मशहूर लिरिसिस्ट, डांसर और एक्टर माया गोविंद का 7 अप्रैल की सुबह देहांत हो गया. माया पिछले दो महीनों से बीमार चल रही थीं. कुछ समय तक अस्पताल में रखने के बाद फरवरी में उन्हें वापस घर लाया गया था. आज सुबह 09:30 पर उन्होंने अपनी आखिरी सांसें लीं. मुंबई के विल पारले में बने पवन हंस क्रेमेटोरियम में उनका अंतिम संस्कार किया गया.
750 से ज़्यादा हिंदी गाने लिखने वाली माया गोविंद नहीं रहीं
माया पिछले दो महीनों से बीमार चल रही थीं. कुछ समय तक अस्पताल में रखने के बाद फरवरी में उन्हें वापस घर लाया गया था. आज सुबह 09:30 पर उन्होंने अपनी आखिरी सांसें लीं. मुंबई के विल पारले में बने पवन हंस क्रेमेटोरियम में उनका अंतिम संस्कार किया गया.

शादी तोड़कर पढ़ाई करनी शुरू कर दी
माया का जन्म लखनऊ में हुआ था. परिवार में मां-पिता के अलावा दो बहनें भी थीं. जब माया पांच साल की हुईं, तभी उनके पिता गुज़र गए. माया के किसी रिश्तेदार ने उनकी मां को कुछ पैसे दिए थे, जिससे उनका गुजर-बसर चल रहा था. इतनी खराब हालत में भी मां ने पढ़ाई-लिखाई के साथ माया को डांस और गाने की ट्रेनिंग भी दिलवाई. जब माया इंटर में थीं, तब उनकी शादी हो गई. ससुराल वाले उनसे बिल्कुल आदर्श बहू की तरह रहने की उम्मीद करते थे. माया सबकुछ करने की कोशिश भी कर रही थीं. मगर इससे सबके साथ माया गाना चाहती थीं. उनके ससुराल वाले इसके खिलाफ थे. इसी वजह से तीन महीने बाद माया वापस घर लौट आईं. घर आने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई कंटिन्यू की. ग्रैजुएशन और बीएड करने के बाद वो टीचर बन गईं. इसी दौरान अपनी दोनों छोटी बहनों की शादी भी करवाई.

स्टेज पर कर ली दूसरी शादी
माया गोविंद की लाइफ क्रांति से भरी रही. उन्होंने वो सब किया, जो वो करना चाहती थीं. समाज और उसके ढकोसलों की उन्हें कभी परवाह नहीं रही. जब वो नौकरी कर रही थीं, तब उनकी मुलाकात राम गोविंद नाम के शख्स से हुई. वो नटराज नाट्य कला नाम का एक थिएटर ग्रुप चलाते थे. एक दिन राम के नाटक में एक एक्टर कम पड़ रहा था. उन्होंने माया से वो रोल करने की गुज़ारिश की माया मान गईं. बातों-मुलाकातों में तीन महीने निकल गए. राम, माया के प्रति अट्रैक्ट हो गए थे. उन्होंने उनसे शादी करने की बात कही. माया भी अकेलेपन से ऊब गई थीं. इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने भावनाओं में बहकर शादी कर ली. उन्हें लगा कि ये आदमी आर्टिस्ट है. उन्हें समझ सकता है. साथ ही वो उन्हें गाने या लिखने से कभी रोकेगा नहीं. ये सब सोचने के बाद उन्होंने राम गोविंद की शादी का प्रस्ताव स्वीकार किया. थिएटर के मंच पर ही दोनों ने शादी की. राम गोविंद राइटर हैं. नाटक करते और लिखते हैं. उन्होंने 'बागबान' का स्क्रीनप्ले लिखा था.

रामानंद सागर कविता सुनकर रोए और फिल्म दे दी
1970 में एक फिल्म आई थी 'गीत'. राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा स्टारर इस फिल्म को रामानंद सागर ने डायरेक्ट किया था. इस फिल्म की सक्सेस पार्टी में रामानंद सागर ने माया और राम को भी इनवाइट किया. वहां पहुंचने के बाद सागर ने माया से कुछ कविताएं पढ़ने का आग्रह किया. मगर वहां भीड़ बड़ी तितर-बितर तरीके से खड़ी थी. माया ने कहा मैं कविता पढ़ूंगी, अगर आप सभी लोग कुर्सी लेकर मेरे सामने बैठेंगे. सब लोग बैठे. सम्मेलन शुरू हुआ. वहां माया ने एक कविता सुनाई, जिसे सुनकर सागर रोने लगे. उस कविता की दो लाइनें हैं-
आज कितने ही कृष्ण बन फिरते, कोई भी सारथी नहीं होता
इन दीवानों को कौन समझाए, हर धुआं आरती नहीं होता.
उसी समय सागर साहब ने ये घोषणा कर दी कि उनकी अगली पिक्चर के गाने माया लिखेंगी. बतौर लिरिसिस्ट माया गोविंद का करियर 1972 में शुरू हुआ था. उन्होंने फिल्म 'आरोप' के गाने लिखे थे. इस फिल्म से उनका गाना 'नैनों में दर्पण है' चर्चित हुआ. यहां से माया का फिल्मों में गाने लिखने का काम शुरू हुआ. उन्होंने अपने करियर में कुल 350 फिल्मों के लिए 750 से ज़्यादा गाने लिखे. इसमें 'आंखों में बसे हो तुम', 'मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी' फिल्म का टाइटल ट्रैक, हम तुम्हारे हैं सनम फिल्म का 'गले में लाल टाई', शीशा फिल्म का 'यार को मैंने मुझे यार ने' जैसे गाने शामिल हैं. जब समय के साथ संगीत बदलने लगा. देश में इंडी-पॉप कल्चर शुरू हो गया. तब भी माया समय के साथ कदम मिलाकर चल रही थीं. उन्होंने पॉपुलर सिंगर फाल्गुनी के गाने 'मैंने पायल है छनकाई' के बोल लिखे, जो कि बहुत बड़ा हिट गाना साबित हुई. नवरात्री से इतर लोग फाल्गुनी को आज भी उसी गाने से याद करते हैं.
जब रमेश सिप्पी ने अपना टीवी शो बनाया, तो उसके लिए भी थीम सॉन्ग माया गोविंद से ही लिखवाया. 'किस्मत' नाम के इस टीवी शो के लिए माया ने एक गाना लिखा, जिसमें 64 स्टैंजा या मुखड़े थे. 'किस्मत' के अलावा उन्होंने 'मायका' समेत कई शोज़ के लिए टाइटल ट्रैक लिखे. कम ही लोगों को पता है कि माया ने अपने करियर में बेस्ट एक्टर का भी अवॉर्ड जीता है. साल 1970 में संगीत नाटक अकादमी लखनऊ में विजय तेंडुलकर के नाटक 'खामोश! अदालत ज़ारी है' में काम किया. इसके लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड दिया गया. 1988 में राम गोविंद डायरेक्टेड फिल्म 'तोहफा मोहब्बत का' में भी उन्होंने एक्टर के तौर पर काम किया.
फिल्मों के गाने लिखने के अलावा माया किताबें भी लिखती थीं. उन्होंने कई भजन लिखे, जिसे अनूप जलोटा समेत कई सिंगर अपने कॉन्सर्ट्स में गाते थे. माया ने अपने लिखे को गाने नहीं, कविता बुलाती थीं. उन्होंने खुद को की एक लिरिसिस्ट नहीं कवयित्री के रूप में देखा. क्योंकि ये चीज़ उन्हें गीतकार शब्द के साथ आने वाली पाबंदियों और मजबूरियों से मुक्त रखती थी. इसलिए वो फिल्मी पार्टियों से ज़्यादा कवि सम्मेलन और मुशायरों में पाई जाती थीं. जाने-जाते माया गोविंद का लिखा ये गाना सुनते जाइए, हो सकता है इसी वजह से वो आपको याद रह जाएं.
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