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सेल्फी: मूवी रिव्यू

हम पिछली कई फिल्मों से अक्षय को ट्रोल करते रहे हैं. इसमें अक्षय ने खुद को ट्रोल किया है.

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एक फन एंटरटेनिंग फिल्म है

पृथ्वीराज सुकुमारन की मलयालम कॉमेडी ड्रामा है, 'ड्राइविंग लाइसेंस'. उसी का रीमेक गुड़ न्यूज फेम राज मेहता ने 'सेल्फी' के नाम से बनाया है. देखते हैं कैसी है फ़िल्म?

'सेल्फी' की कहानी एक सुपरस्टार और उसके फैन की है. दरअसल ओम प्रकाश और उसका बेटा सुपरस्टार विजय के फैन हैं. उनका सपना है कि वो विजय के साथ एक सेल्फी लें. उनके सामने एक सुनहरा मौका आता है. ओम प्रकाश जो कि आरटीओ यानी रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर है, उसे पता चलता है कि उसके आइडल के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है. उसे लगता है कि वो विजय का लाइसेंस बनवाकर सेल्फी पा सकता है. पर एक बहुत बड़ी गलतफ़हमी हो जाती है. सुपरस्टार और सुपरफैन एक दूसरे के आमने-सामने आ जाते हैं. यहीं से 'सेल्फी' बन जाती है सुपरस्टार बनाम सुपरफैन मूवी.

फ़िल्म की कुछ अच्छी और कुछ कम अच्छी बातें जान लेते हैं.

# सबसे अच्छा पार्ट है, फ़िल्म का ह्यूमर. अगर फिल्म को एक व्यक्ति माने, तो उसका सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल है. सबसे अच्छी बात है, इसके लिए कोई भी आपत्तिजनक बात किसी भी किरदार के मुंह से नहीं कहलवाई गई है. हल्की-फुल्की व्यंग्य की चाशनी में डूबा हुआ हास्य. जैसे: अपनी किडनी छुपा लो, प्रोड्यूसर साहब आए हैं. स्क्रीनप्ले और डायलॉग ऋषभ शर्मा ने लिखे हैं. उन्होंने फिल्म कहीं पर भी बोझिल नहीं होने दी है. डायरेक्टर राज मेहता ने इमोशन और ह्यूमर को बराबर स्पेस दिया है. फ़िल्म भागती भी नहीं है और रेंगती भी नहीं है. सधी हुई रफ्तार से आगे बढ़ती है. जहां लगता है, अब इस पॉइंट के आगे फिल्म हल्का-सा बोरिंग हो सकती है. एक बेहतरीन कट आ जाता है. मुझे इस फिल्म की एडिटिंग भी बहुत अच्छी लगी. रितेश सोनी ने कोई बहुत कमाल का कट नहीं लगा दिया है. पर फिल्म में उन्होंने जान फूंकी है. कहते हैं, एक फिल्म बनती है डायरेक्टर और राइटर के दिमाग में और दूसरी एडिट टेबल पर. वो फिल्म का नरेटिव सेट करता है. हालांकि इसमें डायरेक्टर की बहुत हद तक भूमिका होती है. पर एडिटर के क्रेडिट को इग्नोर नहीं किया जा सकता. आप सिर्फ उसे उसके नए और बेहतरीन कट्स से ही नहीं याद रख सकते. फिल्म को उचित स्वरूप देने के लिए भी याद कर सकते हैं.

# एक ओर नॉर्मल फिल्म की कहानी चल रही होती है. दूसरी ओर राज मेहता की सोशल कमेंट्री. उन्होंने अपने तरीके से मीडिया को कॉलआउट किया है. उसका चिल्लाना. किसी बेमतलब की बात का बतंगड़ बना देना. मीडिया ट्रायल शुरू कर देना. झट से पाला बदल लेना. इन सब बातों को एक साथ इस पिक्चर में समेटा गया है. इससे पहले ऐसा कमाल मीडिया तंज 'ऐन एक्शन हीरो' में देखा था. एक नमूना पेश है. मीडिया, होटल के बाहर एक आदमी को घेरकर उससे सवाल कर रही होती है. वो कहता है, मैं माली हूं. सवाल आता है, आप मालिक हैं तो जवाब दीजिए. फिर वो चिल्लाकर कहता है, मैं मालिक नहीं, माली हूं. शायद ये सुनने में फनी न लगे. देखने में ज़रूर लगेगा. इसके पीछे छुपा तंज भयंकर है. ऐसे ही कई मूमेंट आपको फिल्म में मिलेंगे.

# 'सेल्फी' बॉयकॉट ट्रेंड को भी ऐड्रेस करती है. और ऐसे ऐड्रेस करती है कि आप हंसते हैं. पर अगले ही क्षण ये महसूस करते हैं, ओह ये तो ऐसी-तैसी कर दी गई है. फिल्म वर्तमान समय से खुद को जोड़ने की कोशिश भी करती है. सोशल मीडिया के बनौलेपन और वहां के पैरलल जजमेंट को भी तमाचे रसीदती है.

# हम पिछली कई फिल्मों से अक्षय को ट्रोल करते रहे हैं. उनके साल में चार-पांच पिक्चरें करने पर उनको खूब सुनाया जाता है. टांग खींची जाती है. इसमें अक्षय ने कई डायलॉग्स के ज़रिए खुद को ट्रोल किया है. ये इस फिल्म की मुझे सबसे अच्छी बात लगी. चूंकि वो यहां लगभग खुद को ही प्ले कर रहे थे. ऐसे में उनकी ऐक्टिंग पर भी आप सवाल नहीं उठा सकते. उनकी कॉमेडी तो कमाल होती ही है. पर जब वो अच्छी स्क्रिप्ट चुनें तब. यहां उन्होंने अच्छी स्क्रिप्ट चुनी है.

# फिल्म में मुझे अभिमन्यु सिंह कमाल लगे. उनकी ऐक्टिंग और कॉमिक टाइमिंग बेहद उम्दा है. डायना पेन्टी ने भी अपने हिस्से का ठीक काम किया है. नुसरत भरूचा भी इमरान की पत्नी के रोल में जंची हैं. इमरान हाशमी को फिल्म में देखकर अच्छा लगा. उन्होंने नैचुरल ऐक्टिंग की है. जिसकी ऐक्टिंग सबसे उम्दा है, वो हैं मेघना मलिक. उन्होंने जो काम किया है, क्या ही कहने! उन्हें मैं और ज़्यादा काम करते हुए देखना चाहता हूं.

# आपको ये फिल्म कई मौकों पर बहुत ज़्यादा ड्रामैटिक लग सकती है. 'सेल्फी' का आइडिया ही बहुत ज़्यादा ड्रामैटिक है. ड्राइविंग लाइसेंस के प्रॉसेस पर भी आप सवाल उठा सकते हैं. पर मैं अपनी ओर से इसको इतनी छूट दूंगा. बहुत दिनों बाद मैंने कोई बॉलीवुड फिल्म एन्जॉय की. बस इसके एंड को बहुत खींचा गया है. शायद फिल्म पांच मिनट पहले खत्म हो सकती थी. पर डायरेक्टर जो भी करे. ये उसका कॉल है. हालांकि फ़िल्म का पोस्ट क्लाइमैक्स बहुत सही है.

कुलमिलाकर फन फिल्म है. ड्रामा है. एंटरटेनिंग है. कई मौकों पर अतार्किक भी है. पर मैं अपनी तरफ़ से इसे इतनी छूट देने को तैयार हूं. आप भी देखकर तय करिए. एक बार तो देखी ही जा सकती है.

 

वीडियो: अक्षय कुमार ने सेल्फी के प्रमोशन में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया, फिर भी फिल्म का माहौल नहीं बन पा रहा