सपा के लोग क्या बता रहे?
समाजवादी पार्टी के सूत्र अलग कहानी बता रहे हैं. उनका कहना है कि चंद्रशेखर ने 8 सीटें मांगी थीं. लेकिन अखिलेश इसके लिए तैयार नहीं थे. बाद में चंद्रशेखर ने 5 सीटें मांगीं. लेकिन अखिलेश उन्हें सिर्फ दो सीटें देने के लिए तैयार हुए.रामपुर की मनिहारन और गाजियाबाद की एक सीट देने पर राजी हुए. क्योंकि समाजवादी पार्टी पहले ही आरएलडी के साथ गठबंधन कर चुकी है ऐसे में इससे ज्यादा सीटें देने की कोई गुंजाइश नहीं थी. सूत्रों का कहना है कि चंद्रशेखर दो सीटों पर मान भी गए थे. लेकिन आजाद समाज पार्टी के अन्य नेताओं को लगा कि सिर्फ दो सीटें बहुत कम हैं. कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी की ओर से सरकार बनने पर चंद्रशेखर को पोस्ट देने की भी पेशकश की गई थी.
चंद्रशेखर आजाद और दलित राजनीति
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 20 प्रतिशत है. यह समाज किसी की हार-जीत तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. राज्य की सबसे बड़ी दलित नेता मायावती और उनकी पार्टी बसपा ने पिछले कुछ चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. मायावती जाटव समाज से हैं. चंद्रशेखर आजाद भी इसी समाज से आते हैं. कई लोगों का मानना है कि मायावती का कद कम होता जा रहा है. लेकिन आजाद स्थानीय राजनीति में काफी सक्रिय हैं. सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान, उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके लिए मुस्लिमों का समर्थन भी हासिल किया. उन्होंने एक नया नारा दिया- जय भीम, जय मीम, जो दलितों और मुसलमानों को एक साथ लाने के लिए अच्छा रहा.चंद्रशेखर आजाद सहारनपुर से ताल्लुक रखते हैं. पूरे पश्चिमी यूपी में उनकी अच्छी उपस्थिति है. आजाद समाज पार्टी ने अपनी पहली चुनावी लड़ाई वर्ष 2020 में लड़ी, जब उसने बुलंदशहर में एक उम्मीदवार उतारा जो भाजपा और बसपा के बाद तीसरे स्थान पर रहा. यहां तक कि सपा-रालोद के संयुक्त उम्मीदवार और कांग्रेस के उम्मीदवार भी चंद्रशेखर के कैंडिडेट से पीछे रहे. बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक वीरेंद्र सिंह सिरोही का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था.इसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए थे. आजाद समाज पार्टी ने मोहम्मद यामीन को मैदान में उतारा था.

आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर ने बताया कि समाजवादी पार्टी के साथ उनका गठबंधन नहीं हो पाया है.
वहीं से उन्हें विश्वास होने लगा कि लंबे समय में उनकी पार्टी दलित मतदाताओं के लिए एक विकल्प हो सकती है, क्योंकि वैचारिक स्पष्टता के कारण कई युवा पार्टी की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
पिछले 6 महीने से अधिक समय से चंद्रशेखर आजाद गठबंधन को लेकर राजनीतिक दलों के साथ बातचीत कर रहे थे. इससे पहले आजाद, राजभर, ओवैसी और शिवपाल यादव के नए मोर्चे की बात चल रही थी, जो अमल में नहीं आई. ओम प्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव अब समाजवादी पार्टी गठबंधन का हिस्सा हैं. गठबंधन से बाहर निकलने के बाद अब चंद्रशेखर AIMIM या कांग्रेस के साथ कुछ विकल्प देखने की कोशिश करेंगे, लेकिन अगर बातचीत विफल हो गई तो आजाद के सामने एकमात्र विकल्प अपने दम पर लड़ाई लड़ना होगा.























