वीकेंड पर काम देना सीनियर का धर्म है. उसे न चाहते हुए भी निपटाना जूनियर का कर्म है. तो इसी ट्रेडीशन को निबाहते हुए मैंने देखी हॉट स्टार पर आई, वेब सीरीज़ 'Home Shanti'. जानते हैं इसे देखकर मेरे अंदर के सिनेफ़ाइल को शांति मिली या नहीं. मेरा नाम है अनुभव और आप देख रहे हैं लल्लनटॉप सिनेमा.
वेब सीरीज़ रिव्यू: होम शांति
सीरीज कुछ नया नहीं परोसती है. कुछ फैमिली के साथ बैठकर देखना है तो देख डालिए. कुछ हल्का-फुल्का देखना है तो देख डालिए.


'होम शांति' देहरादून के एक मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है. जिसे सरकारी क्वाटर से अपने घर में शिफ्ट होना है. घर बनाने में भूमिपूजन से लेकर गृहप्रवेश तक पैसे से लेकर च्वाइस तक, जो भी दिक्कतें आती हैं. सीरीज उसी के इर्दगिर्द घूमती है. सरला जोशी जो स्कूल की वाइस प्रिंसिपल हैं और घर की इकलौती कमाऊ सदस्य हैं. शकी मिज़ाज, अपनी मास्टरी घर वालों पर झाड़ती रहती हैं. पिता उमेश जोशी 'सूजन' सॉरी 'सुजन', मिज़ाज और प्रोफेशन दोनों से कवि हैं. घर की बड़ी बहन है जिज्ञासा जोशी. जिज्ञासा का छोटा भाई है नमन. दोनों अभी पढ़ रहे हैं. हर भाई-बहन की तरह दोनों झगड़ते हैं और एक दूसरे की केयर भी करते हैं. ठीक ऐसा ही नोकझोंक भरा रिश्ता है पति-पत्नी, उमेश और सरला का. स्क्रीन पर जैसा मिडिल क्लास दिखाया जाता है उसी टिपिकल परिवार की तरह इस परिवार के भी कुछ पड़ोसी हैं. जिनका घर में हद से ज़्यादा दखल है. बहन की एक दोस्त है, जो उसे हर बात पर सलाह देती है. भाई का भी एक दोस्त है, जो उसे ज्ञान देता रहता है. इन सबके अलावा एक किरदार है इनकी नानी का, जो हमेशा वीडियो कॉल पर सबको हड़काती रहती हैं. एक हैं ठेकेदार पप्पू भाई साहब जो जोशी परिवार का घर बना रहे हैं. ऐसे ही अलग-अलग एपिसोड में कुछ छोटे-छोटे किरदार इन्ट्रोड्यूज होते रहते हैं.

सबसे पहले बात करते हैं ऐक्टिंग की. सरला के किरदार में सुप्रिया पाठक ठीक लगी हैं. उनको देखते हुए कुछ-कुछ 'खिचड़ी' वाली सुप्रिया याद आती हैं. मनोज पहवा ने कविराज सुजन की भूमिका भी ठीक तरह से निभाई है. एक दो जगह वो बनावटी लगते हैं. जैसे एक सीन है, जब परिवार वाले भूमिपूजन करने जाते हैं और बारिश होने लगती है. खैर वो सीन ही बनावटी है. उसमें सुप्रिया को छोड़कर सभी कलाकारों का अभिनय भी बिलो एवरेज है. जिज्ञासा के रोल में चकोरी द्विवेदी ने बढ़िया काम किया है. जैसे एक मिडिल क्लास लड़की होती है, ठीक वैसे ही उसे पोट्रे करने में वो सफल रही हैं. बड़ी बहन के रोल में तो वो ऐप्ट हैं. नमन के रोल में पूजन छाबड़ा ने बहुत ओवरऐक्टिंग की है. उनके दोस्त गुलाटी के रोल में सिद्धार्थ बत्रा ने बढ़िया काम किया है. पप्पू ठेकेदार के रोल में हैप्पी रानाजीत ने भी ठीक किया है. मुझे जिसका काम सबसे बढ़िया लगा वो हैं अमरजीत सिंह, जिन्होंने शंकर धोनी नाम के एक मजदूर का किरदार निभाया है. बेहतरीन काम. कॉमिक टाइमिंग एकदम अप टू दी मार्क. उनके एक्स्प्रेशन ठक से लगते हैं. बाक़ी के छोटे-मोटे किरदारों ने भी ठीक काम किया है.

इस सीरीज़ को देखते हुए TVF के वीडियोज़ याद आते हैं. उनकी सबसे प्यारी वेब सीरीज 'ये मेरी फैमिली' आती है. आए भी क्यों ना, इससे बहुत से TVF वाले लोग जुड़े हैं. खुद इसकी डायरेक्टर आकांक्षा दुआ टीवीएफ के कई शोज डायरेक्ट कर चुकी हैं. पर इसमें वो डायरेक्टर के तौर पर फेल हो गई हैं. उन्होंने कोशिश ज़रूर की है. पर पैसा वसूल मामला नहीं बन सका है. ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कहीं-कहीं पर SonyLIV पर आई 'गुल्लक' की कॉपी करने की असफल कोशिश की है. 6 लोगों की टीम ने मिलकर इसे लिखा है. पर इतनी बड़ी टीम ने शुरुआती कुछ एपिसोड जैसे नींद में लिख दिए हों. आखिरी के दो एपिसोड की राइटिंग अच्छी है. कुछ-कुछ कॉमिक डायलॉग्स अच्छे हैं. जैसे नमन स्वस्तिक बनाने की जगह नाज़ी जर्मनी का साइन बना देता है तो उससे पंडित जी कहते हैं: क्या यार इंटरनेशनल स्वस्तिक बना दिया है. या फिर जब उमेश के पड़ोसी कस्टमर केयर से बात करते हुए कहते हैं: एक तो आपने इतनी देर बाद बताया 9 दबाइए और उसके 15 मिनट बाद पता चल 9 लॉकर में नहीं फोन में दबाना था. सीरीज में कवि सम्मेलन की फूहड़ता बहुत अच्छे से दिखाई गई है. कैसे मंच पर मौज़ूद इकलौती कवियित्री को निशाना बनाकर, दूसरे कवि फूहड़ कविताएं पढ़ते हैं. सिनेमैटोग्राफी भी ठीक है. ऐसी नहीं है जिसे अलग से नोटिस करने की ज़रूरत पड़े. म्यूजिक भी सही है. फ़ील गुड देने की कोशिश करता है. कविताओं वाला प्रयोग नया नहीं है, पर अच्छा है.
सीरीज कुछ नया नहीं परोसती है. कुछ फैमिली के साथ बैठकर देखना है तो देख डालिए. कुछ हल्का-फुल्का देखना है तो देख डालिए. TVF के वीडियोज़ का नॉस्टैल्जिया ताज़ा करना है तो भी देख डालिए. सस्ता गुल्लक देखना है, तो ज़रूर देख डालिए.
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