'गहराइयां' की कहानी है बेसिकली चार लोगों के बारे में है. अलिशा, टिया, ज़ेन और करण. अलिशा और टिया कजंस हैं. अलिशा और करण 6 सालों से रिलेशनशिप में हैं. टिया अपने मंगेतर ज़ेन के साथ इंडिया आती है. वो मुंबई से अलीबाग जाने वाले यॉट पर अपने मंगेतर को अलिशा और करण से मिलवाती है. ये चारों लोग अलीबाग में भी काफी समय साथ में बिताते हैं. इस दौरान अलिशा और ज़ेन एक-दूसरे के प्रति अट्रैक्ट हो जाते हैं. यहां से ये कहानी कॉम्प्लिकेट होनी शुरू होती है. झूठ, फरेब, बिज़नेस और ट्रैजिक बैकस्टोरीज़ की वजह से ये कॉम्प्लिकेशन बढ़ते ही चले जाते हैं. और यही चीज़ इनकी कहानियों को इस लायक बनाती है कि उस पर फिल्म बनाई जा सके.

पहली बार मिलने के बाद अलीबाग में टाइम स्पेंड करते चारों लोग. ज़ेन, अलिशा, टिया और करण.
जब तक ये कहानी इंसानों के इर्द-गिर्द घूमती है, वो समझ आती रहती है. रिलेटेबल बनी रहती है. मगर कहानी में बिज़नेस का दखल मामला गड़बड़ कर देता है. मगर पंगा ये है कि उस बिज़नेस को भी इंसान ही चला रहे हैं. इस कहानी में कॉन्ट्राडिक्शन हैं. मगर जो उस फिल्म को देख रहा है, वो भी इंसान है. तो वो उन कॉन्ट्राडिक्शंस का तोड़ निकाल रहा है.
'गहराइयां' एक एडल्ट फिल्म है. एडल्ट से हमारा मतलब उम्र या अश्लीलता नहीं, मच्योरिटी से है. ये फिल्म उन लोगों के लिए हैं जो समझदार हैं. समझदार यानी जो कुछ समझते हैं और बहुत कुछ समझना चाहते हैं. जो प्रेम के घिसे-पिटे कॉन्सेप्ट में यकीन नहीं रखते. जब से 'गहराइयां' का ट्रेलर आया है, तब से इसकी तुलना 'कभी अलविदा ना कहना' से हो रही है. क्योंकि वो फिल्म भी तकरीबन इसी बारे में बात करती है कि आपको जिस किसी से भी प्यार है, वो एक समय के बाद खत्म हो सकता है. आपको दोबारा किसी से प्यार हो सकता है. पब्लिक को तब ये कॉन्सेप्ट ज़्यादा समझ नहीं आया. अब 'गहराइयां' कमोबेश वही चीज़ करने की कोशिश करती है. मगर थोड़े डेप्थ के साथ. वो प्रेम में पड़ने, उससे निकलने और फिर से प्यार करने के पूरे प्रोसेस को समझने की कोशिश करती है. ये क्यों होता है? कैसे होता है? इसके क्या नतीजे हो सकते हैं? टाइप के बेसिक सवाल के जवाब ढूंढने की कोशिश करती है.

अपनी मंगेतर टिया के साथ ज़ेन. ज़ेन बिज़नेसमैन है, जिसमें टिया की फैमिली का भी पैसा लगा हुआ है.
'गहराइयां' दिखने में बड़ी फैंसी और शो ऑफ टाइप की फिल्म लगती है. मगर ये बात उन चीज़ों के बारे में करती है, जो दिखाई नहीं देते. रिलेशनशिप्स, उन्हें बनाए-बचाए रखने की बेशुमार कोशिशें. उस कोशिश में बोले जाने वाले झूठ. छुपाए जाने वाले सच. और तमाम तरह के फर्जीवाड़े. कमाल की बात ये कि आप इन सब चीज़ों से किसी न किसी लेवल पर रिलेट करते हैं. मगर जिस तरह से इस फिल्म की कहानी पैन आउट होती है, वो काफी अनरियल और फिल्मी लगता है. अगर आप इस कहानी को समझने की कोशिश करेंगे, तो बहुत सारे लूप होल्स और ऐसे सवाल पाएंगे, जिनके जवाब ये फिल्म नहीं देती. क्योंकि फिल्म को लगता है कि कॉम्प्लिकेटेड होना उसकी यूएसपी है. और इससे काम चल जाएगा. मगर ऐसा हो नहीं पाता.

ज़ेन और अलिशा एक-दूसरे के प्रति अट्रैक्ट हो जाते हैं. मगर इनकी कहानी काफी डार्क तरीके से खत्म होती है.
'गहराइयां' की खास बात ये है कि वो आज के टाइम में आज के लोगों की कहानी दिखा रही है. इससे ज़्यादा उस फिल्म के पास कहने को कुछ नहीं है. वो हमारा दुर्भाग्य है कि हमें कॉम्प्लिकेटेड ह्यूमन नेचर के अराउंड ज़्यादा फिल्में देखने को नहीं मिलतीं. अगर बनती भी हैं, तो उसमें दीपिका पादुकोण जैसे स्टार्स नहीं होतीं. जिसकी वजह से वो फिल्म कम लोगों तक पहुंच पाती है. दीपिका पादुकोण ने फिल्म में अलिशा का रोल किया है. ये उनके करियर का बेस्ट परफॉरमेंस है. फिल्म में एक सीन है, जब अलिशा ज़ेन से कहती है-
''मैंने करण को अपने लिए छोड़ा है, तुम्हारे लिए नहीं.''
उसे क्लैरिटी है कि वो क्या कर रही है और क्यों कर रही है. मगर कुछ इमोशंस ऐसे होते हैं, जिन पर आपका कंट्रोल नहीं होता. प्रेम उन्हीं भावों में से एक है, जिससे अलिशा गुज़र रही है. वो जो कुछ भी सोचती है, वो सबकुछ उसके व्यवहार और बर्ताव में रिफ्लेक्ट होता है. चेहरे पर नज़र आता है. सिद्धांत चतुर्वेदी सुआव और हैंडसम दिखते हैं. मगर गली बॉय के बाद से उनसे उम्मीदें बहुत बढ़ गई हैं. उनका कांटा ज़रा भी हिलता, तो वो खलने लगता है. अनन्या पांडे हीरोइन से एक्टर में तब्दील हो रही हैं. ये 'गहराइयां' के सेकंड हाफ में उन्हें देखकर पता चलता है. धैर्य करवा के पास करने को ज़्यादा कुछ है नहीं. प्लस उनकी अपनी कोई स्टोरी भी नहीं है. आपको उस कैरेक्टर के बारे में इतना भी नहीं पता कि आप उसके बारे में कोई राय बना सकें. फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और रजत कपूर भी दिखाई देते हैं. फिल्म का एक सीन है, जिसमें रजत कपूर का किरदार जितेश, अलिशा से कहता है-
''Get the fu** out of here. I don't want to see your face.''
ये किसी को कहने के लिहाज़ से बहुत बुरी बात है. मगर जिस तरह से ये बात कही गई, वो फिल्म से मेरा सबसे पसंदीदा हिस्सा है.

फिल्म के एक सीन में रजत कपूर. हालांकि ये वो सीन नहीं है, जिसका ज़िक्र हमने ऊपर किया था.
'गहराइयां' एक वॉचेबल फिल्म है. मगर ये वो फिल्म नहीं है, जो ये बनना चाहती थी. अगर आप रिलेटेबल कॉन्टेंट देखना चाहते हैं, तो इसे देखा जा सकता है. मगर इसे देखने के दौरान आपको ये चीज़ ध्यान रखना होगी कि ये अल्टीमेटली सिनेमा है.