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मट्टो की साइकिल: वो फिल्म जिसके लिए डायरेक्टर ने बोझ लादा, गरीबों की तरह रहा

‘मट्टो की साइकिल’ का 2020 में बुसान इंटरनेशनल फिल्म में प्रीमियर हुआ था. अब ये फिल्म आम पब्लिक के लिए रिलीज़ होने जा रही है.

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फिल्म के लिए पहले डायरेक्टर इरफान को लेना चाहते थे, लेकिन फिर विचार बदल दिया.

एक आदमी है. समृद्ध परिवार से नहीं आता. किसी तरह घर चलाने की कोशिश कर रहा है. जैसा भी छोटा-मोटा काम मिल जाए. उसकी हर भागदौड़ की साथी है उसकी साइकिल. चाहे जितनी भी खस्ता हो, लेकिन उसके काम कर देती है. एक दिन उसकी ये साइकिल उससे दूर हो जाती है. हतप्रभ सा वो अब क्या करे, यही समझने की कोशिश करता है. अगर इतना सुनकर आको विटोरियो डे सीका की कल्ट क्लासिक फिल्म ‘बाइसिकल थीव्स’ याद आई, तो आप पूरी तरह गलत नहीं हैं. ये वही फिल्म थी जिसने सत्यजित रे जैसों को डायरेक्टर बनने की हिम्मत दी. 

बहरहाल, हम ‘बाइसिकल थीव्स’ की बात नहीं कर रहे. शुरू में आपने जिस जीवन का वर्णन पढ़ा, वो मट्टो का जीवन है. एम गनी की फिल्म ‘मट्टो की साइकिल’ का नायक है मट्टो. ‘बाइसिकल थीव्स’ और ‘मट्टो की साइकिल’ में सिर्फ साइकिल शब्द ही एक समानता नहीं है. दोनों फिल्म के किरदारों के लिए साइकिल एक ज़रिया है. खुद की ज़िंदगी बेहतर करने का ज़रिया. अपने परिवार का ध्यान रखने का ज़रिया. हाल ही में ‘मट्टो की साइकिल’ का ट्रेलर रिलीज़ हुआ है.

ट्रेलर के पहले शॉट में हर तरफ हरियाली दिखती है. हवा बह रही हैं. उन सब के बीच खड़ी है एक साइकिल. इस साइकिल पर एक बस्ता टंगा है. मट्टो खेतों के बीच खड़ी अपनी साइकिल की चेन चढ़ा रहा है. मट्टो का हर काम साइकिल से ही निकलता है. एक दिन एक ट्रैक्टर आकर उसी साइकिल को कुचलकर आगे बढ़ जाता है. ट्रैक्टर जो साइकिल से वज़नी है, बड़ा है. प्रतीकात्मक रूप से देखें तो समाज में ऊंचे तबके वाला खुद से नीचे तबके वाले को कुचलकर आगे बढ़ चला. इस क्लासिज़्म के निशान आपको ट्रेलर में और भी जगह दिखेंगे. 

एक जगह मट्टो की साइकिल गलती से गाड़ी से टकरा जाती है. गाड़ी का मालिक बिना अपनी गलती माने उस पर भड़क पड़ता है. शायद उसे भरोसा है कि वो साइकिल पर चलते आदमी को दबा सकता है. गरीबी के इर्द-गिर्द बनने वाली फिल्मों के लिए एक शब्द इस्तेमाल होता है, पोवर्टी पॉर्न. यानी जहाँ गरीबी या किसी गरीब की मजबूरी को बेचने की कोशिश की जा रही हो. उसके दुख से फिल्ममेकर अपना फायदा बना रहा हो. यहां वो केस नहीं. पहली बात तो भले ही मट्टो के जीवन में परेशानियां हैं. लेकिन वो परेशानियां उसकी ज़िंदगी का हिस्सा हैं, उसकी पूरी ज़िंदगी नहीं हैं. ट्रेलर उम्मीदभरे नोट पर खत्म होता है. साथ ही हमें सुनाई देती है ‘सारे जहां से अच्छा’ की धुन. 

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प्रकाश झा ने फिल्म में मट्टो का किरदार निभाया है.

मट्टो की दुनिया हिंदुस्तान है. मट्टो ही हिन्दुस्तान है. फिल्म के डायरेक्टर एम गनी ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि मट्टो उस हिंदुस्तान से आता है, जिसकी तरफ हमने देखना बंद कर दिया है. फिल्म में मट्टो के किरदार को जीवंत किया है डायरेक्टर प्रकाश झा ने. एम गनी ने उनकी कास्टिंग से जुड़ा एक किस्सा भी साझा किया. 2015 या 2016 के करीब गनी को फिल्म का आइडिया आया. तब वो रोल के लिए इरफान को अप्रोच करना चाहते थे. लेकिन फिर लगा कि इरफान फिट नहीं बैठेंगे. उन्हीं दिनों गनी ने प्रकाश झा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘दामुल’ देखी. वो फिल्म उनके साथ रह गई. 

गनी बताते हैं कि फिल्म देखकर वो एक बात मान गए, कि प्रकाश झा को गांव और वहां की ज़िंदगी की कितनी गहरी समझ है. इसलिए उन्होंने अपनी फिल्म के लिए प्रकाश झा को ही साइन कर लिया. अपने किरदार की तैयारी के लिए प्रकाश झा ने एसी इस्तेमाल करना बंद कर दिया. शूट के दौरान सिर पर बोझ लादते. किरदार के नैचुरल लुक के लिए कोई मेकअप इस्तेमाल नहीं किया. ‘मट्टो की साइकिल’ का 2020 में बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुआ था. अब ये फिल्म आम पब्लिक के लिए रिलीज़ होने जा रही है. ‘मट्टो की साइकिल’ को आप 16 सितंबर से सिनेमाघरों पर देख पाएंगे.        

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