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बवाल: मूवी रिव्यू

'बवाल' हमारी सोच से ठीक उलट फिल्म साबित होती है. सेकंड हाफ आपको चौंका देता है. एक अलहदा कहानी का अलहदा ट्रीटमेंट.

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'बवाल' एक अलग तरह की प्रेम कहानी है

'दंगल' बनाने वाले नितेश तिवारी ने एक पिक्चर बनाई है, 'बवाल'. इसमें वरुण धवन और जान्हवी कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं. तो फिल्म जिसका नाम 'बवाल' है, अपने आप में एक बवाल पिक्चर है या नहीं? ये रिव्यू स्पॉइलर फ्री नहीं है. इसलिए अपने रिस्क पर आगे बढ़े. हालांकि ऐसा नहीं होगा कि ये रिव्यू आपका 'बवाल' देखने का एक्सपीरियंस स्पॉइल करेगा. शायद रिव्यू के बाद आप फिल्म और संजीदगी से देखें.

ये कहानी है अजय की. इन्हें पूरा लखनऊ प्यार से अज्जू भैया कहता है. वो एक स्कूल टीचर हैं. इसके अलावा नासा में साइंटिस्ट बनते-बनते रह गए. आर्मी ऑफिसर, कलेक्टर, क्रिकेटर भी बन सकते थे. लेकिन कुछ न कुछ समस्या आ गई. फिलहाल उनके पास हर विषय का ज्ञान है, सिवाय इतिहास के, जिसके वो टीचर हैं. जो भी हो, अज्जू भैया ने अपनी इमेज एकदम भौकाली बना रखी है. और इसी इमेज की ही उन्हें चिंता है. जैसे वो असल में हैं, वैसे किसी को दिखाते नहीं. इसलिए ही एक टॉपर और बहुत समझदार लड़की निशा से शादी कर ली है. पर शादी की रात ही अज्जू को निशा के बारे में कुछ ऐसा पता चलता है कि वो उसे डिफेक्टिव पीस लगने लगती है.

# मुझे निजी तौर पर 'बवाल' का ट्रीटमेंट काफ़ी पसंद आया. बीच-बीच में नितेश तिवारी ऐसी जगह पर छोड़ देते हैं, कि आप वर्ल्ड वॉर 2 के बीच में कहीं खड़े हों. ऐसा लगता है कि कोई वॉर फिल्म स्क्रीन पर चल रही है. ये साधारण होकर भी असाधारण ट्रीटमेंट है. वॉइसओवर के ज़रिए बीच-बीच में फिल्म डॉक्यूमेंट्री में तब्दील हो जाती है. नितेश तिवारी को इस बात का बहुत सही इल्म है कि दर्शक किस बात पर हंसेंगे या फिर किस जगह पर इमोशनल होंगे. वो बतौर दर्शक आपको कंट्रोल करते हैं. हंसाते-गुदगुदाते हुए नितेश आपको धीरे से ऐसे इमोशनल क्रेसेंडो पर लाकर खड़ा कर देते हैं, आप समझ ही नहीं पाते.

# खैर, नितेश तिवारी ये सब कर पाए क्योंकि उनके पास एक अच्छी कहानी थी. अश्विनी अय्यर तिवारी ने बहुत अलग कहानी लिखी है. ये एक नॉर्मल रिलेशनशिप फिल्म नहीं है. शायद भारत में बनी इस तरह की अब तक की सबसे अलहदा कहानी. इस कहानी को अच्छी तरह से स्क्रीनप्ले में ढाला है पियूष गुप्ता, निखिल महरोत्रा, श्रेयस जैन और खुद नितेश तिवारी ने. हालांकि ये स्क्रीनप्ले धैर्य मांगता है. फर्स्ट हाफ में असली मज़ा नहीं है. इसमें आपको हंसी आएगी. लेकिन सेकंड हाफ में शॉक लगेगा.

# अब यहां एक स्पॉइलर आने वाला है दोस्तों. जिस तरीके से सेकंड वर्ल्डवॉर को वर्तमान के साथ जोड़ा गया है, कमाल है. इंसानी मन के युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के पैरलल बहुत अच्छे तरीके से ड्रा किए गए हैं. जैसे किसी जमाने में हिटलर के कॉन्संट्रेशन कैम्प में लोग रहते हैं. वैसे ही यहां निशा और अजय रह रहे हैं. जैसे गैस चेम्बर में लोग घुटते होंगे. यहां निशा और अजय घुट रहे हैं. ऐसी तमाम समानताएं स्थापित करने की कोशिश हुई है. जान्हवी का किरदार एक जगह कहता भी है, "वर्ल्ड वॉर तो खत्म हो गई, लेकिन ये अंदर की वॉर कब खत्म होगी कोई नहीं जानता."

# फिल्म में कुछ रूपक बहुत अच्छे इस्तेमाल किए गए हैं. जैसे इंसान की प्रवृत्ति को हिटलर के समकक्ष खड़ा किया गया है. उदाहरण के लिए एक जगह डायलॉग भी है, "हम सब भी थोड़े बहुत हिटलर जैसे हैं, जो अपने पास है उससे खुश नहीं हैं." ऐसे ही एक गैस चैम्बर के अंदर का सीन है. सोचिए जहां हिटलर ने लाखों लोगों को मार दिया. उस जगह पर एक पति अपनी पत्नी का माथा चूम रहा है. क्या कमाल की जक्स्टापोजीशनिंग है.

# डेनियल बी. जॉर्ज का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत अच्छा है. जहां जैसे म्यूजिक की ज़रुरत है, वहां ठीक वैसा ही म्यूजिक. इमोशनल से लेकर लाइट हार्टेड सीन्स में डेनियल ने बहुत सटीक संगीत बजाया है. दरअसल अच्छे बीजीएम की वजह से भी वर्ल्डवॉर 2 के दृश्य देखना एक अलग अनुभव रहा.

# वरुण धवन ने ठीक काम किया है. उनका ये बेस्ट काम नहीं है. लेकिन खराब काम भी नहीं है. वो अपने अंदर का गोविंदा निकाल दें, तो मौज आ जाए. वरुण ने 'अक्टूबर' और 'बदलापुर' में ऐसा करके दिखाया भी है. लेकिन 'बवाल' में वो चूक गए हैं. हालांकि उन्होंने अपने रोल को पूरी तरह से जस्टीफाई किया है. जान्हवी कपूर अपने साथ की अभिनेत्रियों की तुलना में कंटेंट का चुनाव बहुत अच्छा कर रही हैं. अपनी पहली फिल्म से उनकी ऐक्टिंग में सुधार हुआ है. पर उन्हें अपनी अपनी डायलॉग डिलीवरी पर बहुत काम करना होगा. साथ ही जहां पर कम इमोशन में कम चल जाता, कई ऐसी जगहों पर जान्हवी इमोशन उड़ेल देती हैं. मनोज पाहवा तो मास्टर आदमी हैं. उनकी एक्टिंग पर क्या ही कमेंट करना. प्रतीक पचौरी ने भी ठीक काम किया है.

# फिल्म के साथ एक दिक्कत मुझे लगी. जैसे आप वर्ल्ड वॉर का कोई सीन देख रहे हैं. आप उसमें एकदम घुस चुके हैं और अचानक से स्कूल पॉलिटिक्स का कुछ सीन आ जाता है. माने सारा एक्सपीरियंस डाइल्यूट हो जाता है. इसके अलावा मुझे फिर वही समस्या है कि लखनऊ में रहने वाले लोगों में कनपुरिया उच्चारण आ जाता है.

खैर, ये सब जो भी दिक्कतें हों. फिर भी फिल्म अपन ट्रीटमेंट के लिए एक बार ज़रूर देखी जा सकती है. 

वीडियो: मूवी रिव्यू : लस्ट स्टोरीज़ 2