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Panchayat Season 4 - वेब सीरीज़ रिव्यू

पंचायत का चौथा सीज़न देखने के बाद पहला सीज़न क्यों याद आता है, जानने के लिए पूरा रिव्यू पढ़िए.

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'पंचायत 4' की कहानी पूरी तरह से चुनाव पर केंद्रित है.

Panchayat Season 4 
Creators: Deepak Kumar Mishra & Chandan Kumar
Cast: Jitendra Kumar, Raghubir Yadav, Neena Gupta, Durgesh Kumar
Rating: 2.5 Stars

जिस सुबह मैंने शाहरुख खान की ‘पठान’ देखी, उसी शाम घर लौटकर ‘स्वदेस’ देखी. उसी तरह जब ‘सिकंदर’ देखी तो दिन खत्म होने से पहले ‘बजरंगी भाईजान’ देखी. ऐसा इसलिए किया ताकि खुद को याद दिला सकूं कि ये एक्टर क्या करने में सक्षम हैं. 24 जून को ‘पंचायत’ का चौथा सीज़न रिलीज़ हुआ. अब उसे देखने के बाद पहला सीज़न देखने का मन कर रहा है. ऐसा क्यों है, उसकी वजह भी बताएंगे. पर पहले इस सीज़न की कहानी बताते हैं.

ये सीज़न वहीं से शुरू होता है जहां पिछला वाला खत्म हुआ था. सचिव के खिलाफ केस हो चुका है. उसे इस बात का स्ट्रेस है कि अब आगे करियर का क्या होगा. दूसरी ओर चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है. मंजू देवी और क्रांति देवी के दल पूरी खींचतान पर तुले हुए हैं. एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी हुई है. ना फिकर, ना शरम, ना लिहाज़, हर तरह की पॉलिटिक्स चल रही है. ऐसे में कौन ये चुनाव जीतेगा, यही इस सीज़न की कहानी है.

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सीरीज़ को बहुत लेट जाकर अभिषेक और रिंकी की स्टोरी के बारे में याद आता है.

जब ‘पंचायत’ का पहला सीज़न आया था तब ये अपने आप में एक अनोखा एक्सपेरिमेंट था. ये हमारा ध्यान उन चीज़ों पर ले गया जो आंखों के सामने नहीं, बल्कि आंखों के कोने में थी. गांव का वो पेड़ जिसे लोग भुतहा मानते हैं. या फ्राइडे नाइट को क्या किया जाए. ये बहुत आम सी चीज़ें प्रतीत होती हैं. मगर यही ‘पंचायत’ की खासियत थी. कि वो इन आम सी लगने वाली रोज़मर्रा की चीज़ों को एक किस्म की खासियत बख्शती थी. लेकिन मेकर्स ने तीसरे सीज़न के बाद से ही अपना स्केल बदल दिया. अब उनका फोकस बड़े मसलों पर था. इस बार के सीज़न में वो चीज़ चुनाव बन गई. ये अपने आप में देखने के लिए भले ही मनोरंजक हो, लेकिन ये ‘पंचायत’ नहीं.

खैर ‘पंचायत सीज़न 4’ के शुरुआती तीन-चार एपिसोड लगातार चुनाव वाले प्लॉट के इर्द-गिर्द ही चलते हैं. लेकिन तभी शायद मेकर्स को ध्यान आया होगा कि इस यूनिवर्स के किरदारों की कहानी आगे बढ़ ही नहीं रही. ऐसा लग रहा हो जैसे चुनाव से पहले उनके लिए कुछ था ही नहीं. तभी अचानक से पांचवे एपिसोड में अभिषेक और रिंकी की लव स्टोरी प्लग इन की गई. अचानक से आया ये प्लॉट पॉइंट खटकता है मगर आप आगे बढ़ जाते हैं. ‘पंचायत 4’ की राइटिंग आपको इस बात के लिए तैयार नहीं करती कि आगे बहुत सारी चीज़ें ऐसे अचानक से घटने वाली हैं. उनके लिए पहले से कोई ज़मीन तैयार नहीं की जाती. वो बस ऐसे ही हो जा रही हैं. मेरी राय में अगर आपको इत्तेफाक के भरोसे चीज़ें रखनी पड़ रही हैं तो फिर राइटिंग के साथ मसला है. उदाहरण से बताते हैं. जैसे सीरीज़ के बीच में जाकर कहीं मेकर्स को ध्यान आया कि कहानी में अब तक कोई इमोशनल ऐंगल नहीं रखा गया. ऐसे में वो झटपट एक सीन डालते हैं जहां क्रांति देवी, विकास की पत्नी के चरित्र पर कीचड़ उछालती है. इस बात से विकास, उसकी पत्नी और प्रह्लाद आहत होते हैं. लेकिन ये बात कहां से उठी, और उन पर इतना गहरा असर क्यों डाल रही है, सीरीज़ उस वजह को पुख्ता करने की कोशिश नहीं करती.

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इस सीज़न की पूरी कहानी चुनाव के इर्द-गिर्द ही चलती है. 

इसी तरह एक जगह रघुबीर यादव का किरदार दुबे पॉलिटिक्स के लिए कहता है, “झूठ, फरेब, मक्कारी, यही है इसका खेल. खेल सकते हो तो खेलो, नहीं तो छोड़ो”. बृज भूषण दुबे राजनीति से इतना कब जुड़े, इस खेल को जीतने ज़िद उन पर कब सवार होने लगी, सीरीज़ ऐसे सवालों के जवाब देने से बचती है. वो बस अचानक से इस तरह पेश आने लगते हैं. इसकी जगह ऐसा किया जा सकता था कि सीज़न के शुरुआत से ही उनके किरदार के इस बदलाव को टीज़ किया जाता, कि उनकी नैतिकता दूसरी ओर खिसक रही है. मगर सीरीज़ ऐसा करने की ज़हमत नहीं उठाती.

ऐसा नहीं है कि इस सीज़न के साथ सिर्फ मसले ही थे. इसके पास अपने कुछ प्लस पॉइंट्स भी थे. जैसे भूषण, क्रांति और उनकी टीम. वो मंजू देवी के पक्ष की मुश्किल बढ़ाने की पुरजोर कोशिश करते हैं. जब तक आपके मुख्य किरदारों के सामने बड़ी चुनौती नहीं होती, तब तक ड्रामा नहीं बनता. भूषण, क्रांति, बिनोद और माधव ये चुनौती साबित होते हैं. वो हर पॉइंट पर मंजू देवी और उनकी टीम से आगे निकलने की कोशिश में लगे रहते हैं. एक पूरा एपिसोड है जहां ये लोग बिनोद को अपनी टीम में खींचने की कोशिश की है. यहां बिनोद बने अशोक पाठक ने अच्छा काम किया. बाकी मेरे लिए एक्टिंग के लिहाज़ से सुनीता राजवर और दुर्गेश कुमार इस सीज़न के हाइलाइट रहे. आपको उनके किरदारों पर गुस्सा भी आता है. उनकी कहानी को और करीब से देखने की इच्छा भी होती है. लेकिन अंत में उनके साथ जो होता है, वो देखकर आपको खराब भी नहीं लगता.

बाकी ‘पंचायत’ का चौथा सीज़न इस नोट पर खत्म होता है कि आपसे कोई स्ट्रॉन्ग रिएक्शन निकलवा सके. लेकिन वहां पहुंचने तक कहानी इतनी खिंच चुकी होती है कि आप वो इम्पैक्ट महसूस नहीं कर पाते. 
 

वीडियो: पंचायत 4 के ट्रेलर में आपने उदय शेट्टी वाला कनेक्शन देखा क्या?