्यूज़न है कि पैरेलल क्या है, ऑफबीट क्या है. उन्हें लगता है कि आयुष्मान खुराना भी पैरेलल सिनेमा कर रहे हैं. वरुण धवन का कहना है कि हर्षवर्धन कपूर पैरेलल सिनेमा कर रहे हैं. लेकिन ये गलत है. इनकी फ़िल्मों में मुख्यधारा वाला एलीमेंट है. वे कमर्शियल उद्देश्यों से बनाई जा रही हैं. बड़े बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा बनाई जा रही हैं. पूरी पीआर मशीनरी इनके पास है. इन फ़िल्मों को पैरेलल नहीं कहा जा सकता है.

हाल के दौर की बेहतरीन फ़िल्मों में आप खोजना चाहें तो तितली, तिथि, शिप ऑफ थिसीयस, घोड़े को जलेबी खिलाने ले जा रिया हूं, कोर्ट जैसी फ़िल्में आर्टहाउस/पैरेलल हैं. हालांकि सिनेमा में भिन्नता की ये रेखाएं धुंधली होती जा रही हैं क्योंकि दर्शक हर प्रकार के सिनेमा को उतनी ही सुगमता से देख रहा है, अनुभव कर पा रहा है.

अब ये जानिए कि हर्षवर्धन कपूर ने ऐसा क्या कर दिया कि वरुण धवन उन्हें भारतीय समानांतर सिनेमा का संरक्षक बता रहे हैं. हर्षवर्धन कपूर ने अपने करियर की शुरुआत 'मिर्ज़िया' नाम की फिल्म से की थी. आगे उन्होंने 'भावेश जोशी सुपरहीरो', 'AK vs AK' और नेटफ्लिक्स सीरीज़ 'रे' के एक सेग्मेंट 'स्पॉटलाइट' में काम किया. हर्षवर्धन की आखिरी रिलीज़ हुई फिल्म थी 'थार'. इस नेटफ्लिक्स फिल्म में वो अपने पिता अनिल कपूर के साथ नज़र आए थे.

आप इन जानकारियों को प्रोसेस करके खुद समझ सकते हैं कि पैरलल सिनेमा पर बात करने के लिए वरुण धवन की इतनी फजीहत क्यों हो रही है. 

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