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कहानी बाबू सिंह कुशवाहा की, जिसे CBI अरेस्ट नहीं कर पा रही?

BSP से निकाला गया नेता, जो BJP में रहा, कांग्रेस में जाना चाहता था और उसके घरवाले SP में हैं.

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4 फरवरी, 2016. गाजियाबाद की डासना जेल का दरवाजा खुलता है. साधारण सा दिखने वाला एक अधेड़ उम्र का आदमी उसमें से बाहर निकलता है और तभी सैकड़ों की भीड़ चीखने लगती है,

'जेल का ताला टूटा है, शेर हमारा छूटा है...'

शेर करार दिया जाने वाला ये शख्स है रामचरन कुशवाहा उर्फ बाबू सिंह कुशवाहा. बीएसपी से निकाला जा चुका बीजेपी का पूर्व नेता, जिसने कांग्रेस में जाने के लिए राहुल गांधी से बात की थी और जिसके परिवार के दो सदस्य समाजवादी पार्टी में हैं. अब इससे पहले कि आप बाबू सिंह कुशवाहा के बारे में कोई खुशफहमी पालें, ये जान लीजिए कि इनका सबसे बड़ा परिचय है NRHM घोटाले का आरोपी होना.

तो बाबू सिंह कुशवाहा की कुंडली झाड़ने से पहले NRHM घोटाले के बारे में जान लेते हैं.

NRHM घोटाला babu-singh-kushwaha1

व्यापम घोटाला तो याद होगा आपको. मध्य प्रदेश का वो कांड, जिससे जुड़े 50 से ज्यादा लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. वो दोषी थे या नहीं, उनकी मौत हुई या हत्या, ये सब बड़े ओछे सवाल हैं. ये घोटाला एक प्रमाण, एक प्रतीक है, जो दिखाता है कि सिस्टम ही सब कुछ है, इंसान की जान कुछ भी नहीं.

बहरहाल, NRHM घोटाला. ये भी काफी हद तक व्यापम जैसा ही है. 2007 से 2012 के बीच जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी, तब केंद्र सरकार के प्रोग्राम नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के लिए यूपी को तकरीबन 8657 करोड़ रुपए का फंड मिला था. इसमें से करीब एक हजार करोड़ से ज्यादा रुपयों का राज्य के बड़े नेताओं और अफसरों के बीच बंदरबांट हुआ. CBI जांच में ये भी पता चला कि 134 हॉस्पिटल्स को अपग्रेड करने के नाम पर कई सौ करोड़ रुपए डकार लिए गए.

जब ये घोटाला नासूर बन गया, तो इलाज के नाम पर कई बलि चढ़ाई गईं. नेताओं और अफसरों के कुकर्म छिपाने के लिए इससे जुड़े करीब पांच लोगों की हत्या हो गई. मामला सामने तब आया, जब राजधानी लखनऊ में डॉ. विनोद आर्या (अक्टूबर, 2010) और बीपी सिंह (अप्रैल, 2011) शूट कर दिए गए. डिप्टी-CMO डॉ. सचान की तो पुलिस कस्टडी में रहते हुए रहस्यमयी मौत हो गई थी. इन मौतों में लीपापोती भी खूब हुई. कुछ आत्महत्या साबित हुईं, तो कुछ का पता ही नहीं चला.

NRHM घोटाले में कुशवाहा babu-singh-kushwaha2

बाबू सिंह कुशवाहा भी इसी घोटाले का एक हिस्सा हैं. माया सरकार में परिवार कल्याण मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा पर लगे आरोपों का बचाव करना जब मुश्किल हो गया, तो नवंबर, 2011 में उन्हें और सतीश चंद्र मिश्रा के रिश्तेदार हेल्थ मिनिस्टर अनंत कुमार मिश्रा को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया गया. बीएसपी से निकलकर बाबू ने दंद-फंद लगाने शुरू किए और 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम लिया. बाबू के शामिल होने से कई बीजेपी नेता नाराज हो गए और पार्टी में घमासान की स्थिति हो गई. तब नितिन गडकरी पार्टी अध्यक्ष थे. आखिरकार बाबू को बीजेपी से बाहर होना पड़ा. 2012 में NRHM घोटाले से जुड़ी एक हत्या की FIR में बाबू सिंह कुशवाहा को आरोपी बनाया गया और CBI की पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

जेल और जेल से बाहर की बाबू की नौटंकी babu-singh-kushwaha3

मार्च 2012 में जब यूपी के विधानसभा चुनाव का आखिरी वोट पड़ा था, उसके कुछ मिनटों बाद ही बाबू सिंह कुशवाहा की गिरफ्तारी की खबर आ गई थी. इसके बाद बाबू चार साल तक जेल में रहे. रिहाई हुई इस साल 4 फरवरी को. रिहाई के लिए कोर्ट ने बाबू के सामने अपने हर मामले के लिए 50 लाख रुपए जमा करने की शर्त रखी थी. पैसे जमा करने पर बाबू को जमानत तो मिल गई, लेकिन कोर्ट और CBI से पीछा नहीं छूटा. CBI की गाजियाबाद कोर्ट ने बाबू के खिलाफ गैर-जमानती वॉरंट जारी कर रखा है.

इस वॉरंट के खिलाफ बाबू ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका भी डाली, लेकिन 11 नवंबर, 2016 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI के वॉरंट में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने बाबू को आदेश दिया कि वो CBI कोर्ट में खुद हाजिर होकर अपना पक्ष रखें. कुशवाहा पर चार आपराधिक केस हैं और कोर्ट ने चारों पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. हाई कोर्ट में कोई फायदा न मिलने के बाद कुशवाहा सुप्रीम कोर्ट गए. वहां उन्हें 2 दिसंबर की तारीख दी गई है, लेकिन अब सवाल ये है कि क्या CBI 2 दिसंबर तक कुशवाहा को गिरफ्तार करेगी.

कुशवाहा को गिरफ्तार नहीं करेगी CBI? babu-singh-kushwaha4

भले कुशवाहा पर हजारों करोड़ के घोटाले का आरोप हो, भले CBI की कोर्ट उनके खिलाफ गैर-जमानती वॉरंट जारी कर चुकी हो, भले कोई कोर्ट कुशवाहा की मदद न कर रही हो, लेकिन कुशवाहा के गिरफ्तार होने के आसान नजर नहीं आ रहे. वजह राजनीतिक है.

यूपी में अति पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों यानी काछी, कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, मुराव और मुराई के लोगों की तादाद लगभग पांच फीसदी है. फर्रुखाबाद, कन्नौज और मुरादाबाद के इलाके में इन जातियों के लोग पर्याप्त संख्या में हैं. पार्टियों को लगता है कि इन बिरादरियों में बाबू सिंह की अच्छी पकड़ है. जहां पकड़ नहीं भी है. वहां उन पर कार्रवाई करने से एंटी सेंटीमेंट बन सकता है. बीजेपी को पर्दे के पीछे से कुशवाहा का साथ लेने में शायद कोई गुरेज नहीं हो. वर्ना पहले भी शामिल क्यों करवाते.

बाबू सिंह की पत्नी सुकन्या और भाई शिवशरन कुशवाहा समाजवादी पार्टी के सदस्य हैं. शिवपाल यादव तो जेल में मिलने भी गए थे कुशवाहा से. दोनों ही पार्टियां कुशवाहा परिवार के सहारे पिछड़े वोट हासिल करना चाहते हैं. अब कुशवाहा पुण्य कमाने के लिए तो किसी की मदद करेंगे नहीं.

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2012 के विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ था. कुशवाहा पर बहुतेरे दाग थे, लेकिन पार्टियां उनका इस्तेमाल करने से नहीं चूकीं. सदस्यता स्थगित होने के बावजूद बीजेपी ने उन्हें भुनाने की पूरी कोशिश की. हां, वो अलग बात है कि पार्टी को कुशवाहा के दम पर एक भी सीट नहीं मिली और छीछालेदर हुई सो अलग.

कुशवाहा उत्तर प्रदेश की राजनीति के वो शख्स हैं, जो चाबी तो कभी हो ही नहीं सकते. हां, राजनीतिक पार्टियों को उनमें विभीषण की छवि जरूर दिखती है. वो विभीषण, जो मायावती के वोट काटने का काम कर सकता है, लेकिन जमीन पर ऐसा होता नहीं दिख रहा.

तो मंत्री कैसे बन गए कुशवाहा babu-singh-kushwaha6

कुशवाहा बीएसपी से 27 सालों से जुड़े हैं, लेकिन उनका कद शुरुआत से इतना बड़ा नहीं था. कुशवाहा के ऊपर कई थानों में FIR दर्ज रहीं. 1995 में उन्हीं की पार्टी के गयाचरण दिनकर ने बांदा में चल रही IRD और स्पेशल कंपोनेंट योजना में धांधली के चलते कुशवाहा की जांच कराई थी. इस दौरान बांदा के ही एक और नेता और गयाचऱण के एंटी नसीमुद्दीन सिद्दीकी उनकी ढाल बने. नसीमुद्दीन ने कुशवाहा को मायावती के ऑफिस में टेलीफोन अटेंड करने की नौकरी दिलवा दी. यहां से कुशवाहा ने ऐसा चक्कर चलाया कि माया कैबिनेट के मंत्री बन गए.

लेकिन कुशवाहा जितनी तेजी से उठे, उससे कहीं ज्यादा तेजी से गिरे भी. अब हमेशा जुगाड़ से आगे बढ़ने की तरकीब कितना काम आती. एक जमाने में बैंक दलाल की छवि लेकर घूमने वाले कुशवाहा पर 2013 में एक और गंभीर आरोप लगा. तब यूपी लोकायुक्त की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मूर्तियां लगवाने में कुशवाहा ने 1400 करोड़ रुपए खाए हैं. एक वक्त में मायावती के बेहद करीबियों में शुमार रहे कुशवाहा जब उनके लिए फांस बनने लगे तो माया ने उन्हें किनारे लगा दिया.

कुशवाहा की राजनीति babu-singh-kushwaha7

बाबू सिंह के जेल में रहने के दौरान उनके समर्थकों ने जन अधिकार मंच नाम का एक संगठन बनाया. इस समय कुशवाहा की राजनीति इस मंच के इर्द-गिर्द घूम रही है. माना यही जा रहा है कि कुशवाहा चुनाव के ठीक पहले या चुनाव के बाद किसी न किसी पार्टी का हाथ थाम लेंगे. उससे पहले तक उनकी सबसे बड़ी चुनौती खुद को कानून के पंजे से बचाने की है.