मथुरा बॉर्न एंड ब्रॉटअप लड़का है वासुदेव शास्त्री. सब वासु बुलाते हैं. इस चक्कर में बार-बार गुलशन देवैय्या का चेहरा याद आ जाता है. खैर, उस लड़के के साथ क्या है कि वो डाउनलोड किया हुआ सा लगता है. क्योंकि हैकिंग के सारे गुण वो जानता है. लेकिन वो सब इसने कहां सीखा उसका कोई ज़िक्र नहीं है. महिमामंडन और पुत्र प्रेम तब खुलकर सामने आ जाता है, जब पता लगता है कि आईआईटी में एडमिशन लिए हुए लड़के को रॉ (RAW) ने अपने यहां पार्ट-टाइम जॉब दिया हुआ है. जब उनके लोग किसी दिक्कत में फंसतें हैं, तब वासु को बुलाया जाता है उनके रेस्क्यू के लिए.

इस फोटो पे मत जाइए, रॉ सिर्फ वासु को इंटरनेट से मसले जुड़े देखने के लिए बुलाती थी. बाकी जगह ये भाई साहब खुद पहुंच जाते हैं.
फिल्म की कहानी आगे कुछ ऐसे बढ़ती है कि अब उस लड़के को अपना देश बचाना है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी यानी फिल्म के विलेन एमआरएस (MRS) से. वो भी जीनियस है. भारी समस्या. पहले वाले का समझ नहीं आया था कि क्यों जीनियस और अब दूसरा भी. बिना किसी प्रॉपर हैकिंग बैक स्टोरी के. फिल्म के आखिर में एमआरएस एक स्पॉयलर देता है, जिससे पूरी फिल्म खुलती है. और आपको वासुदेव के लिए बुरा लगता है कि इसका तो इन सब से कोई लेना-देना ही नहीं था. क्लाइमैक्स में एक मोनोलॉग है नवाज कोई 10-15 सेकंड लंबा. इसमें वो बता देते हैं कि ऐसी फिल्मों में उनकी जरूरत क्यों है. ये वो सीन है जहां विलेन फिल्म का हीरो बन जाता है. बस उसके साथ समस्या ये है कि वो जीनियस है :(

फिल्म में नवाज के किरदार का नाम है एमआरएस, जो इंडियन है लेकिन किसी और देश के लिए काम करता है.
उतकर्ष की ये दूसरी फिल्म है. बतौर हीरो पहली. इसके पहले पापा की ही 'गदर-एक प्रेम कथा' मे दिखे थे. फिल्म में उनका काम देखकर ऐसा लगता है कि ये फिल्म लंबे समय से शूट हो रही है, जिसमें उनका काम हर बढ़ती सीन के साथ बेहतर हो रहा था. या शायद उन्होंने अपने किरदार के हर फेज़ में अच्छा काम किया है. इशिता चौहान का किरदार टिपिकल 90s गर्लफ्रेंड वाला है. जो पहले लड़के से चिढ़ती है और फिर इतना प्यार में पड़ जाती है कि अपना सब कुछ उसके लिए छोड़ देती है. पहले इशिता यानी नंदिनी बिलकुल करियर ओरिएंटेड थी. हालांकि ये नहीं बताया गया कि वो क्या करना चाहती है. वो इस वासुदेव से इसलिए चिढ़ती थी क्योंकि वो आईआईटी जेईई का टॉपर है और ये सेकंड टॉपर. दोनों साथ पढ़ते हैं. पहले लड़का परेशान करता है. और फिर लड़की उससे इंप्रेस होकर वापस प्यार करने लगती है. ये हीरो लोग को पहली नज़र में प्यार हो जाने वाला कॉन्सेप्ट अब अमर होने की राह पर है.

'जीनियस' में इशिता का किरदार एक ऐसी लड़की का है, आईआईटी पेपर की सेकंड टॉपर है.
अब यहां क्या है कि 60-70% फिल्म निकल जाने के बाद हीरो-हीरोइन मिल जाते हैं लेकिन फिल्म फिर भी चलती रहती है. क्योंक अब विलेन आने वाला था. पापा ने बच्चे के कंधे पर कम बोझ डाला है. पहले लड़की निपटा लिया, फिर विलेन लेकर आए. कूल. ये जो विलेन है, इसकी परदे पर जो कहानी चल रही थी, उससे अच्छी और एंटरटेनिंग उसकी बीती ज़िंदगी की कहानी थी, जो वो खुद सुना रहा था. नवाज के आस पास क्या है कि एक्टिंग की एक आभाामंडल बन गई है, जिसके आसपास जो आता है वो कहीं खो जाता है. उत्कर्ष का काम अच्छा होने के बावजूद इस फिल्म में वही हुआ है. मिथुन का किरदार भी छोटा सा है लेकिन उसे क्लाइमैक्स के बाद जरूरी बना दिया जाता है. रॉ और उससे जुड़े लोगों के साथ इतना खिलवाड़ पीछे किसी फिल्म में नहीं दिखता.

फिल्म में नवाज ने हथियारों का इल्लीगल धंधा करने वाले विलेन का रोल किया है.
अच्छी परफॉर्मेंसेज के बाद भी 'जीनियस' ऐज अ फिल्म थोड़ी बिखरी हुई लगती है. एक तरफ ये आपको स्पून फीडिंग कराती है, तो दूसरी ही तरह बिखरे हुए फिल्म को समेटने-सुलझाने का काम आपके जिम्मे छोड़कर जाती है. इसलिए ये पूरे तीन घंटे की फिल्म धीमी रफ्तार में आगे बढ़ती है. और जहां जाना है वहां पहुंचकर भी आपको कोई बहुत संतुष्टि वाली फीलिंग नहीं देती. ये एक्शन-ड्रामा फिल्म थ्रिलर बनने की कोशिश करती है लेकिन थिएटर में थ्रिल नहीं पैदा कर पाती. आप पूरे तीन घंटे बैठते हैं और थककर बाहर निकलते हैं. गाने फिल्म की जान हैं. और तकरीबन सारे ही गाने सुंदर हैं. एकदम बढ़िया फील वाले. फिल्म में म्यूज़िक हिमेश रेशमिया का है.
'जीनियस' की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि इसके किरदारों की कहानी जीनियस बनने के बाद शुरू होती है. इनके जीनियस होने का मतलब भी बहुत बाबूजी टाइप लगता है. ऐसे कुछ समाज सेवा टाइप. फिल्म बहुत लाउड है. अपने डायलॉग्स वाले एरिया में. फिल्म कॉलेज वाले हिस्से में उत्कर्ष का इंट्रो एक अगल गेटअप में होता है. इसके बाद जब उसका असली चेहता दिखता है, तो एक लड़की कहती है- 'ये कितना हॉट है.' ये वो बात है, जो फिल्म देखने वाला खुद समझ ले. वो बातें भी कहकर समझाई गई हैं, जो आदमी खुद समझ ले. ये बहुत बार होता है.

उत्कर्ष का किरदार एक लावारिस लड़के का है, जिसके माता-पिता को दंगे में मार दिया गया था.
आजकल फिल्मों में देशभक्ति एक ऐसा मसाला है जो माहौलानुसार दिखावे वाला देशप्रेम पालने वालों के वर्ड ऑफ माउथ से खूब बिकती है. मनोज कुमार ने शुरू किया. अक्षय कुमार आगे बढ़ा रहे हैं. जॉन अब्राहम ट्रायल फेज़ में हैं और उत्कर्ष नई एंट्री. 'जीनियस' में भी इसका भरपूर इस्तेमाल किया गया है. एक जगह तो अनिल शर्मा खुद को ही कॉन्ट्रडिक्ट कर देते हैं. फिल्म के एक सीन में नवाज उत्कर्ष से कहते हैं कि उन्हें भारत का झंडा फाड़ना होगा नहीं तो वो उनकी साथी लड़कियों के कपड़े फाड़ देंगे. अब हीरो कंफ्यूज़ लेकिन डायरेक्टर क्लीयर थे कि कोई कंट्रोवर्सी में नहीं फंसना है इसलिए उस सीन को बड़े आराम से डॉज कर जाते हैं.
बहरहाल सब जोड़-घटाकर मसला यहां तक पहुंचता है कि 'जीनियस' एक मिडिऑकर फिल्म है. जो एक दिशा पकड़कर चलने की बजाय दो-तीन नावों पर पैर रखती है, जिसमें उसकी निक्कर फट जाती है. अगर बहुत मन हो, तो देखें. ज़्यादा उम्मीद लेकर नहीं जाएंगे, तो कम निराश होंगे.
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