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धर्मेंद्र के वो यादगार डायलॉग्स जो अनंत तक गूंजते रहेंगे‌‌‌...

24 नवंबर को धर्मेंद्र का निधन हो गया, हम उन्हें याद कर रहे हैं उन्हीं के बेजोड़ डायलॉग्स से.

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धर्मेंद्र ने साल 1960 में 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' से एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी.

Dharmendra... सैकड़ों यादगार फिल्में और दर्जनों डायलॉग्स, जो सदियों तक भुलाए नहीं जा सकेंगे. बसंती... इन कुत्तों के सामने मत नाचना... आवाज़ में ऐसा गहराई जैसे किसी अंधे कुएं से उठ रही हो. तिस पर दांत भींच कर बोलने का उनका अंदाज़, उनके हर हर्फ़ को अमर कर गया. धर्मेंद्र डायलॉगबाज़ी वाले दौर के एक्टर हैं. जब लोग सिनेमाघरों में सिक्कों की पोटलियां लेकर जाते थे. और जब भी कोई डायलॉग पसंद आता, तो मुट्ठीभर सिक्के स्क्रीन की तरफ़ उछाल देते. धर्मेंद्र के डायलॉग्स पर लोगों ने सिक्के ही नहीं, दिल भी लुटाए. 24 नवंबर को अनंत तो अनंत  में विलीन हो गए. मगर वो ऐसे कई संवाद, कई दृश्य छोड़ गए हैं, जो सदियों तक गूंजते रहेंगे. पढ़िए धर्मेंद्र के चुनिंदा, ज़िंदा, ज़िंदादिल डायलॉग…

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"ये दुनिया बहुत बुरी है शांति, जो कुछ देती है बुरा बनने के बाद देती है."

फिल्म: ‘फूल और पत्थर’, 1966
किरदार: शक्ति सिंह

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फिल्म ‘अनुपमा’ में धर्मेंद्र के ऑपाजिट शर्मिला टैगोर ने काम किया था. 

“अगर तक़दीर में मौत लिखी है तो कोई बचा नहीं सकता, अगर जिंदगी लिखी है तो कोई माई का लाल मार नहीं सकता'.”

फिल्म: ‘धरम वीर’, 1977 
किरदार: धरम

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‘धरम वीर’ में जितेंद्र ने वीर नाम का किरदार निभाया था. 

“इश्क़ एक इबादत है, और इबादत में झूठ नहीं चलता.”

फिल्म: ‘आया सावन झूम के’, 1969 
किरदार: जयशंकर

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‘आया सावन झूम के’ फिल्म की सफलता में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत का बड़ा हाथ था. 

“दिल भी कोई चीज़ है, जो हर किसी को दे दूं?”

फिल्म: ‘अनुपमा’, 1966
किरदार: अशोक 

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“ये तो सो रहा था अमन के बादलों को अपना तकिया बनाकर. इसे जगाया भी तुमने है और उठाया भी तुमने.”

फिल्म: 'जीने नहीं दूंगा', 1984 
किरदार: रोशन. इस फिल्म में धर्मेंद्र ने डबल रोल किया था. दूसरे किरदार का नाम था राका.

“कभी ज़मीन से बात की है ठाकुर? ये ज़मीन हमारी मां है.”

फिल्म: ‘ग़ुलामी’, 1985 
किरदार: रणजीत सिंह चौधरी

"हम वो नहीं जो पीछे हट जाएं, हम वो हैं जो मौत को भी हरा दें..."

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‘ग़ुलामी’ में मिथुन, स्मिता पाटिल और अनीता राज भी अहम किरदारों में थे. 

फिल्म: ‘धरम वीर’, 1977 
किरदार: धरम

"ना मैं गिरता हूं, ना मुझे कोई गिरा सकता है… मैं इंसान हूं, पत्थर नहीं." 

फिल्म: 'लोफर', 1973 
किरदार: रणजीत

“मर्द बनने के लिए शरीर नहीं, हिम्मत चाहिए.” 

फिल्म: ‘धरम वीर’, 1977 
किरदार: धरम

“मर्द का खून और औरत के आसूं जब तक न बहे… उनकी कीमत नहीं लगायी जा सकती.”

फिल्म: ‘धरम वीर’, 1977 
किरदार: धरम

“अगर मैं सच्चाई के साथ हूं, तो दुनिया की कोई ताक़त मुझे हरा नहीं सकती.”

फिल्म: ‘खुद्दार’, 1982
किरदार: किशन

"ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए… लंबी नहीं।" 

फिल्म: 'लाइफ इन अ मेट्रो', 2007 
किरदार: अमोल

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साल 2007 में आई फिल्म ‘लाइफ इन अ मेट्रो’ में धर्मेंद्र के साथ नफ़ीसा अली ने काम किया था. 

“वेन आई डेड, पुलिस कमिंग… पुलिस कमिंग, बुढ़िया गोइंग जेल… इन जेल बुढ़िया चक्की पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग.”

फिल्म: ‘शोले’, 1975
किरदार: वीरू

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‘शोले’ फिल्म में धर्मेंद्र का ये सीन और ये डायलॉग कल्ट है. 

"ओए! इलाका कुत्तों का होता है, शेर का नहीं."

फिल्म: ‘यमला पगला दीवाना’, 2011
किरदार: धरम सिंह ढिल्लों

"दिल के मामले में हमेशा दिल की सुननी चाहिए."

फिल्म: 'लाइफ इन अ मेट्रो', 2007 
किरदार: अमोल

"किसी भी भाषा का मज़ाक उड़ाना घटियापन है और मैं वही कर रहा हूं." 

फिल्म: ‘चुपके-चुपके’, 1975
किरदार: प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी 

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‘चुपके-चुपके’ में अमिताभ बच्चन सेकेंड लीड थे. शर्मिला टैगोर इसकी फीमेल लीड थीं. 

वीडियो: हेमा मालिनी और ईशा देओल धर्मेंद्र के मौत की झूठी खबरों से हुई नाराज, मीडिया पर भड़की

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