संडे टाइम्स उन्हें बीसवीं सदी के एक हजार और भारत के इतिहास के दस सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार करता है. खुशवंत सिंह की दृष्टि में वो द मोस्ट ओरिजिनल थिंकर ऑफ इंडिया हैं. ऐसी शख्सियत और उनपर बनी बहुचर्चित नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री के बारे में बता रहे हैं दी लल्लनटॉप के पाठक दीपांकर शिवमूर्ति.

पूरब में उनकी किताब
संभोग से समाधि की ओर और पश्चिम में
गिनीज़ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज उनकी 96
रॉल्स रॉयस कारों ने बहुत हंगामा बरपाया. कई भारतीय मनीषियों, मसलन विवेकानंद, परमहंस योगानंद, स्वामी रामतीर्थ, महर्षि महेश योगी ने पश्चिम को प्रभावित किया, मगर उनके तईं किसी ने नहीं. वो दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे मगर धर्म, समाज, इतिहास, विज्ञान, साहित्य, कला संगीत और अध्यात्म पर उनका सामान अधिकार था. धर्म के प्राचीनतम ग्रंथों से लेकर मनोविज्ञान के नवीनतम निष्कर्षों पर उनके विचारों की नवीनता बिना चूके चकित करने वाली होती है. उनके बारे में बताने के लिए एक मशहूर कहावत शायद सबसे ज्यादा सटीक होगी -
आप उनसे मुहब्बत कर सकते हैं, नफ़रत कर सकते हैं, मगर उनको नजरअंदाज नहीं कर सकते.

भारत में बहुत से लोगों की नजर में वो
ड्रग प्रमोटर,
सेक्स गुरु व भारतीय संस्कृति को बदनाम और बर्बाद करने वाले थे. अमेरिका और यूरोप में ऐसे लोगों की भरमार थी जिनका मानना था कि इनके जैसे लोग उनके देश के प्रतिभाशाली, ऊर्जावान और ‘वर्कोहालिक’ जेनरेशन को बेजा प्रभावित कर उन्हें अराजक, आवारा और विद्रोही बना रहे हैं.
सच में क्या थे आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश?
इस सवाल को संबोधित करती है नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री सीरिज
वाइल्ड वाइल्ड कंट्री जिसे निर्देशित किया है चैपमैन और मैक्लेन वे ने. इसकी इंडिया में उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी. सीरीज का अधिकांश हिस्सा ओशो के 1981-
85 के ऑरेगन प्रवास को कवर करता है, जब इंदिरा गांधी के दूसरे कार्यकाल में उन्होंने कथित तौर पर कट्टरपंथियों के बढ़ते हमले और स्वास्थ्य कारणों से शीला की सलाह पर अमेरिका जाने का निर्णय लिया.
थ्री इडियट्स का किरदार रैंचो असल में ओशो से प्रेरित है. बंधे-बंधाए ढर्रे से हटकर टीचर से बिलकुल अलग तरीके के सवाल करना, क्लास से बारहा बाहर किया जाना और फिर भी कालेज टॉप कर जाना. और राजू हिरानी तो ओशो के पैसनेट रीडर और प्रशंसकों में से हैं. ओशो अपने शिष्यों को प्यार से ‘इडियट्स’ बुलाते थे. इसका भी स्रोत है उनके प
संदीदा लेखकों में से एक दोस्तोवस्की का प्रसिद्ध उपन्यास ‘
द इडियट’, जिसका उद्धरण अपने प्रवचनों में बार-बार देते थे. ओशो के एंटीलोप, ऑरेगन आगमन के बाद से ही अमेरिकन टीवी पर उनकी बहुत चर्चा थी. जिसकी प्रमुख वजह उनका और उनके सन्यासियों के अजीब तौर-तरीके, रहन सहन, अधिकारियों और स्थानीय लोगों से टकराव की खबरें थीं.

और यह तब चरम पर पहुंच गया जब जनमत के आधार पर एंटीलोप का नाम बदलकर
रजनीशपुरम कर दिया गया. कम्यून के हजारों लोगों के वोटों की बनिस्बत वहां की आबादी कम थी. इस वजह से स्थानीय लोग और भी असुरक्षित महसूस करने लगे. सीरिज के एक दृश्य में एक मूल निवासी की कार पर लिखा होता है-
बेटर डेड दैन रेड.
इससे भी ज्यादा दिलचस्प बात ये कि इस विरोध की अगुवाई मशहूर ब्रांड ‘नाइकी’ के संस्थापक बिल बोवरमैन कर रहे थे. सीरीज कुछ ऑरेगन के मूल निवासी और कुछ ओशो के करीबी रहे शिष्यों के नैरेशन के आधार पर आगे बढ़ती रहती है, जिनमे प्रमुख हैं- शीला, मेयर जॉन सिल्वरटूथ, निर्वानो. शीला अतिरेक में कहती हैं-
मैं बहुत खुशकिस्मत थी. रजनीशपुरम में एक भव्य, जीवंत ओपेरा चल रहा था. शीला ब्रानो थी, भगवान् टेनर थे, और रजनीशपुरम सेटिंग. ओपेरा का आखिर हमेशा दुखांत होता है. लेकिन इसके इतने पहलू, इतने सारे आयाम थे. ऑरेगन के लोगों! स्वयं को सौभाग्यशाली समझो कि यह ओपेरा तुम्हारे दर पे आया.

ओशो के विज़न और दूरदृष्टि, जिंदगी और कम्यून के हर आयाम में देखे जा सकते थे. रजनीशपुरम 126 वर्ग मील में फैला था, क्षेत्रफल में न्यूयार्क सिटी से दोगुना. यह दुनिया का पहला सेल्फ-सस्टेंड और फुली एयरकंडीशंड शहर था. कम्यून और ओशो के हजारों घण्टों की रिकार्डिंग ऑडियो और वीडियो फॉर्म में उपलब्ध है. उनके प्रवचनों को किताब में तब्दील किया गया और बहुत सारी फुटेज का इस्तेमाल इस डाक्यूमेंट्री को जीवंत बनाने में किया गया. ओशो अपने उद्बोधनों में अक्सर कहा करते थे कि बुद्ध चेतनाओं की नियति होती है कि उनका सबसे अजीज़ और हुनरमंद शिष्य ही बगावत करता है. जीसस के साथ जुदास, महावीर के साथ गोशालक, व गुर्जिएफ़ के साथ ऑस्पेंस्की और हार्टमैन ने. मगर पता नहीं उनको इल्म था या नहीं कि ठीक ऐसा ही उनके साथ भी होने वाला था.

जब अपने चार साल के मौन से बाहर आकर ‘
भगवान्’ ने अपने निजी सचिव और प्रवक्ता
शीला पर अपनी महत्वाकांक्षाओं की खातिर उनके करीबी शिष्यों को जान से मारने और कम्यून पर कब्ज़ा करने की साज़िश का आरोप लगाया तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई. यह अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा बायोटेरर अटैक और इमीग्रेशन फ्रॉड था. शीला अपने 20 सहयोगियों के साथ यूरोप भाग गई. बाद में जहां से उसे अरेस्ट कर यूनाइटेड स्टेट्स प्रत्यार्पित कर दिया गया. ओशो ने कहा कि अमेरिकन सरकार कानून और संविधान को ताक पर रखकर कम्यून और उनके आंदोलन को बर्बाद करने का षडयंत्र रच रही है. ओशो की लीगल टीम ने उनके नेतृत्व में अलहदा तरीके से कानून के सामने खुद को डिफेंड किया.

ओशो ने अपने अनुयायियों से कहा कि तुम सब आजाद हो. मैं कोई धार्मिक गुरु नहीं. यह कोई संगठित धर्म नहीं. ‘
रजनीश-ईज्म’ यहां ख़तम होता है. इसके प्रतीक के तौर पर शीला के पुराने कपड़े जलाए गए. ओशो को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर
फेडरल कानून के तहत 136 से अधिक अभियोग लगाये गए. बाद में एफबीआई से बार्गेनिंग में उनके कभी यूएस न आने की शर्त पर इंडिया डिपोर्ट कर दिया गया. जहां उन्होंने फिर से डिस्कोर्स शुरू किया. 1990 में अपनी मौत से पहले उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा -
अब यह स्वप्न मै तुम्हें सौंपता हूं.

सन्यासी जो ओशो के प्रेम और नव आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी अभ्यस्त जिंदगी को छोड़ आए थे, एक-एक कर के वापस अपने घर लौटने लगे. रजनीशपुरम और आंदोलन ढह गया.
ओशो प्रेमियों की मानें तो थोड़ी देर के लिए ही सही, रजनीशपुरम दुनिया के रेगिस्तान में एक नखलिस्तान था, जो उनके विदा लेने के बाद फिर से वीरान हो गया.
ये भी पढ़ें: