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फिल्म रिव्यू- खुदा हाफिज़: चैप्टर 2

किसी फिल्म को अच्छा माने जाने के लिए उसकी कहानी का अच्छा होना ज़रूरी है. न कि उसमें काम कर रहे हीरो की कहानी का अच्छा होना.

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फिल्म 'खुदा हाफिज़ 2' के एक एक्शन सीन में विद्युत जामवाल.

2020 में विद्युत जामवाल की 'खुदा हाफिज़' नाम की फिल्म आई थी. ये फिल्म सीधे डिज़्नी+हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई थी. रिलीज़ के कुछ ही दिन बाद इस फिल्म को ओटीटी प्लैटफॉर्म ने हिट घोषित कर दिया. प्रोड्यूसर्स ने अनाउंस कर दिया कि 'खुदा हाफिज़' का सीक्वल भी बनेगा. ये सीक्वल 'खुदा हाफिज़ चैप्टर 2- अग्निपरीक्षा' नाम से सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुका है.

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इस फिल्म सीरीज़ में होता ये है कि नायक समीर की फैमिली का एक सदस्य किसी मुश्किल में फंस जाता है. समीर उसकी जान बचाने के साथ-साथ एक सामाजिक कुप्रथा पर चोट करता है. पहली फिल्म में उसकी पत्नी नर्गिस को नौकरी देने के झांसे में नोमान नाम के एक काल्पनिक खाड़ी देश बुलाया जाता है. वहां पहुंचने के बाद उसे जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया जाता है. कहानी ये थी कि एक मिडल क्लास आदमी अंजान देश में जाकर अपनी पत्नी को कैसे ढूंढेगा. पावरफुल और खतरनाक लोगों से बचाकर उसे वापस कैसे लाएगा? मगर समीर पिक्चर का हीरो है. वो ये सब बड़ी आसानी से कर लेता है.

'खुदा हाफिज़ 2' की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहली फिल्म खत्म हुई थी. समीर और नर्गिस हंसी-खुशी लखनऊ में रहते हैं. किसी वजह से वो लोग नंदिनी नाम की एक बच्ची को गोद लेते हैं. नंदिनी एक दिन स्कूल से लौटते वक्त किडनैप हो जाती है. अब समीर अपनी बिटिया को ढूंढ रहा है. मगर वो इतना आसान काम नहीं है. क्योंकि इस मामले में लखनऊ की एक बाहुबली महिला इनवॉल्व्ड हैं. तमाम चीज़ों से जूझता हुआ समीर अपनी बेटी को ढूंढ पाता है या नहीं, यही इस फिल्म का सबसे बड़ा राज़ है. जो पब्लिक फिल्म देखने से पहले ही जानती है.

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पब्लिक को कैसे पता?

पब्लिक को इसलिए पता है क्योंकि फिल्म में समीर चौधरी का रोल किया है विद्युत जामवाल ने. अगर हीरो हार जाएगा, तो पिक्चर की हैप्पी एंडिंग कैसे होगी! और हम इतने मच्योर तो हैं नहीं कि मेनस्ट्रीम मसाला फिल्म की सैड एंडिंग बर्दाश्त कर पाएं. इट्स ऑल अबाउट हीरोइज़्म!

अगर 'खुदा हाफिज़ 2' को नॉर्मल फिल्म की तरह देखें, तो कुछ खास नहीं है. मगर विद्युत जामवाल के ट्रैक रिकॉर्ड के लिहाज़ से इसे ठीक फिल्म माना जा सकता है. विद्युत जामवाल को लेकर लोगों के दिमाग में ये बात रहती है कि वो आउटसाइडर हैं. बड़ी मुश्किल से इस इंडस्ट्री में जगह बनाई है. मेहनती आदमी हैं. बढ़िया बॉडी है. उनकी रियल लाइफ स्टोरी मोटिवेशनल है. किसी फिल्म को अच्छा माने जाने के लिए उस फिल्म की कहानी का अच्छा होना ज़रूरी है. न कि उसमें काम कर रहे हीरो की कहानी का अच्छा होना.

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अच्छी बात ये है कि विद्युत जामवाल अपनी फिल्मों में कोशिश करते दिखते हैं. आप जब 'खुदा हाफिज़ 2' देखेंगे, तो पाएंगे कि विद्युत के काम में बेहतरी आई है. यहां हम एक्शन सीन्स की बात नहीं कर रहे. जिन सीन्स में उन्हें एक्शन नहीं करना, उनका काम उस स्तर पर सुधरा है. शिवालिका ओबेरॉय ने समीर की पत्नी नर्गिस का रोल किया है. उनका काम डिसेंट है. इस फिल्म की रियल स्टार हैं शीबा चड्ढा. शीबा ने ठाकुर नाम की बाहुबली का रोल किया है. ये कोई रेगुलर विलेनस कैरेक्टर नहीं है. इसकी अपनी एक अलग कहानी है. इस कैरेक्टर की दो बातें इसे रेगुलर बॉलीवुड विलंस से अलग करती हैं. पहली चीज़ है उसकी सेक्शुएलिटी. ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि फिल्म में एंटैगोनिस्ट के सेक्शुएल ओरिएंटेशन पर बात हो. बात होती भी है, तो बड़े छिछले और अनमने ढंग से.

मगर शीबा के निभाए ठाकुर के किरदार के साथ ऐसा नहीं होता. फिल्म में एक सीन है, जब नर्गिस को धमकी देने गई ठाकुर पीने के लिए कच्चा और बिना चीनी का दूध मांगती है. सिनेमा इतिहास में कई ऐसी फिल्में रहीं हैं, जिनमें एंटी-हीरो कैरेक्टर्स को दूध पीते देखा जा सकता है. 'अ क्लॉकवर्क ऑरेंज' का एलेक्स, 'इनग्लोरियस बैस्टर्ड्स' का हांस लांडा, 'नो कंट्री फॉर ओल्ड मेन' का एंटन चिगुर, 'द बॉयज़' सीरीज़ का होमलैंडर इसके पॉपुलर उदाहरण हैं. मगर विलंस के दूध पीने का मतलब क्या है?

एंटी-हीरोज़ के दूध पीने को सिंबॉलिज़्म की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसे पावर का सिंबल माना जाता है. कई बार ये चीज़ इंसानों में करप्शन की बात करती है. अपने भीतर की अच्छाई को खत्म करना, मोरैलिटी से समझौते के प्रतीक के तौर पर भी दूध का इस्तेमाल किया जाता है. जितने भी कैरेक्टर्स का ज़िक्र हमने किया, वो अपने सोशियोपैथिक नेचर को जस्टिफाई करते हैं. मगर 'खुदा हाफिज़ 2' अपनी विलन के साथ ये चीज़ नहीं कर पाती.

खैर, हम वापस 'खुद हाफिज़ 2' पर आ जाते हैं. इस फिल्म में रेप के मसले पर बात होती है. मगर ये फिल्म इतनी बार रेप-रेप चिल्लाती है कि आपको वो बहुत खलने लगता है. आपको किसी गंभीर चीज़ के बारे में बात करते वक्त थोड़े सटल और संवेदनशील बने रह सकते हैं. आपको हर बार हैमरिंग करने की ज़रूरत नहीं होती. एक और सीन है, जो शायद फिल्म के लिए फनी हो मगर वो देखते हुए बहुत वीयर्ड लगता है. राजेश तैलंग ने फिल्म में रविश कुमार से मिलते-जुलते पत्रकार का रोल किया है. उनका नाम है रवि कुमार और उनके डेली न्यूज़ बुलेटिन का नाम है प्राइम टाइम. जैसे ही एक भयावह खबर आती है, रवि कुमार अपने शो में उस पर बात करते हैं. वो अपनी बातचीत शुरू करते हुए कहते हैं-

''आज हिंदुस्तान फिर हार गया. इंडिया ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैच में नहीं.''  

आगे वो उस घटना का ज़िक्र करते हैं, जिसके बारे में वो न्यूज़ बुलेटिन है. ह्यूमर के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ होती है टाइमिंग. उस समय पर वो ह्यूमर बिल्कुल सही नहीं लगता.

जब हम 'खुदा हाफिज़ 2' की बात करते हैं, तो एक्शन सीक्वेंसेज़ के चर्चा किए बिना वो बातचीत खत्म नहीं हो सकती. विद्युत जामवाल इस फिल्म में भी मासी एक्शन सीन्स करते दिखाई देते हैं. और वो आदमी इस काम में इतना पारंगत हो चुका है कि आपको कभी नहीं लगता कि ये सबकुछ फर्जी है. इस डिपार्टमेंट में आप इस फिल्म का क्रेडिट नहीं छीन सकते. भरपूर खून-खराबा थोड़ा मामला खराब करता है, मगर वो चल जाता है.

ओवरऑल बात ये है कि 'खुदा हाफिज़ चैप्टर 2- अग्निपरीक्षा' एक ऐसी एक्शन थ्रिलर है, जो कुछ अलग या नया करने की कोशिश नहीं करती. सेम ओल्ड एक्शन हीरो, जो अपने बदले के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. मगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने एक्शन थ्रिलर की जो हद तय कर दी है, उसके आगे जाने की कोशिश नहीं करता. नाउम्मीदी को खुशी का सबसे बड़ा ज़रिया माना जाता है. यानी न उम्मीदें होंगी, न तकलीफ होगी. अगर आप 'खुदा हाफिज़ 2' देखना चाहते हैं, तो इसी मंत्र के साथ जाएं. 

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