वूट सिलेक्ट पर रिलीज़ हुई ‘हम्बल पॉलिटिशियन नोगराज’ नेताओं की वैसे वाली ईमानदारी दिखाती है, जिसका पता सबको होता है, पर बोलता कोई नहीं. ‘हम्बल पॉलिटिशियन नोगराज’ नाम से 2018 में एक कन्नड़ फिल्म आई थी. जहां करप्ट नेता नोगराज के रोल में थे दानिश सैत. फिल्म में नोगराज किसी भी तरह एक MLA बनना चाहता था. अब फिल्म के करीब चार साल बाद आई इस सीरीज़ में नोगराज किसी भी तरह कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनना चाहता है. यहां Hook or by Crook का तो कॉन्सेप्ट ही नहीं, क्योंकि ये भाईसाहब क्रुक नंबर वन हैं. पार्लियामेंट में पॉर्न देखता है, अपनी मां से मिलने जाता है तो रिपोर्टर्स का जत्था लेकर जाता है. टाइगर को नहीं, बल्कि गाय को नैशनल एनिमल मानता है. नोगराज वन बिग पार्टी नाम की पॉलिटिकल पार्टी का मेम्बर है. उसके सामने है मोस्ट सेक्युलर पार्टी यानी MSP और फैमिली रन पार्टी. अगर थोड़ी-बहुत भी इंडियन पॉलिटिक्स फॉलो करते होंगे तो समझ जाएंगे कि MSP और फैमिली रन पार्टी कहां से निकले.

बिना मीडियावालों के तो मां से भी मिलने नहीं जाता नोगराज.
MSP का लीडर है KGB, जो हिंदुओं को नमस्ते, सिख को शावा-शावा और मुसलमानों को आदाब करता है. KGB के मन में भी CM बनने का सपना है. पॉलिटिक्स का तीसरा पहिया है करण कपूर, फैमिली रन पार्टी का अध्यक्ष. करण को पॉलिटिक्स से कोई लेना-देना नहीं, सब अपनी मां से पूछकर करता है, और हां, अपनी मां से बातें हिंदी में नहीं, इटैलियन में करता है. शो को देखकर या तो सभी पॉलिटिकल पार्टीज़ के फैन गुस्सा होंगे, क्योंकि सबपर पंचेज़ मारे हैं, या फिर कोई भी नहीं बिगड़ेगा, क्योंकि कोई भी पंच बिलो द बेल्ट नहीं लगता.
नोगराज CM बनने के लिए क्या-कुछ हथकंडे अपनाता है, यही शो की मोटा-माटी कहानी है. देश में पॉलिटिक्स के नाम पर जो कॉमेडी हो रही है, शो अपने 10 एपिसोड्स में वही सब आपके सामने रखता है. बस यहां समस्या ये है कि एक पॉइंट के बाद 10 एपिसोड का समय काफी खींचा हुआ लगने लगता है. हर कहानी को बताने का अपना एक पेस होता है, जिसे हम भी समझते हैं. लेकिन यहां प्रॉब्लम शो का पेस नहीं, बल्कि उसकी लेंथ है. अब तक जिस कॉन्सेप्ट को हम यूट्यूब स्केचेज़ में देखते आए थे, वो एपिसोड फॉर्मैट में ठीक से एग्ज़ीक्यूट नहीं हो पाता, ज़रूरत से ज्यादा खींचा हुआ लगने लगता है.

दानिश सैत 'किल' कर देते हैं.
लेंथ के मामले में भले ही शो का एग्ज़ीक्यूशन ठीक न बैठा हो, लेकिन ये अपनी फन वाइब बरकरार रखता है. शो का ह्यूमर ही इसका सबसे स्ट्रॉन्ग पॉइंट है, और फिर पंचेज़ तो है हीं, जो सिर्फ पॉलिटिक्स पर खर्च नहीं किये, बल्कि हमारे पॉप कल्चर को भी जगह मिली है. जैसे शो की शुरुआत, जहां नोगराज कहता है कि इंडियन वेब सीरीज़ वाला फॉर्मूला फॉलो किया जाए. फिर जनता को ‘सेक्रेड गेम्स’ की याद दिलाते हुए एक कुत्ते को मार डालता है. ‘सेक्रेड गेम्स’ आने के बाद मुझे खुद ये फील आती थी कि असंख्य इंडियन शोज़ ने अपने आपको उस शो के टेम्पलेट में फिट करने की कोशिश की, बस यही चीज़ दानिश ने यहां पॉइंट आउट की.
दानिश जितने समय भी स्क्रीन पर रहते हैं, आपको लगातार एंटरटेन करते हैं. चाहे वो उनका फोर्थ वॉल ब्रेक कर ऑडियंस से बात करना हो, या फिर उनका स्टीरियोटिपिकल साउथ इंडियन एक्सेंट, उन्हें देखकर मज़ा आता है. उनकी कॉमेडिक टाइमिंग एकदम सटल है. उनके चेहरे को देखकर कभी नहीं लगेगा कि ये बंदा कोई फनी बात बोलने वाला है. तमाम अच्छे पंचेज़ और दानिश के एक्ट के बावजूद शो अपनी लेंथ वाले झोल से ऊपर नहीं उठ पाता. एपिसोड कम कर के प्लॉट को इंट्रेस्टिंग रखा जा सकता था.