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धर्मेंद्र प्रधान: उज्ज्वला योजना लाकर गेमचेंजर बना मोदी का ये मंत्री

मोदी कैबिनेट में मिली फिर जगह

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धर्मेंद्र प्रधान बीजेपी की तरफ से यूपी चुनाव के प्रभारी बनाए गए.
नाम- धर्मेंद्र प्रधान कौन सा मंत्रालय मिला- पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय. साथ में स्टील मिनिस्ट्री भी. कहां से सांसद हैं- मध्यप्रदेश से राज्यसभा MP रहने वाले कहां के हैं- ओडिशा क्यों शामिल किया गया: संगठन- धर्मेंद्र प्रधान तकरीबन 35 सालों से संघ के साथ हैं. वो अमित शाह और संघ, दोनों के करीबी माने जाते हैं. फंड जुटाने में काफी सिक्का माना जाता है उनका. संगठन में उनके कद की एक बड़ी वजह ये भी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 21 में से बस एक सीट मिली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां आठ सीटें पाई हैं. विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को 23 सीटें मिली हैं. बीजेपी की कामयाबी ये भी थी कि इस बार ओडिशा में मुकाबला सीधे-सीधे बीजू जनता दल (BJD) और उसके बीच था. कांग्रेस कहीं तस्वीर में ही नहीं थी. अगर कहीं बीजेपी ओडिशा में सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती, तो माना जाता है कि मुख्यमंत्री प्रधान ही बनाए जाते. कामकाज- पिछली कैबिनेट में भी धर्मेंद्र प्रधान के पास पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय था. पूरे पांच साल उनके पास ये मंत्रालय रहा. मोदी सरकार की सबसे सफल योजनाओं में से एक उज्ज्वला स्कीम का जिम्मा प्रधान के ही मंत्रालय के पास था. विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा चुनाव तक, हर जगह उज्ज्वला का नाम सुनाई दिया. अपनी कमियों के बावजूद ये स्कीम मोदी सरकार के लिए गेम चेंजर साबित हुई. फन फैक्ट- धर्मेंद्र प्रधान ने साल 2000 में ओडिशा की पल्लाहारा असेंबली सीट निकाली थी. ये विधानसभा में उनकी इकलौती जीत है अब तक की. 2004 में उन्होंने देवगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता. उनके पिता देवेंद्र प्रधान की सीट थी ये. कई लोग कहते हैं कि धर्मेंद्र ने जबरन अपने पिता से सीट खाली करवाकर उन्हें रिटायर करवा दिया था. 2009 में प्रधान फिर से पल्लाहारा सीट से असेंबली इलेक्शन लड़े, पर हार गए. फिर कभी चुनाव नहीं लड़े. राज्यसभा (बिहार, मध्य प्रदेश) से संसद में भेजे जाते रहे हैं. BJD कई बार उन्हें ज़मीन पर मुकाबला करने, यानी इलेक्शन लड़ने की चुनौती दे चुकी है. बावजूद इसके वो 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़े. ओडिशा बीजेपी के कई नेता धर्मेंद्र प्रधान पर इल्ज़ाम लगाते हैं कि उनकी ज़मीन पर कोई पकड़ नहीं है. इसीलिए वो अपनी ही पार्टी के उन नेताओं के खिलाफ साज़िश करते रहते हैं, जिनके पास पब्लिक सपोर्ट है. बीते दिनों ओडिशा बीजेपी के उपाध्यक्ष राज किशोर दास और राज्य में बीजेपी के बड़े नेता सुभाष चौहान ने पार्टी छोड़ते समय धर्मेंद्र प्रधान पर इसी तरह का आरोप लगाया था. लोग कहते हैं, ओडिशा बीजेपी के कई नेता और यहां तक कि काडर भी प्रधान को सपोर्ट नहीं करता.
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