‘ये मज़दूर का हाथ है कात्या, लोहा पिघलाकर उसका आकार बदल देता है’
सनी देओल की 'घातक' के किस्से, जिसमें डायरेक्टर ने एक्टर को कुएं में उल्टा लटका दिया
90 के दशक में सुनील शेट्टी, अजय देवगन जैसे तमाम ऐक्शन हीरो आए, पर सनी देओल को टक्कर देना बड़ा मुश्किल काम रहा.

इस डायलॉग को बोलने वाला नाइंटीज़ का मज़दूर है. अपने ढाई किलो के हाथ को सींग बनाकर जब वो मरकहे बैल की तरह जुटता था, तो गुंडों के लोहालाट शरीर को अपने मुक्के की गर्मी से पिघलाकर बहा देता था. जब वो कहता: हलक में हाथ डालकर कलेजा खींच लूंगा. तो लगता, ये सिर्फ़ कह नहीं रहा, ये हलक में हाथ डाल भी सकता है और कलेजा निकाल भी सकता है. वो सनी देओल ही है, जो एक साधारण डायलॉग तारीख़ पे तारीख़, तारीख़ पे तारीख़…को भी ऐसा अदा करता है कि वो हर ज़बान पर चढ़ जाता है. जैसे ये डायलॉग लोगों की ज़बान पर चढ़ा ठीक वैसे ही सनी देओल का फितूर 90 के दशक में हमारे सिर पर चढ़ा. सुनील शेट्टी, अजय देवगन जैसे तमाम ऐक्शन हीरो आए पर सनी देओल को टक्कर देना बड़ा मुश्किल काम रहा. कारण है उनकी 'घायल', 'घातक', 'ग़दर', 'दामिनी', 'बॉर्डर' सरीखी फ़िल्में. इन्हीं में से एक फ़िल्म 'घातक' से जुड़ी कुछ रोचक बातें आपको बताते हैं. घातक उन कुछ चुनिंदा कमर्शियल फिल्मों में से एक है, जिसमें अमरीश पुरी ने पॉजिटिव रोल प्ले किया. जब बचपन में मैंने ये फ़िल्म देखी तो घर में पूछता था कि ये आदमी इस फ़िल्म में बदल कैसे गया, आखिर इसे अच्छा आदमी किसने बनाया. इस फ़िल्म में सनी देओल के पिता शंभूनाथ के रोल के लिए अमरीश पुरी को बेस्ट सपोर्टिंग अभिनेता का अवार्ड भी मिला था. खैर ‘घातक’के किस्से शुरू करते हैं.
1. 'घातक' का वो सीन जिसने सेट पर सबको रुला दिया
एक बार सनी पाजी को हमारे सरपंच सौरभ द्विवेदी ने धर पकड़ा और उनका इंटरव्यू जमा डाला. सनी पाजी इसमें 'घातक' से जुड़ा एक किस्सा सुना गए. फ़िल्म में एक सीन है जिसमें वो अपने पिता बने अमरीश पुरी को उनके कैंसर के बारे में बताते हैं. इस सीन के लिए वो कहते हैं:
मैंने डायरेक्टर साहब से कहा कि आप अमरीश जी को जाकर बता दीजिए कि मुझे पता नहीं कि मैं क्या करने वाला हूं. क्योंकि वह बहुत भावुक सीन था.
डायरेक्टर राकुमार संतोषी ने ऐक्शन बोला, सीन शूट होना शुरू हुआ. सनी को न जाने उस समय क्या महसूस हुआ! उस कैरेक्टर में उन्होंने खुद को ऐसा ढाल लिया कि वो सच में काशी बन गए. सीन शूट हुआ और ऐसा कमाल शूट हुआ कि सेट पर मौजूद सभी लोग रोने लगे.

2. सनी-संतोषी की हिट जोड़ी 'घातक' के बाद अलग हो गई
कई सीन्स में राजकुमार संतोषी और सनी देओल की बॉन्डिंग नज़र आती थी. सनी जो कहते संतोषी मानते भी थे. उन्होंने मिलकर 'घायल', 'घातक' समेत कई हिट फिल्में दीं. पर आगे चलकर दोनों के रिश्ते में दरार आ गई. 'घातक' के बाद उन्होंने कोई फ़िल्म एक साथ नहीं की. उनके अलग होने का सही कारण तो नहीं पता पर खबरों की मानें तो सनी शहीद भगत सिंह पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे. उन्होंने राजकुमार संतोषी से इसका निर्देशन करने को कहा. पर संतोषी अनिल कपूर की 'पुकार' डायरेक्ट करने चले गए. सनी का मानना था कि ऐसा उन्होंने सिर्फ़ ज़्यादा पैसों के लिए किया. बाद में सनी ने ‘ज़िद्दी’ के डायरेक्टर के साथ बॉबी देओल को लीड में लेकर फ़िल्म बनाई. '23 मार्च 1931: शहीद'. और उसी दिन रिलीज़ की, जिस दिन संतोषी ने अजय देवगन स्टारर 'द लेजेंड ऑफ़ भगत सिंह' रिलीज़ की. हालांकि 2018 में मुंबई मिरर ने एक रिपोर्ट छापी जिसके अनुसार संतोषी और सनी की जोड़ी एक बार फिर साथ देखने को मिलेगी. संतोषी सिख योद्धा फतेह सिंह को लेकर एक पीरियड ड्रामा बना रहे थे, जिसमें सनी लीड रोल प्ले करने वाले थे. जो भी कारण रहा हो, पर ऐसा हो न सका.
3. जब आमिर और सनी देओल की टक्कर हो गई
अब तक क़रीब तीन बार आमिर खान और सनी देओल की बॉक्स ऑफिस पर टक्कर हुई है. 1990 में 'दिल' और 'घायल' के समय, 2001 में 'लगान' और 'ग़दर' के समय, और उससे पहले 1996 में 'घातक' और 'राजा हिन्दुतानी' के टाइम. तीन में से दो बार सनी देओल को मुंह की खानी पड़ी. हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि सनी की मूवी फ़्लॉप हुई हो, पर आमिर ने पैसे ज़्यादा कमाए. 1990 और 96 में आमिर जीते. पर 2001 में लगान के सामने ग़दर ने बाजी मारी. ख़ैर हम लोग 1996 पर स्टिक करते हैं. ‘घातक’ और राजा हिन्दुस्तानी एक ही सप्ताह के अंतराल में रिलीज़ हुई थी. सिने एक्सपर्ट सिनेमा के लिहाज़ से 'घातक' को 'राजा हिंदुस्तानी' से बेटर फ़िल्म कहते हैं. पर बॉक्स ऑफिस पर इसके पीछे छूट जाने के तीन कारण माने जाते हैं. पहला है 'राजा हिंदुस्तानी' का म्यूज़िक. गाने घातक के भी बुरे नहीं थे. आर.डी. बर्मन ने संगीत दिया था. मजरूह और राहत इंदौरी ने लिरिक्स लिखे थे. पर वो दौर नदीम-श्रवण का दौर था. आमिर की फ़िल्म में उनका ही म्यूज़िक था. परदेसी-परदेसी, आये हो मेरी ज़िंदगी में जैसे सुपरहिट गानों ने फ़िल्म का तगड़ा बज़ बनाया. इसी का फ़ायदा आमिर को बॉक्स ऑफिस पर हुआ.
दूसरा बड़ा कारण माना जाता है उस समय तक के बॉलीवुड इतिहास का सो कॉल्ड सबसे लंबा किस. इस मुद्दे ने यूथ को अपील किया. उन्होंने 'राजा हिंदुस्तानी' को 'घातक' पर तरज़ीह दी. 'घातक' एक डिलेड फ़िल्म थी. इसकी स्टोरी राजकुमार संतोषी ने 91-92 के आसपास लिख ली थी. फिर वो 'अंदाज़ अपना-अपना' और 'बरसात' बनाने में व्यस्त हो गए. 'घातक' बनने में तक़रीबन 5 साल लग गए. जिस कारण ऑडिएंस के बीच इसका क्रेज कम होता गया. और ये 'राजा हिंदुस्तानी' का एक तिहाई कलेक्शन ही कर पाई. बॉलीवुड हंगामा के मुताबिक 'घातक' ने भारत में क़रीब 15 करोड़ और 'राजा हिंदुस्तानी' ने 43 करोड़ का बिज़नेस किया था.

4. सनी देओल नहीं, कमल हासन होते 'घातक' के हीरो
ऐसा माना जाता है कि राज कुमार संतोषी ने 'घायल' और 'घातक' दोनों फ़िल्में कमल हासन को ध्यान में रखकर लिखी थीं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक चूंकि 'घायल' उनकी डायरेक्टोरियल डेब्यू फ़िल्म थी. इसलिए इस पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हो रहा था. संतोषी कमल हासन के अलावा सिर्फ़ सनी को फ़िल्म में लेना चाहते थे. इसके लिए वो धर्मेंद्र के पास गए. धर्मेंद्र के कहने पर सनी ने 'घायल' के लिए हां कर दी. पर फ़िल्म के प्रोड्यूसर सुब्बाराव उन्हें फीस के तौर पर कम पैसे दे रहे थे. सनी मान ही नहीं रहे थे. सुब्बाराव बैकआउट कर गए. तब जाकर सनी के कहने पर धर्मेंद्र ने फ़िल्म प्रोड्यूस की. जब 'घातक' बनाने की बारी आई, तो फिर संतोषी, कमल हासन को काशी के रोल में लेना चाहते थे. कमल हासन ने 1985 के बाद से किसी हिंदी फ़िल्म में काम भी नहीं किया था. इसलिए उस समय बॉलीवुड में उनकी एंट्री का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था. संतोषी इसी बात को भुनाना चाहते थे. उन्होंने फ़िल्म साइन भी कर ली थी. यहां तक कि उस समय एक ऐड भी चलाया गया जिसमें कमल हासन की फ़ोटो के साथ लिखा होता वेलकम बैक टू हिंदी स्क्रीन. पर बाद में कमल हासन ने इस फ़िल्म से हाथ खींच लिए. डिस्ट्रीब्यूटर पहले ही चाहते थे कि कमल हासन की जगह 'घातक' में सनी पाजी हों. उन्होंने राजकुमार को समझाया और सनी के साथ उनकी हिट फ़िल्म 'घायल' का हवाला दिया. फिर क्या सनी काशी बन गए, रेस्ट इज़ हिस्ट्री.
5. रवीना टण्डन ने दस दिन काम करके फ़िल्म छोड़ दी
फ़िल्म में सनी के अपोज़िट गौरी के रोल में मीनाक्षी शेषाद्रि को साइन किया गया था. फिर संतोषी और मीनाक्षी के बीच कुछ अनबन हो गई और राजकुमार ने दूसरी ऐक्ट्रेस की खोज शुरू कर दी. अंत में रवीना टंडन का नाम फाइनल हुआ. रवीना ने 10 दिन की शूटिंग भी कर ली थी. इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि रवीना ख़ुद फ़िल्म से हटीं या उन्हें हटाया गया. क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि संतोषी को उनका काम पसंद नहीं आ रहा था जिसके कारण उन्होंने रवीना को हटा दिया. वो कई अभिनेत्रियों को गौरी के रोल के लिए ट्राय कर चुके थे, पर कोई फिट नहीं बैठ रहा था. ऐसे में अपनी अनबन को भुलाकर वो एक बार फिर मीनाक्षी की ओर लौटे और गौरी का रोल उन्हीं को दे दिया. बॉलीवुड हंगामा की एक रिपोर्ट के मुताबिक संतोषी मीनाक्षी से बेइंतहां मोहब्बत करते थे. समय का अनुमान लगाना मुश्किल है पर शायद 'दामिनी' की शूटिंग या रिलीज़ के आसपास उन्होंने मीनाक्षी को प्रपोज़ भी किया था, पर मीनाक्षी ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. एबीपी की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी प्रपोजल से घबराकर मीनाक्षी ने आननफानन में 1995 में एक इन्वेस्टमेंट बैंकर से शादी भी कर ली. और शादी के बाद फ़िल्मी जगत से दूरी बना ली. 'घातक' और दिलीप कुमार डायरेक्टेड इकलौती फ़िल्म 'कलिंगा' उन्होंने पहले से साइन कर रखी थी. इसलिए इनकी शूटिंग उन्होंने पूरी की. हालांकि 'कलिंगा' कभी रिलीज़ नहीं हो सकी.
6. जब अनु मलिक पर लिरिक्स चुराने का आरोप लगा
फ़िल्म के एक गाने को छोड़कर सभी गाने आरडी बर्मन ने कंपोज किए थे और मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे थे. पर 1994 में पंचम दा का निधन हो गया. संतोषी को एक आइटम नम्बरनुमा गाना चाहिए था. उन्होंने अनु मलिक से कंपोज़ करने को कहा: गाना बना 'कोई जाए तो ले आए, मेरी लाख दुआएं पाए', इसे लिखा था राहत इंदौरी ने. गाना हिट हो गया. इस गाने से एक कॉन्ट्रोवर्सी जुड़ी है. अनु मलिक पर धुनें चुराने का आरोप कई बार लगता रहा है. पर गीतकार विश्वेश्वर शर्मा ने उन पर लिरिक्स चोरी का इल्ज़ाम लगाया था. उन्होंने फ़िल्म राइटर्स एसोशिएशन में अनु मलिक के ख़िलाफ़ कम्प्लेन की थी. फ़िल्मइन्फॉर्मेशन डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक शर्मा जी का कहना था कि अनु मलिक ने उनके गाने से मुखड़ा चुराया है. 'नमक' फ़िल्म का म्यूजिक मलिक ने दिया था. उस समय शर्मा ने 7-8 गाने उन्हें सुनाए. फ़िल्म में सिर्फ़ एक गाना 'फटक बम-बम' इस्तेमाल किया गया. एक और गाना था जिसको अनु मलिक ने अपने पास नोट कर लिया और शर्मा जी से इसका फिर कभी इस्तेमाल करने का वादा किया. पर विश्वेश्वर शॉक्ड हो गए जब उन्होंने 'कोई जाए तो ले आए' गाना सुना जिसमें लिरिक्स क्रेडिट सिर्फ़ राहत इंदौरी को दिया गया. जबकि इसका मुखड़ा उनका लिखा हुआ था. ये 'घातक' का सबसे हिट गाना था. शर्मा का मानना था कि अगर इस सॉन्ग के लिए उन्हें भी क्रेडिट मिलता तो शायद आगे उनके पास गीतकार के तौर पर और ज़्यादा ऑफर होते. ये गाना उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता था.

7. ममता ने डायरेक्टर पर सेक्शुअल फेवर मांगने का आरोप लगाया
'कोई जाए तो ले आए' गाने में कोरियोग्राफर गणेश आचार्या गेस्ट अपीयरेंस में दिखे थे. इस गाने ने ममता कुलकर्णी की किस्मत बदल दी. मज़े की बात ये है कि इसके लिए ममता ने अपने सभी स्टेप्स ख़ुद ही कोरियोग्राफ किए थे. संतोषी को उनका काम इतना पसंद आया कि उन्होंने अगली फ़िल्म 'चाइना गेट' में ममता को बतौर लीड साइन कर लिया. हालांकि डीएनए इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बाद में संतोषी उन्हें फ़िल्म से हटाना चाहते थे. पर उनके पास अंडरवर्ल्ड से कई धमकी भरे फ़ोन आए जिसके कारण वो 'चाइना गेट' से ममता को रिप्लेस नहीं कर सके. फ़िल्म बड़ी हिट साबित हुई. इसमें ममता के काम को भी पसंद किया गया. रिलीज़ के बाद ममता ने संतोषी पर सेक्शुअल फेवर मांगने का आरोप लगाया और ऐसा न करने पर उनका स्क्रीन टाइम घटाने की भी कम्प्लेन की.
8. डायरेक्टर ने अभिनेता को कुएं में उल्टा लटका दिया
फ़िल्म में अंजन श्रीवास्तव ने धामू काका का रोल निभाया था. 'घातक' के 25 साल पूरे होने पर उन्होंने आजतक को दिए एक इंटरव्यू में कहा था: घातक राजकुमार संतोषी की एक खूबसूरत रचना थी. पहले इसमें धामू काका का किरदार मकरंद देशपांडे करने वाले थे, पर बाद में मुझे ऑफ़र हुआ. इस फ़िल्म के ऐक्शन डायरेक्टर टीनू वर्मा थे. अंजन उनसे बहुत डरते थे कि वो कब क्या करने को कह दें. मुंबई के वर्सोवा में 'घातक' की शूटिंग चल रही थी. वहां एक गहरा और बड़ा कुआं था. उसमें सबको फेंके जाने का सीन फिल्माया जा रहा था. अंजन बताते हैं:
अचानक टीनू आये. मुझे पैरों से पकड़ा और कुएं में उल्टा लटका दिया. मेरी जान ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे.
अंजन चिल्ला रहे थे. तभी राजकुमार संतोषी ने कहा, अरे अंजन कुछ नहीं होगा. टीनू तुझे छोड़ेगा नहीं. बस तुम शॉट दो और थोड़ा छटपटाओ. अंजन ने कहा:
अरे संतोषी जी मैं अगर ज्यादा छटपटाऊंगा तो इसका हाथ छूट जायेगा और मैं नीचे गिर जाऊंगा.
सब वहां खड़े थे और हंस रहे थे लेकिन अंजन साहब की जान हलक में अटकी हुई थी. ये वाकया उन्हें कभी नहीं भूलता.
'घातक' में मुझे जो कभी नहीं भूलता वो है, काशी का कात्या से बदला. एक सीन है जिसमें कात्या के गुंडे काशी को मार रहे होते हैं और उसके पिता शंभूनाथ कात्या के पैर पकड़ लेते हैं. इतने में कात्या एक जंजीर निकालकर शंभूनाथ के गले में डाल देता है, जैसे वो उसका कुत्ता हो. ठीक ऐसा ही काशी क्लाइमैक्स सीन में कात्या के साथ करता है. जब फ़िल्म देखी थी, मम्मी कसम छाती चौड़ी हो गई थी. सनी की मरकही अदा के हम दीवाने थे. अपने काशी ने कात्या को कुत्ता बना डाला. वैसे आपको 'घातक' की कौन-सी बात नहीं भूलती, आईए कभी हमारे कमेंट बॉक्स में.