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मूवी रिव्यू: मिली

‘मिली’ कोई एक्स्ट्राऑर्डनेरी फिल्म नहीं है. थ्रिलर वाले पक्ष को उधेड़ेंगे तो पाएंगे कि ये आम लोगों की बड़ी सादी-सी कहानी है.

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ये 2019 में आई मलयालम फिल्म 'हेलेन' का रीमेक है.

जान्हवी कपूर को लेकर मेरी एक धारणा थी. कि वो अपनी फिल्मों में एफर्ट नहीं डालती. या कहें तो अच्छी एक्टर नहीं हैं. लेकिन मैं गलत साबित हुआ. 04 नवंबर को उनकी फिल्म ‘मिली’ रिलीज़ हुई है. ये 2019 में आई मलयालम फिल्म ‘हेलेन’ का ऑफिशियल रीमेक है. ओरिजिनल वाली फिल्म के डायरेक्टर मथुकुट्टी ज़ेवियर ने ही हिंदी वाली फिल्म भी बनाई है. ‘मिली’ में जान्हवी का काम एक्सेप्शनल किस्म का नहीं है. लेकिन यहां उनका काम ईमानदार है. वो कोशिश कर रही हैं एक बेहतर एक्टर बनने की. खुद को ओवर द टॉप जाने से रोकती हैं. किरदार की सीमित रेखा में रहकर अपने हावभाव का इस्तेमाल करती हैं. 

फिल्म में जान्हवी ने मिली नौड़ियाल नाम की लड़की का किरदार निभाया है. अपने पिता के साथ रहती है. देहरादून शहर में. समीर नाम का बॉयफ्रेंड है जो ज़िम्मेदार नहीं. खैर, मिली अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए जाना चाहती है कैनेडा. नर्सिंग की पढ़ाई की है पर अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी नहीं मिल रही है. बाहर जाकर बेहतर ऑप्शन ढूंढना चाहती है. लेकिन जब तक कैनेडा का रास्ता क्लियर नहीं होता, तब तक वो एक रेस्टोरेंट में काम करती है. एक दिन उसी रेस्टोरेंट में काम करते हुए उसे कोल्ड स्टोरेज में जाना पड़ता है. माइनस 12 डिग्री तापमान वाले स्टोरेज के अंदर होती है मिली और बाहर से हो जाता है दरवाज़ा बंद. किसी को नहीं पता कि वो अंदर बंद है. बाहर कैसे निकलेगी, अपनी जान कैसे बचाएगी, यही फिल्म की कहानी है. 

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‘मिली’ सिर्फ एक सर्वाइवल ड्रामा नहीं. 

अगर आप अपने किसी दोस्त को ‘मिली’ के बारे में बताएंगे, तो कहेंगे कि ये एक सर्वाइवल ड्रामा है. एक लड़की कोल्ड स्टोरेज में बंद हो गई और उसे बाहर निकलना है. फिल्म का अहम हिस्सा भले ही सर्वाइवल की कहानी है, फिर भी ये सिर्फ उस बारे में ही नहीं. मिली के स्टोरेज में बंद होने तक से पहले वो आपको उसकी दुनिया से मिलवाती है. उसमें रह रहे किरदारों को आप जानते हैं. उनके मोटिव से वाकिफ होते हैं. कौन कैसा है और ज़िंदगी से क्या चाहता है. फिल्म का सेकंड हाफ एंगेजिंग है. मिली कैसे बचेगी, क्या करेगी. अब क्या होगा, आपका दिमाग ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करता है. मिली जब बंद है, उस दौरान बाकी किरदार जैसे पेश आ रहे हैं. उनके पीछे की वजह को फिल्म का फर्स्ट हाफ पुख्ता करता है. 

सर्वाइवल वाले हिस्से के पीछे की कहानी में सब्सटेंस है. इसी वजह से फिल्म आपको किसी खोखली थ्रिलर जैसी महसूस नहीं होती. अगर आपने ओरिजिनल फिल्म नहीं देखी है तो ‘मिली’ आपका ध्यान खींचकर रखेगी. आप खुद को कहानी में इंवेस्टेड पाएंगे. मथुकुट्टी ज़ेवियर फिल्म के सेकंड हाफ में एक बैलेंस बनाकर चलते हैं. मशक्कत कर रही मिली और उसका पता लगाने वाले लोगों के बीच. भागदौड़ कर किसी भी तरह समय से आगे निकलना है. सब कुछ खत्म होने को है. फिर भी ऐसी स्थिति में कुछ बचता है. एक आखिरी चीज़ – इंसान की इंसानियत. फिल्म इस बात में भरोसा रखती है कि चाहे आप इंसान से उम्मीद की आखिरी किरण तक छीन लें, फिर भी उसकी इंसानियत बची रहेगी. इसी इंसानियत की कमी से मिली मुश्किल में पड़ती है, और इसी इंसानियत की खातिर लोग उसे बचाना भी चाहते हैं. एक ही चीज़, हर इंसान में मौजूद, लेकिन पहलू दो. 

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मनोज पाहवा और जान्हवी कपूर की फन केमिस्ट्री एंटरटेन करती है.  

फिल्म की कास्ट इसका मज़बूत पक्ष बनकर उभरता है. मनोज पाहवा ने मिली के पिता का किरदार निभाया है. मिली और उनकी केमिस्ट्री फन किस्म की है. स्क्रीन पर इन दोनों की नोकझोंक देखकर आपको मज़ा आता है. अपनी बेटी के गायब हो जाने पर उनके चेहरे को नाराज़गी, चिंता और गुस्से जैसे भाव घेर लेते हैं. जिनके साथ वो पूरा न्याय करते हैं. सनी कौशल ने मिली के बॉयफ्रेंड समीर का रोल किया. समीर कहानी का केंद्र नहीं. उसी हिसाब से सनी को स्पेस भी मिलता है. डिलीवर करने की जितनी ज़रूरत थी, उतना काम वो कर देते हैं. इन दोनों एक्टर्स के अलावा दो और कलाकारों का नाम लिया जाना ज़रूरी है. विक्रम कोचर और अनुराग अरोड़ा. इन दोनों ने अपने किरदार इस ढंग से निभाए कि गुस्सा आता है. चिढ़ मचने लगती है. बाकी फिल्म में एक सरप्राइज़ कैमियो भी है. जो सीन का पूरा माहौल बदल कर धर देता है. 

‘मिली’ कोई एक्स्ट्राऑर्डनेरी फिल्म नहीं. थ्रिलर वाले पक्ष को उधेड़ेंगे तो पाएंगे कि ये आम लोगों की बड़ी सादी-सी कहानी है. सिनेमा के कमर्शियल एलिमेंट्स का इस्तेमाल करती है. सही इस्तेमाल करती है. उसी में मानवीयता को पिरोकर अपनी कहानी कहने की कोशिश करती है.             

वीडियो: मूवी रिव्यू - डॉक्टर G