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'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है' टाइप नामों की फिल्में बनाने वाला था कौन?

सईद अख्तर मिर्ज़ा की आखिरी फिल्म 1995 में आई थी. नाम था नसीम. ये 1992 के बाबरी मस्जिद मुद्दे पर बनी थी.

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Saeed

डंब-शरेड्स खेले हो? अरे वही जिसमें बिना बोले पिच्चर समझानी होती है. कुछ-कुछ होता हैं तो देखे हो न. याद करो वो खेल जिसमें काजोल नाच के पिच्चर समझाती है. कौन सी पिच्चर समझाती है? याद है. हां रंगीला. बहुत बढ़िया समझ गए न खेल. अब बताओ कभी किसी को डंब-शरेड्स में ये वाली पिच्चर दी है- 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है.' या 'अरविंद देसाई की अजब दास्तान.' नहीं दिए हो तो लोल हो. दे के देखो पक्का जीत जाओगे. 

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अब खेलने मत चल दो, पहिले जान लो सईद अख्तर मिर्ज़ा के बारे में, जिन्होंने ये पिच्चरें बनाई हैं. 

1. सईद अख्तर मिर्ज़ा, बंबई की पैदाइश. FTII में पिच्चर बनाने की बारीकियां सीखीं. और फिल्मों में आने से पहले पहले मिर्जा एडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री में काम किया करते थे. 

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2. मिर्ज़ा ने शुरू-शुरू में फ़िल्में बंबई के मजदूरों पर बनाई. 

3. मिर्जा की फिल्मों की खासियत है खुद-ब-खुद आगे बढ़ती सिंपल सी कहानियां. इनकी फिल्मों पर ब्राजील के सिनेमा का इन्फ्लुएंस है. 

4. उन्होंने के हरिहरन और मणि कौल के साथ मिलकर युक्त फिल्म को-ऑपरेटिव नाम की कंपनी बनाई. जिसके बैनर तले उनकी पहली फीचर फिल्म आई. 1978 में आई 'अरविंद देसाई की अजीब दास्तान.' 

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5. कुछ दिन पहले ही सईद एक टीवी शो भी लेकर आए थे. नाम था 'ये है इंडिया मेरी जान'. ये उनके देश भर में घूमने और उस दौरान तरह-तरह के लोगों से मिलने का एक्सपीरियंस था. 

6. अब मिर्जा फिल्मों से संन्यास ले चुके हैं. उनकी आखिरी फिल्म 1995 में आई थी. नाम था नसीम. ये 1992 के बाबरी मस्जिद मुद्दे पर बनी थी. 

7. इन्होंने 3 नेशनल अवार्ड भी जीते हैं. 

8. देश में बढ़ते इंटॉलरेंस के खिलाफ जब कलाकार और साहित्यकार अवार्ड लौटा रहे थे तो उसमें सईद मिर्जा का भी नाम था. उन्होंने अपने इस कदम पर कहा था 'अभी नहीं तो कब?' 

9. उन्होंने नॉवेल भी लिखे हैं. 2008 में उन्होंने अपना पहला नॉवेल लिखा. नाम था 'अम्मी: अ लेटर टू अ डेमोक्रेटिक मदर'. उनकी दूसरी किताब का नाम है 'द मॉन्क, द मूर' और 'मोसेस बेन जलौन' जो 2012 में आई थी. इसमें 8वीं से 15 वीं सेंचुरी के बीच कैसे इस्लामिक संसार से भारत का लेन-देन हुआ इस पर बात की गई है. 

10. सईद खुद को 'लेफ्टिस्ट सूफी' कहते हैं.

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