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फिल्म रिव्यू- भवाई

इस पूरी फिल्म का मक़सद ही ये है कि हम परदे पर दिखने वाले एक्टर, इंसान और भगवान में फर्क कर सकें. मगर वो हो नहीं पाता!

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फिल्म 'भवाई' का एक सीन, जिसमें रावण के पुतले के साथ रावण का किरदार निभाने वाला एक्टर नज़र आ रहे हैं. फिल्म में ये रोल किया है प्रतीक गांधी ने.
सिनेमाघरों में 'रावण लीला' नाम की एक फिल्म रिलीज़ होने वाली थी. फिर उसका नाम बदलकर 'भवाई' कर दिया गया. क्योंकि फिल्म के नाम को लेकर एक तबका आहत महसूस कर रहा था. मगर फिल्म को देखने के दौरान ये रियलाइज़ होता है कि नाम वो इकलौती चीज़ नहीं थी, जिसे बदला गया था. जब 'भवाई' का ट्रेलर आया था, उससे पहला इंप्रेशन ये मिला था कि ये बड़ी रेलेवेंट और ब्रेव फिल्म होगी. मगर फिल्म को देखने के दौरान ये भाव जाता रहता है. खैर, इन मसलों पर आगे विस्तार से बात करते हैं.
फिल्म 'रावण लीला' का पोस्टर, जिसका नाम बदलकर 'भवाई' कर दिया गया.
फिल्म 'रावण लीला' का पोस्टर, जिसका नाम बदलकर 'भवाई' कर दिया गया.


'भवाई' की कहानी गुजरात में रहने वाले एक लड़के की है. इस लड़के का नाम है राजा राम जोशी. उसे एक्टर बनना है. मगर उसके गांव में फिल्म और ड्रामा तो छोड़िए, रामलीला तक नहीं होती थी. मगर अचानक से खाखरा नाम के इस गांव में रामलीला का मंचन करने एक मंडली आती है. इसमें राजा राम नाम के इस लड़के को रावण का रोल करने का मौका मिलता है. नाटक वगैरह के चक्कर में राजा को सीता बनी एक्ट्रेस रानी से प्रेम हो जाता है. मगर सीता और रावण का मिलन संभव नहीं है. क्योंकि हमें बचपन से जो कहानी दिखाई-पढ़ाई गई है, रावण उसका विलन है. रावण और सीता की मायथोलॉजिकल बैकस्टोरी के चक्कर में राजा और रानी की लव स्टोरी का क्या होता है, ये जानने के लिए आपको पिक्चर देखनी पड़ेगी.
नाटक कंपनी में कोई भी छोटा-मोटा रोल मांगता अपना हीरो राजा राज जोशी.
नाटक कंपनी में कोई भी छोटा-मोटा रोल मांगता अपना हीरो राजा राज जोशी.


'भवाई' में राजा राम जोशी का रोल किया है 'स्कैम 1992' फेम प्रतीक गांधी ने. ये प्रतीक की पहली हिंदी फिल्म है. इससे पहले वो कई गुजराती फिल्मों में काम कर चुके हैं. प्रतीक बिल्कुल बॉय नेक्स्ड डोर वाली फीलिंग देते हैं. इसलिए आपकी आंखों के सामने वो राजा राम और रावण जैसे दो कॉन्ट्रास्ट कैरेक्टर प्ले कर जाते हैं और आप उनकी परफॉरमेंस से कन्विंस हो जाते हैं. फिल्म में रानी और रामलीला में सीता का रोल किया है एंद्रिता राय. एंद्रिता का कैरेक्टर जल्दबाज़ी में समेटा हुआ सा लगता है. मगर जितनी देर हमें वो स्क्रीन पर दिखती हैं, खलती नहीं है. नाटक कंपनी के मालिक भंवर के रोल में अभिमन्यु सिंह. मगर उनका कैरेक्टर बिल्कुल सतही है. रेगुलर विलन टाइप कैरेक्टर, जो पूरी तरह से खुलकर नहीं आ पाता. इनके अलावा फिल्म में अंकुर भाटिया, फ्लोरा सैनी, राजेश शर्मा, राजेंद्र गुप्ता और अनिल रस्तोगी जैसे वेटरन एक्टर्स भी नज़र आने वाले हैं. जिनमें से राजेश शर्मा को थोड़ा-बहुत स्क्रीनटाइम मिल पाता है.
रावण बन सीता को किडनैप करता रानी का प्रेमी राजा.
रावण बन सीता को किडनैप करता रानी का प्रेमी राजा.


अब आते हैं मेन मुद्दे पर. 'भवाई' दो चीज़ें करने की कोशिश करती है. पहली, ये फिल्म मणिरत्नम की 'रावण' की तरह राम और रावण के कैरेक्टर को एक्सचेंज करने की कोशिश करती है. और दूसरी, वो राम और रावण के साथ रियल लाइफ पैरलल बिल्ड करती है. क्योंकि राजा राम नाम का अपना हीरो रामलीला में रावण का किरदार निभाता है. इसे ऐसे समझिए कि रियल लाइफ राम को रील लाइफ सीता से प्यार हो जाता है. मगर उसके रामलीला में रावण बनने की वजह से इस प्रेम कहानी को रावण और सीता के बीच हुए प्रेम की तरह देखा जाने लगता है. ये सिचुएशन ज़ाहिर तौर पर थोड़ा ट्रिकी है. मगर इस फिल्म का फोकस इस प्रेम कहानी पर नहीं है. ये फिल्म उस चीज़ को समझने की कोशिश करती है कि जनता रावण और सीता के इस इक्वेशन को कैसे रिसीव करती है. यही चीज़ है, जो इस फिल्म को दूसरी फिल्मों से अलग करती है.
दुनिया को खटकती राजा और रानी की प्रेम कहानी. क्योंकि वो राणव और सीता के वेश में हैं
दुनिया को खटकती राजा और रानी की प्रेम कहानी. क्योंकि वो राणव और सीता के वेश में हैं.


'भवाई' मायथोलॉजी में पांव टिकाए आज के जमाने को टटोलने की कोशिश करती है. और आपको दिखता है कि फिल्म अपने कॉज़ को लेकर काफी गंभीर भी है. मगर इस फिल्म के साथ वही चीज़ हो जाती है, जिसका ये विरोध करना चाहती है. 'भवाई' लोगों को किसी किरदार और इंसान में फर्क बताने की कोशिश करती है. मगर लोग फिल्म देखकर ये बात समझते, उससे पहले ही ये फिल्म जनता के निशाने पर आ जाती है. लोग 'रावण लीला' नाम सुनकर ऑफेंड हो जाते हैं. लोगों को लगता है कि ये फिल्म रावण जैसे माने हुए विलन के कृत्यों का महिमामंडन यानी ग्लोरिफिकेशन करने वाली है. इस प्रेशर में फिल्म का नाम बदला जाता है. लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि रावण लीला एक फिल्म है, जिसके अंदर रामलीला हो रही है. उस राम लीला में हिस्सा लेने वाले दो लोग प्रेम में पड़ जाते हैं. ये रावण और सीता की नहीं, राजा और रानी की लव स्टोरी है. जो लोग इतनी सिंपल सी बात समझने को तैयार नहीं हैं, उनसे आप इस फिल्म के मैसेज को रिसीव करने की उम्मीद कर रहे हैं. ऐसे में चार्ल्स डिकेंस की एक नॉवल का नाम है याद आता है- Great Expectations.
रावण और सीता की लव स्टोरी की बात पब्लिक होने के बाद उन्हें अलग करने के लिए ढूंढती पब्लिक.
रावण और सीता की लव स्टोरी की बात पब्लिक होने के बाद उन्हें अलग करने के लिए ढूंढती पब्लिक.


अगर आपने 'रावण लीला' का ट्रेलर देखा हो, तो आपको उसके आखिर में आने वाला डायलॉग ज़रूर याद होगा. रामलीला में रावण का रोल करने वाला राजा, राम से पूछता है-
''अगर सीता का अनादर करने की सजा रावण को मिली, तो फिर शूर्पणखा के साथ बेअदबी करने की सजा राम को क्यों नहीं मिली?''
सिर्फ इस डायलॉग से पूरी फिल्म का मिजाज़ साफ हो जाता है. मगर हैरानी की बात ये कि फिल्म में ये डायलॉग और सीन है ही नहीं. 'भवाई' में एक सीन है, जहां रामलीला शुरू होने को मगर है राम का रोल करने वाला एक्टर भूरा लोकेशन पर नहीं पहुंचा. अगले ही पल हमें पता चलता है कि भूरा इसलिए लेट हो गया क्योंकि वो शराब लेने गया था. मगर इस सीन में आपको 'शराब' शब्द सुनने को नहीं मिलेगा क्योंकि उसे म्यूट कर दिया गया है. हालांकि लिप रीड करके आसानी से समझा जा सकता है कि वो किरदार क्या कह रहा था. 'शराब' शब्द को म्यूट करने के पीछे की वजह साफ है कि राम जी शराब नहीं पी सकते. मगर इस पूरी फिल्म का मक़सद ही ये है कि हम परदे पर दिखने वाले एक्टर, इंसान और भगवान में फर्क कर सकें.
फिल्म के एक सीन में रथ यात्रा में हिस्सा लेते राम, सीता और लक्ष्मण बने एक्टर. यहां राम शिकायत करते हैं कि उन्हें भगवान बनकर बहुत बुरा लग रहा है. क्योंकि वो लोग गांव-गांव घूम रहे हैं और कोई उनसे पानी तक नहीं पूछ रहा.
फिल्म के एक सीन में रथ यात्रा में हिस्सा लेते राम, सीता और लक्ष्मण बने एक्टर. यहां राम शिकायत करते हैं कि उन्हें भगवान बनकर बहुत बुरा लग रहा है. क्योंकि वो लोग गांव-गांव घूम रहे हैं और कोई उनसे पानी तक नहीं पूछ रहा.


ये तो वो सीन्स थे, जो हमें दिख गए. न जाने ऐसे और कितने सीन्स इस फिल्म से काट दिए गए. इससे हुआ ये कि इस फिल्म को बनाने का पर्पस डिफीट हो गया है. जब एक दर्शक के तौर पर मुझे इस चीज़ से इतनी दिक्कत है, तो इस फिल्म के मेकर्स के बारे में सोचिए. जिन्होंने इतने जतन से एक फिल्म बनाई थी, जिसके थ्रू वो पब्लिक से कुछ बात करना चाहते थे. ये बिल्कुल वैसे ही कि मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं मगर आप मेरे काम की बात छोड़कर बाकी सब सुन पा रहे हैं.

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