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रिव्यू सुसाइड स्क्वाड: जोकर की आत्मा को ही मार दिया

फ़िल्म भौकाली लग रही थी. इंतज़ार था बहुत दिनों से. अब रिलीज़ हुई है.

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फोटो - thelallantop
सुसाइड स्क्वाड. सुपरमैन मर चुका है. अब इंतज़ार है अगले सुपरमैन का. मतलब अगले महामानव का. मतलब अगले सुपरहीरो का. लेकिन चिंता इस बात की है कि क्या अगला सुपरमैन आएगा? और संशय इस बात का है कि अगर आ भी गया तो क्या ज़रूरी है कि वो इंसानों की मदद ही करेगा. सवाल एकदम वाजिब है. जो उनके दुश्मन होते हैं, वो भी तो सुपरमैन ही होते हैं. महामानव. सुनने में बहुत ही सरकारी भाषा मालूम देती है लेकिन ये सभी होते तो महामानव ही हैं. हमारे-आपके जैसे रिव्यू लिखने-पढ़ने वाले तो बस मानव ही रह जाते हैं. तो इस संशय पर कि क्या अगला सुपरमैन आदम जात के फेवर में ही लड़ाइयां लड़ेगा, डिस्कशन किया जा रहा है. अमांडा वॉलर इसका इलाज लेके आती हैं. कहती हैं कि उनके पास पहले से ही कुछ ऐसे लोग हैं जो 'आम आदमी' नहीं हैं. ये वो लोग हैं जिन्हें उनकी सरकार ने ही जेल में बंद किया हुआ है. हालांकि वो सभी बेहद खतरनाक हैं. लेकिन वॉलर कुछ तरकीबों से उन सबकी एक आर्मी बनाकर अगले गंदे सुपरमैन से दुनिया को बचाने का प्लान बनाती हैं. ऐसे ही एक बुरे सुपरमैन से लड़ने जाते वक़्त बुरे लोगों की ये टोली उन हालात में पहुंच जाती है, जहां वो नहीं जीती तो मर ही के वापस आएगी. यहां उसे नाम मिलता है सुसाइड स्क्वाड. और उनकी उस लड़ाई की ही कहानी है इस फ़िल्म में. इस सुसाइड स्क्वाड में हाथ से आग फेंकने वाले डायाब्लो के रोल में हैं जे हरनैन्डेज़. सीवर में रहने वाले आधे इंसान और आधे मगरमच्छ यानी किलर क्रॉक के रोल में हैं एडवेल. कभी भी निशाना न चूकने वाले हिटमैन डेडशॉट का रोल कर रहे हैं विल स्मिथ.  रिक फ्लैग के रोल में जोएल किनामन हैं. कैप्टन बूमरैंग का रोल प्ले किया है जे कर्टनी ने. सबसे भयानक तलवारबाज़ कटाना के रोल में हैं केरेन फ्यूकूहारा. हार्ले क्विन का रोल प्ले किया है मार्गट रॉबी ने. suicide squad इस फ़िल्म का ट्रेलर साल 2015 के कॉमिक कॉन फेस्ट में आया था. हाल ये था कि लोग एरीना से अपने फ़ोन पर ट्रेलर को रिकॉर्ड कर यूट्यूब पर अपलोड कर रहे थे. और उस दिन से ही इस फिल्म का इंतज़ार किया जाने लगा था. फ़िलहाल समाचार ये है कि इस फिल्म ने उस इंतज़ार की बैंड बजा दी है. खोदा पहाड़ तो चुहिया भी नहीं निकली. चुहिया के बाल मिले बस. मेरे जैसे वो लोग जिन्होंने कल सुबह उठकर सबसे पहले फिल्म के टिकट्स बुक किये थे, हद से ज़्यादा निराश हुए होंगे. ट्रेनिंग डे, एंड ऑफ़ वॉच और फ्यूरी जैसी फ़िल्में बनाने वाले डेविड एयर ने न जाने क्या सोचकर इस फ़िल्म को लिखा और डायरेक्ट किया. मालूम देता है कि उन्हें एक रोज़ बस ऐसा कुछ धाकड़ सा ख्याल आया होगा. जिसमें सभी बुरे लोग हीरो जैसे लड़ रहे होंगे. धकापेल गोलियां चल रही होंगी. खूब आग-वाग लगी होगी. और उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे बस लिखना शुरू कर दिया. एकदम एक्साइटमेंट में. खुद लिखी और खुद डायरेक्ट की. और बनी ये. सुसाइड स्क्वाड.

जोकर का सत्यानास

जोकर का कैरेक्टर उतना ही ग्लोरिफाइड है, जितना बैटमैन. दोनों ही एक दूसरे जितना ज़रूरी हैं. ऐसा लगता है जैसे डेविड एयर, द डार्क नाइट के बाद बनी जोकर की इमेज और फिर से ताज़ी हुई जोकर की लेगसी को भुनाना चाहते थे. वो जोकर जो बैटमैन से कहता है कि बैटमैन और जोकर एक ही जैसे फ्रीक हैं. वो उसे आगाह करता है कि गॉथम के लोग आज तो उसे चाहते हैं लेकिन एक दिन कूड़े की माफ़िक उसे किनारे कर देंगे. वो जोकर जो मुसीबत के वक़्त सारी मॉरल साइंस को गटर में फेंक देने की इंसानी फितरत को इतने नंगे तरीके से सामने रखता है कि हमें खुद पर कुछ शर्म ज़रूर आती है. वही जोकर इस फ़िल्म में अपने नाम को सार्थक करता हुआ मालूम पड़ रहा है. joker 2 नोलान का बनाया जोकर अपने साथ अराजकता ओढ़ कर चलता था. ये जोकर क्यूं है, मालूम ही नहीं. वो जोकर जो कहता था कि मैं प्लान बनाने वाला लगता हूं क्या? इस फ़िल्म में एक प्लान के मुताबिक़ काम करता हुआ दिख रहा है. वो जोकर जिसने कभी गॉथम के सबसे खतरनाक और सबसे बुरे लोगों के पैसों को हथिया उनमें आग लगा दी थी, इस फिल्म में पैसों और तमाम दौलत में डूबा दिखता है. वो जोकर जिसके बाप ने उसके चेहरे पर मुस्कान लाने की खातिर उसके गालों में चीरा लगा दिया था, और जो किसी भी इंसान से या किसी भी चीज से मोह नहीं रखता था, इस फ़िल्म में इश्क़ फ़रमाते हुए मिलता है. joker why-i-think-the-joker-is-the-villain-of-suicide-squad-527996सुसाइड स्क्वाड में जोकर की आत्मा को मार दिया गया है. इस फ़िल्म में जेरेड लेटो जोकर बने हैं. हीथ लेजर के बाद इस बार उनके कन्धों पर काफ़ी भार था. उनकी ऐक्टिंग पर सवाल तो नहीं खड़े किये जा सकते हैं क्यूंकि उसके लिए कैरेक्टर को ढंग से लिखा जाना भी ज़रूरी था. अगर एक कैरेक्टर बनाया जाता है, उसे डेवेलप किया जाता है, तो ये ज़रूरी है कि उसकी जो भी प्रॉपर्टीज़ हैं, उन्हें कायम रखा जाए. कम्प्यूटर साइंस का स्टूडेंट रहने के नाते इस बात पर मेरा ख्याल और भी ज़्यादा जाता है. प्रोग्राम बनाते वक़्त क्लास बनाई जाती हैं. तमाम क्लासों में तमाम काम चल रहे होते हैं. हर क्लास की अपनी खासियत होती है. उसके अपने गुण होते हैं. फ़िल्म के कैरेक्टर्स भी क्लास होते हैं. जोकर भी एक क्लास है. उसकी अपनी खासियत हैं. जो इस फिल्म में नहीं मिलतीं. बल्कि कई बातों में तो ठीक उल्टा दिखता है. कुल मिलाकर फ़िल्म वैसी बिलकुल भी नहीं है, जैसी आप और मैं सोच रहे थे. फ़िल्म नहीं बनती तो भी काम चल जाता. कहानी कतई कॉमिक बुक मटीरियल थी. फ़िल्म के लिए कुछ और वजन चाहिए था, जो नहीं है. फ़िल्म बदरंग, बेस्वाद, जल्दबाज़ी में सोची गयी फिल्म है. इतने कूल कैरेक्टर्स होने के बावजूद बोरिंग फ़िल्म बन जाना पूरी तरह से बनाने वालों का फ़ेलियर दिखाता है. ये एक ऐसा मौका था, जहां बैड गाइज़ को एक साथ लड़ते हुए दिखाया, गुड थिंग करते हुए दिखाया जा सकता था और ये इतिहास रच सकता था. लेकिन ये ऐसे फ़ेल हुआ जैसे यूरो कप में क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने ऑस्ट्रिया के ख़िलाफ़ पेनाल्टी छोड़ दी हो. 

फ़िल्म थ्री-डी में है. जिसमें मर्जी आये देखो. नहीं देखना है, न देखो. 

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और हां, फ़िल्म में आवाज़ गायब कर देने वाली सेंसरशिप को सलाम. सरकारी नियमों के मुताबिक़ अब सारी मॉरल साइंस की क्लासें थियेटर के अन्दर ही चलती हैं. मज़े की बात ये है कि ये 'शिट' को नहीं सेंसर करते हैं. लेकिन 'बिच' को गायब कर देते हैं. व्हिच मीन्स टट्टी इज़ बेटर दैन कुतिया. इति श्री.

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