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दिल्ली चुनाव में पूर्वांचलियों को साधने की खूब कोशिश हो रही है, रोहिंग्या एंगल भी आया

Delhi Election: दिल्ली की कुल आबादी का छठा हिस्सा Purvanchali Voters का है. ये लोग राजधानी की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 20 के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.

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दिल्ली में 5 फरवरी को वोटिंग होनी है. (तस्वीर: PTI)

पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस ने पूर्वांचली राजनीति को हवा दी. उन्होंने आरोप लगाया कि नई दिल्ली क्षेत्र के वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की जा रही है. लोगों के नाम काटे जा रहे हैं और फर्जी नाम जोड़े भी जा रहे हैं. केजरीवाल ने कहा,

वोटर लिस्ट से जिन लोगों के नाम हटाए जा रहे हैं, उन्होंने इस बात से इनकार किया है कि उन लोगों ने इसके लिए आवेदन दिया है. इसका मतलब है कि बहुत बड़ी गड़बड़ी हो रही है. जाहिर है, वो फर्जी वोट बनाने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को ला रहे हैं.

हालांकि, केजरीवाल ने ये भी आरोप लगाया कि भाजपा “रोहिंग्याओं” के नाम हटाने के बहाने पूर्वांचली और दलितों के नाम वोटर लिस्ट से हटवा रही है. लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल को फर्जी वोट वाले बयान पर घेर लिया. अब आलम ये है कि दोनों ही दल एक दूसरे को पूर्वांचली वोटर्स को अपमानित करने के आरोप लगा रहे हैं. 

अब सवाल उठता है कि राजधानी दिल्ली की सियासत में पूर्वांचली वोटर्स की कितनी अहमियत है?

दिल्ली में रहने वाले वैसे लोग जो बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए हैं, पूर्वांचली कहे जाते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, माना जाता है कि दिल्ली की कुल आबादी का छठा हिस्सा पूर्वांचलियों का है. ये लोग राजधानी की कुल 70 विधानसभा सीटों में से लगभग 20 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. इसलिए राजनीति के केंद्र में भी रहते हैं.

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Purvanchali Politics की शुरुआत कैसे हुई?

वो कांग्रेस पार्टी थी, जिसने दिल्ली की बदलती राजनीति में पूर्वांचल समुदाय की अहमियत पर गौर किया. उन्होंने इसके लिए महाबल मिश्रा को आगे किया जो पश्चिमी दिल्ली से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें दिल्ली में पूर्वांचली चेहरे के तौर पर पेश किया गया. शीला दीक्षित की सरकार में महाबल ने एक मजबूत नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई. जानकार यहां तक कहते हैं कि एक समय वो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो गए थे. लेकिन कांग्रेस की पूर्वांचली राजनीति का केंद्र हमेशा महाबल मिश्रा ही रहे. फिर आया साल 2013. जब आम आदमी पार्टी ने भी इस फॉर्मूले को पकड़ा. खुद महाबल मिश्रा अब AAP में हैं.

2013 और 2015 के चुनाव में AAP ने सबसे ज्यादा पूर्वांचलियों को टिकट दिया था. 2015 तक BJP और कांग्रेस 3 से 5 पूर्वांचलियों को टिकट देते थे. केजरीवाल के एक बयान के अनुसार, उन्होंने 2020 में 12 पूर्वांचलियों को टिकट दिया था और इस बार 10 ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं.

कांग्रेस से होते हुए ये फॉर्मूला AAP तक पहुंचा, और उन्हें सफलता भी मिली. फिर भाजपा को भी इस बदलाव को स्वीकार करना ही पड़ा. 2016 में उन्होंने एक पूर्वांचली को दिल्ली में पार्टी की कमान सौंप दी. नॉर्थ-ईस्ट सीट से सांसद मनोज तिवारी ने 2020 के चुनाव का नेतृत्व किया. तिवारी जब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद पर थे तब उन्होंने "पूर्वांचल अस्मिता" की बात की. उन्होंने कहा था,

केजरीवाल ने कई मौकों पर पूर्वांचलियों का अपमान किया है. इससे पहले उन्होंने कहा था कि लोग यहां आकर मुफ्त इलाज कराते हैं और इससे बोझ और बढ़ जाता है. इसका मतलब है कि पूर्वांचल के लोग केजरीवाल पर बोझ हैं. बाद में उन्होंने कहा था कि अगर NRC लागू हुआ तो मुझे (दिल्ली से) जाना पड़ेगा. हाल ही में उन्होंने भोजपुरी गानों का मजाक उड़ाया था. मैं बहुत आगे आ गया हूं और इन्हीं गानों की बदौलत मुझे उनका समर्थन मिला और आज मैं पार्टी का दिल्ली प्रमुख हूं. उन्होंने पूर्वांचलियों की संस्कृति और गानों पर हमला किया है.

पूर्वांचली वोटर्स की बात करते हुए तिवारी हर इमोशनल एंगल को कवर करते हैं. पूर्वांचली प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजपुरी भाषा से जुड़े हैं. इसलिए तिवारी ने भोजपुरी गाने और संस्कृति को भी इससे जोड़ा. इस बार भी जब केजरीवाल का बयान आया तो मनोज तिवारी सक्रिय हो गए. उन्होंने कहा,

अरविंद केजरीवाल ने पूर्वांचली समुदाय के लोगों का अपमान किया है. हम विरोध जारी रखेंगे और इस आंदोलन को दिल्ली की हर गली और घर तक ले जाएंगे.

उन्होंने कई और पुराने मामलों को भी उठाया. मनोज तिवारी के साथ जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा के बड़े नेताओं ने भी केजरीवाल का विरोध किया और उनसे माफी की मांग की. दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष दिनेश प्रताप सिंह और पार्टी के पूर्वांचल प्रकोष्ठ के प्रमुख संतोष ओझा, केजरीवाल के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने पहुंच गए थे.

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BJP के हिस्से कितने पूरबिया?

दिल्ली में पूर्वांचलियों का वोटिंग पैटर्न कई दूसरे राज्यों जैसा ही है. जैसे लोकसभा चुनाव में भाजपा को इनका समर्थन मिल जाता है लेकिन विधानसभा चुनाव में ये वोट AAP के हिस्से जाते हैं. 

पूर्वांचली समुदाय का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली के अनधिकृत कॉलोनियों में रहता है. और ऐसा माना जाता है कि ये समुदाय बुराड़ी, संगम विहार, उत्तम नगर, द्वारका, किराड़ी और विकासपुरी जैसे निर्वाचन क्षेत्रों के नतीजों को प्रभावित करने की ताकत रखता है. केजरीवाल ने 10 जनवरी को इसको लेकर भी एक बयान दिया. उन्होंने कहा,

दस साल पहले, ये कॉलनियां नरक जैसी स्थिति में थीं और यहां विकास नहीं हुआ था. मैं भाजपा से पूछना चाहता हूं कि उसने पिछले 10 सालों में इनके लिए क्या किया है. क्या उन्होंने एक भी सड़क बनाई? क्या उन्होंने कोई विकास किया? उनके पास पैसा था, वो ये सब कर सकते थे. हमने सड़कें बनाईं, पानी और सीवर कनेक्शन दिए, अस्पताल और स्कूल दिए और उन्हें सम्मानजनक जीवन दिया.

इसके अलावा कई और क्षेत्र भी हैं, जहां पूर्वांचलियों की ठीक-ठीक संख्या का हवाला दिया जाता है. ऐसी 20 सीट हैं. AAP ने मुख्य रूप से इन उम्मीदवारों को टिकट देकर पूर्वांचली वोटर्स को साधने की कोशिश की है,

  • दुर्गेश पाठक- राजेंद्र नगर
  • अनिल झा- किराड़ी (पहले BJP में थे)
  • अवध ओझा- पटपड़गंज
  • संजीव झा- बुराड़ी
  • विनय मिश्रा (महाबल मिश्रा के बेटे)- द्वारका
  • गोपाल राय- बाबरपुर (दिल्ली सरकार में मंत्री)
  • सोमनाथ भारती- मालवीय नगर
  • सरिता सिंह- रोहतास नगर
  • आदिल खान- मुस्तफाबाद
BJP की पूर्वांचली राजनीति

भाजपा की ओर से इस मोर्चे पर मनोज तिवारी तैनात हैं. भाजपा ने भी टिकट बंटवारे में इस बात का ध्यान रखा है. उन्होंने अपने दो पूर्वांचली साथी दलों को सीट दिया है. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के खाते में बुराड़ी की सीट और चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) के हिस्से में देवली की सीट आई है. इस तरह BJP ने पूर्वांचली समीकरण को साधा है. इस घोषणा के बाद एक भाजपा नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया,

दिल्ली में NDA के 6 पूर्वांचली उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे. इसमें भाजपा के 4, जदयू के 1 और लोजपा (रामविलास) के 1 कैंडिडेट शामिल हैं. संभावना है कि लोजपा (रामविलास) के उम्मीदवार पासवान समाज से होंगे. 

भाजपा ने लक्ष्मी नगर सीट से अभय वर्मा को टिकट दिया है. पिछली बार भी यहां उन्हीं को जीत मिली थी. हालांकि, जीत का अंतर मात्र 880 वोटों का था. किराड़ी से बजरंग शुक्ला और विकासपुरी से पंकज सिंह को भाजपा से टिकट मिला है.

पूर्वांचली सीटों के मामले में कांग्रेस ने पटपड़गंज से अनिल कुमार, सीमापुरी से राजेश लिलोठिया, बुराड़ी से मंगेश त्यागी जैसे नेताओं को टिकट दिया है. हालांकि, इनमें से किसी की भी पहचान पूर्वांचली नेता के तौर पर स्थापित नहीं है.

कब किसकी जीत हुई?
 सीट201320152020
1बुराड़ीAAPAAPAAP
2बादलीकांग्रेसAAPAAP
3किराड़ीBJPAAPAAP
4नांगलोई जाटBJPAAPAAP
5मॉडल टाउनAAPAAPAAP
6जनकपुरीBJPAAPAAP
7विकासपुरीAAPAAPAAP
8उत्तमनगरBJPAAPAAP
9द्वारकाBJPAAPAAP
10मटियालाBJPAAPAAP
11पालमBJPAAPAAP
12राजेन्द्र नगरBJPAAPAAP
13देवलीAAPAAPAAP
14संगम विहारAAPAAPAAP
15बदरपुरBJPAAPBJP
16पटपड़गंजAAPAAPAAP
17लक्ष्मी नगरAAPAAPBJP
18सीमापुरीAAPAAPAAP
19गोकलपुरBJPAAPAAP
20करावल नगरBJPAAPBJP

आंकड़ों पर गौर करें तो 2013 के चुनाव में 20 पूर्वांचली सीटों में से 11 पर भाजपा को, 1 पर कांग्रेस को और 8 पर AAP को जीत मिली थी. लेकिन इसके बाद 2015 और 2020 के चुनाव में इन क्षेत्रों में AAP की पकड़ खूब मजबूत हो गई. 2015 में AAP को ऐसे सभी 20 सीटों पर जीत मिली. 2020 में AAP को ऐसे 19 सीटों पर और भाजपा को केवल 1 सीट पर जीत मिली. इन तीनों चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट पर सफलता मिली.

purvanchal politics
पूर्वांचली सीटों पर AAP, भाजपा और कांग्रेस की राजनीति

वोटर लिस्ट में गड़बड़ी पर AAP के लगाए आरोपों पर चुनाव आयोग ने अपनी सफाई दी और उन्हें खारिज कर दिया. आगामी 5 फरवरी को दिल्ली में वोटिंग होनी है और 8 फरवरी को नतीजे घोषित किए जाएंगे.

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