‘किसी भी काम को नैतिक रूप से तभी उचित माना जा सकता है यदि और केवल यदि वो कम से कम उतनी नेट खुशी देता है जितना कि कोई अन्य उपलब्ध विकल्प.’और आसान तरीके से कहें तो ढेर सारे उपलब्ध विकल्पों में से नैतिक रूप से वही काम सबसे सही है जो सबसे ज़्यादा ख़ुशी देता है या सबसे कम दुःख. ये सुनने में तो आसान लगता है लेकिन इससे कितने ही ‘धर्म संकट’ उत्पन्न हो जाते हैं. एक उदाहरण देखिए:
एक हॉस्पिटल में तीन लोग मर रहे हैं और दो ऑक्सीजन सिलेंडर हैं, अब पहले दो व्यक्तियों को तो एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर से बचाया जा सकता है, लेकिन तीसरे के लिए दो ऑक्सीजन सिलेंडर की ज़रूरत होगी तो आप क्या करेंगे?# उत्तर आसान है: वो जिसे दो ऑक्सीजन सिलेंडर की ज़रूरत है उसे मर जाने देंगे, ताकि बाकी दो को बचाया जा सके. आखिर एक से भले दो! और जितने ज़्यादा लोग जीवित बचेंगे, इस दुनिया में उतनी ज़्यादा ख़ुशी उत्पन्न होगी या उतना ज़्यादा दुःख खत्म होगा.
किसी एक स्पेसिफिक हॉलीवुड फ़िल्म का नाम लेने की जरूरत नहीं क्यूंकि हर दूसरी एपोक्लिप्स फ़िल्म में हीरो पूरे समाज को बचाने के लिए खुद की बली दे देता है – उपयोगितावाद!
अब ऊपर दिए उदाहरण को थोड़ा बदल देते हैं –
एक हॉस्पिटल में एक आदमी मर रहा है और बाकी दो के सर में दर्द है. हॉस्पिटल में हैं दो ऑक्सीजन सिलेंडर. जिनके सर में दर्द है उनका सर दर्द एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर से ही ठीक हो जाएगा लेकिन मरने वाले को बचाने के लिए आपको दो सिलेंडर चाहिएंगे तो आप क्या करेंगे?# ये उत्तर भी आसान है: वो जिसे दो ऑक्सीजन सिलेंडर की ज़रूरत है दोनों उसे दे देंगे और उसे मरने से बचाएंगे. क्यूंकि दो लोगों के सर दर्द को सही करने से ज़्यादा ख़ुशी एक को मरने से बचाने में उत्पन्न होगी.
लेकिन इसके बाद तीसरा उदाहरण थोड़ा ‘पशोपेश’ में डालता है –
यदि ऊपर के उदाहरण में एक हज़ार लोगों का सर दर्द एक के मर जाने से सही होता है तो यूटिलिटेरियनिज्म कहता है कि उस एक आदमी का मर जाना ही उचित है. क्यूं? क्यूंकि एक हज़ार लोगों के सर दर्द का कुल जमा दर्द एक आदमी के मर जाने के दर्द से अधिक है.एक हज़ार एक ‘काल्पनिक संख्या’ है. इसलिए ज़रुरी नहीं कि एक हज़ार लोगों का कुल दर्द एक आदमी के मर जाने के दर्द से अधिक हो. लेकिन एक हज़ार नहीं भी तो कोई न कोई संख्या तो ऐसी ज़रूर ही होगी जिस संख्या बल का सर दर्द सही हो जाना एक आदमी को मरने से बचाने से ज़्यादा ख़ुशी उत्पन्न करेगा.
अब बारी सबसे मज़ेदार उदाहरण की –
एक लाख लोग टी.वी. में भारत पाकिस्तन का क्रिकेट मैच देख रहे हैं, और कोई काल्पनिक स्थिति ऐसी है कि यदि वो एक लाख लोग टी.वी. देखना बंद कर दें तो एक आदमी की जान बच जाएगी अन्यथा वो मर जाएगा. तो क्या उन एक लाख लोगों को टी.वी. देखना बंद कर देना चाहिए? नैतिकता कहती है – नहीं! और कारण आप जानते ही हैं - क्यूंकि एक लाख लोगों के भारत-पाकिस्तन मैच न देख पाने का कुल दर्द एक आदमी के मर जाने के दर्द से अधिक है.अब ये बताने की आवश्यकता नहीं कि बेशक एक लाख एक ‘काल्पनिक संख्या’ है, लेकिन कोई न कोई संख्या ऐसी ज़रूर होगी जिस संख्या बल के लोगों का भारत-पाकिस्तन मैच न देख पाने का कुल दर्द एक आदमी के मर जाने के दर्द से अधिक होगा.
तो यदि राम ने छल से बाली को मारा या अर्जुन ने कर्ण को तो ‘उपयोगितावाद’ के अनुसार वो नैतिक रूप से भी सही था, क्यूंकि अंततः बाली और कर्ण के होने से ज़्यादा लोग दुखी होते ज़्यादा लोग मरते और ज़्यादा छल फैलता.
अच्छा, उपयोगितावाद के अलावा भी ‘नैतिक आचरण’ ने ऐसी काल्पनिक स्थिति पैदा की है (या कहें कि सवाल पैदा किया है) जिसका उत्तर देना बहुत मुश्किल लगता है. आइये जानते हैं ये इंट्रेस्टिंग सवाल यानि 'ट्रॉली प्रॉब्लम' क्या है और इसके कितने वैरिएंट हैं:
# ट्रॉली प्रॉब्लम:
आप एक ट्रॉली/ट्रेन में जा रहे हैं जिसके ब्रेक फेल हो गए हैं. आगे पांच लोग पटरी में बांधे गए हैं. यानी यदि ट्रेन अपनी गति से चलती रही तो वो पांचों लोग मर जाएंगे. बहरहाल आपके पास अब भी एक विकल्प उपलब्ध है – वो ये कि एक लीवर खींच कर ट्रेन को आप दूसरे ट्रैक में डायवर्ट कर दें. लेकिन मज़े की बात ये कि वहां पर भी एक आदमी बांधा गया है. तो अब आप क्या करेंगे?

गूगल कीजिए 'ट्रॉली प्रॉब्लम'. आपको हज़ारों वेरिएंट मिल जाएंगे इस एक सवाल के. और हर वैरिएंट उतना ही मज़ेदार.
‘उपयोगितावाद’ के अनुसार तो आपको लीवर खींच देना चाहिए, क्यूंकि एक आदमी के मर जाने से यदि पांच लोग बच रहे हैं तो ये नैतिक रूप से बेहतर विकल्प है.
लेकिन आपको बताया था न कि ‘उपयोगितावाद’ सबसे पहला चैप्टर है इसके बाद इसमें काफी मॉडिफिकेशन हुए, और इसलिए ही इस ट्रॉली प्रॉब्लम का उत्तर आसान नहीं रहा. क्यूंकि जहां लीवर खींचने के पक्ष में रहने वाले लोग ‘उपयोगितावाद’ का सहारा लेते हैं, वहीं ‘आनुषांगिक’ यानि ‘कॉन्सक्वेंटीयल’ स्कूल वाले कहते हैं कि उन पांच लोगों का मर जाना उनकी नियति थी, और यदि आप लीवर खींचते हैं तो दरअसल आप पांच को बचाते नहीं एक का कत्ल करते हैं.
इसमें आगे देखिए –
यदि उन पांच लोगों को बचाने के लिए आपको एक आदमी को ट्रेन के आगे धकेलना पड़े ताकि वो आदमी ब्रेक का काम करे और ट्रेन रुक जाए तो क्या आप ऐसा करेंगे.ऐसा करना ‘लीवर खींचने’ से ज़्यादा मुश्किल होगा, क्यूंकि तब आप प्रत्यक्ष रूप से एक आदमी का क़त्ल कर रहे हो. होने को मृत तब भी एक आदमी हो होता और ट्रेन को डाइवर्ट करके भी एक ही आदमी होता. पर फिर भी.
अब यदि आप ‘उपयोगितावाद’ के बहुत बड़े हितैषी हैं और ट्रेन का रूट बदलने ही वाले हैं लेकिन देखते हैं कि वो एक आदमी जो बंधा है वो आपका पुत्र या पिता है, तब आप क्या करेंगे?आपको क्या करना चाहिए, ये तो आप जानते हैं, लेकिन आप क्या करेंगे वो ‘धर्म संकट’ होगा. नहीं?
अब इसका एक और वेरिएशन देखिए –
यदि आपको एक व्यक्ति को ट्रेन से गिराना अजीब लग रहा है और आप इससे बेहतर पांच लेटे हुए व्यक्तियों का मरना पसंद कर रहे हैं लेकिन तभी आपको पता चलता है कि इस आदमी ने ही दरअसल उन पांच आदमियों को ट्रैक में बांधा है तब आप क्या करेंगे?याद रखिए इसमें से कोई भी उत्तर सही या गलत नहीं है और मज़े की बार जहां एक उत्तर नैतिकता के एक सिद्धांत के हिसाब से सही है वहीं दूसरा उत्तर नैतिकता के दूसरे सिद्धांत के हिसाब से.
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