The Lallantop

मूवी रिव्यू: अटैक

फिल्म ठीक उस बच्चे की तरह है जो परीक्षा से एक रात पहले पूरा सिलेबस कवर करना चाहता है. नहीं समझे? तो रिव्यू पढिए.

Advertisement
post-main-image
अगर फिल्म को एक लाइन में डिस्क्राइब करना हो तो ये कहा जाएगा कि इंडियन एक्टर्स को लेकर अंग्रेज़ी वाली फिल्म बनाने की कोशिश की. फोटो - ट्रेलर स्क्रीनशॉट
कुछ दिन पहले एक हिंदी फिल्म का ट्रेलर आया था, जो लुक एंड फ़ील से हॉलीवुड जैसी वाइब दे रहा था. फिल्म थी ‘अटैक’. जॉन अब्राहम स्टारर ये फिल्म रिलीज़ हो गई है. फिल्म में उन्होंने अर्जुन शेरगिल नाम के आर्मीमैन का रोल निभाया है. भरोसेमंद फ़ौजी, किसी से डरता नहीं, टिक टिक करते बॉम्ब का पहली बार में ही सही तार काटने वाला. किसी वजह से उसे इंडिया का पहला सुपर सोल्जर बनाया जाता है. नैनोटेक, बायोटेक जैसे शब्द ऑडियंस की तरफ फेंके जाते हैं, और अर्जुन बन जाता है एक सुपर सोल्जर.
attack
जॉन अब्राहम सुपर सोल्जर बने हैं.

हम इंडिया वाले घर के पुराने रीमोट तक को ठोक पीट कर चेक करते रहते हैं. फिर सुपर सोल्जर की भी टेस्टिंग होनी ही थी. देश पर बड़ा आतंकी हमला होता है, और बचाने का ज़िम्मा सिर्फ एक पर. आपके गेस करते ही 10 पॉइंट जाएंगे गरुडद्वार को. अर्जुन अपने मिशन पर आगे क्या करता है, यही आगे की कहानी है. इतना सुनकर आपको लगेगा कि यहां नया क्या है. ये तो पहले भी अनेकों बार देख चुके हैं. एक देशभक्त जो सुपर सोल्जर बनता है. जिसकी मदद एक रोबोट कर रही है. ऐसा हम हॉलीवुड फिल्मों में देख चुके हैं. मशीनों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कॉन्सेप्ट ही हमारे लिए विदेशी है. इस फिल्म पर हॉलीवुड फिल्मों का कितना इंफ्लूएंस है, ये बात मेकर्स भी जानते हैं.
फिल्म में एक जगह लाइन है जब सुपर सोल्जर की टेक्नॉलजी समझाई जा रही होती है, तब एक शख्स टोकता है कि हॉलीवुड फिल्म चल रही है क्या. अगर फिल्म को एक लाइन में डिस्क्राइब करना हो तो ये कहा जाएगा कि इंडियन एक्टर्स को लेकर अंग्रेज़ी वाली फिल्म बनाने की कोशिश की. पर ये समस्या नहीं. हर क्रिएटर पर किसी न किसी काम का इंफ्लूएंस रहता ही है. समस्या है अपनी अप्रोच में टिपिकल हो जाना. इतना टिपिकल की कुछ घटने से पहले ही अक्खा पब्लिक को मालूम है कि कौन आने वाला है. लड़का और लड़की पहली बार मिले, और कैसे, एक दूसरे से टकराकर. ये तरीका इतना ओवर यूज़ हो चुका है कि अब चीज़ी कहने का भी मन नहीं करता. लड़की की दोस्त का वेट थोड़ा ज्यादा होगा, इसलिए लड़का अपना अटेंशन लड़की के लिए बचाकर रखेगा, और इग्नोरेंस उसकी दोस्त के लिए.
john abraham
फिल्म का एक्शन ही उसका सबसे स्ट्रॉन्ग पार्ट है.

फिर आते हैं गाने. जिनके बहाने स्टोरी को कहां से कहां ले जाया जाता है. हम समझते हैं कि फिल्म कुछ भी कर के सुपर सोल्जर वाले हिस्से तक पहुंचना चाहती थी. लेकिन उससे पहले की कहानी को स्पेस दिया जा सकता था. खासतौर पर कुछ सीन जो कैरेक्टर के लिए मेक ऑर ब्रेक पॉइंट थे, ऐसे सीन्स को भी जल्दी-जल्दी भगाने के चक्कर में डेप्थ विहीन छोड़ दिया गया. 01 घंटे 45 मिनट की फिल्म खत्म होने के बाद याद करें तो लाउड मोमेंट्स दिमाग में आते हैं. फिल्म का पूरा ज़ोर ऐसे ही मोमेंट्स पर टिका था. अर्जुन की फैमिली, लव लाइफ सभी को कवर करना चाहते थे, पर सही तरीके से कर नहीं पाए. ठीक उस बच्चे की तरह जो एग्ज़ैम से एक रात पहले पूरा सिलेबस कवर करना चाहता है, पर पुख्ता तौर पर एक चैप्टर भी तैयार नहीं कर पाता.
फिल्म की हड़बड़ाती राइटिंग की वजह से एक्टिंग पार्ट के हिस्से कोई यादगार परफॉरमेंस नहीं आती. बाकी एक-दो जगह जॉन को अपनी इमोशंस, अपनी कश्मकश दिखाने की ज़रूरत थी, लेकिन वो उन सीन्स में स्ट्रगल करते दिखते हैं. फिल्म में मुझे क्या अच्छा नहीं लगा, वो बता दिया. क्या अच्छा लगा, अब बात उस पर. फिल्म के राइटर-डायरेक्टर लक्ष्य राज आनंद की बतौर डायरेक्टर ये पहली फिल्म है. अपने डायरेक्टरियल डेब्यू के हिसाब से उन्होंने एक्शन सीन्स पर अच्छा काम किया है.
हॉलीवुड फिल्मों का गहरा इंफ्लूएंस है फिल्म पर.
हॉलीवुड फिल्मों का गहरा इंफ्लूएंस है फिल्म पर.

फिल्म के शुरुआत में इंडियन आर्मी एक ऑपरेशन पर जाती है. इस सीन में काफी गोलीबारी और बमबारी है. यहां कैरेक्टर्स के क्लोज़ अप लिए गए, और कैमरा हैंडहेल्ड मोड पर रखा, जिससे सीन में चल रहा एक्शन फ्लैट नहीं लगता. बाकी हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट वाले सीन भी देखने लायक हैं, जो हूटिंग डिज़र्व करते हैं. फिल्म इन्हीं लाउड मोमेंट्स के लिए पूरा मोमेंटम बनाने की कोशिश करती है, और फिर इन सीन्स में उसे जस्टिफाइ भी करती है. बीच-बीच में हल्का-हल्का ह्यूमर है. जैसे ये डायलॉग, कि आजकल के फ़ौजियों का जोश बहुत हाई रहता है.
जॉन अब्राहम की पिछली रिलीज़ ‘सत्यमेव जयते 2’ की तुलना में ‘अटैक’ अखरती नहीं, न ही पूरी तरह खारिज करने वाली फिल्म लगती है. एक्शन वाले पार्ट्स ही इसका सबसे स्ट्रॉन्ग पॉइंट हैं. बाकी ये कम रनटाइम में बहुत कुछ कवर करना चाहती है, और बस वहीं गड़बड़ हो जाती है.

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement