महागठबंधन मे सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस (Congress) और RJD में रार ठनी है. वहीं दूसरी ओर दावा किया जा रहा है कि NDA में सब कुछ आसानी से हो जाएगा. लेकिन खबर है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बीजेपी आलाकमान यानी नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा के सामने सीट बंटवारे से पहले शर्त रख दी है. और इस कारण ही उन्होंने बीते दिनों पटना आए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात नहीं की.
पटना आए जेपी नड्डा से मिले तक नहीं, सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर नीतीश कुमार 'खेल' गए?
Nitish Kumar ने साफ साफ कहा कि इन सब दलों को BJP ने Alliance में जोड़ा है. इसलिए सीटों के बंटवारे की जिम्मेदारी भी उनकी रहेगी. JDU ने तो सीट बंटवारे के पचड़े से पल्ला झाड़ लिया. लेकिन सिरदर्द बीजेपी के मत्थे मढ़ गया. अब ‘भानुमति के कुनबे’ को जोड़ना उनके लिए परेशानी का सबब हो गया है.


मैसेज एकदम लाउड एंड क्लियर है. बातचीत तभी शुरू होगी जब हमारी शर्त पूरी होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि एनडीए के भविष्य का क्या होगा. आखिर नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है? कहीं नीतीश कुमार फिर से चौंकाने वाले तो नहीं हैं? नीतीश सबके हैं ऐसे में आगे क्या होगा कह नहीं सकते, लेकिन फिलहाल बिहार की कुर्सी संभाल रहे नीतीश कुमार किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते.
वो उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को गठबंधन में एडजस्ट करने का सरदर्द अपने माथे नहीं लेना चाहते. लगभग दो दशक से बिहार के सत्ता समीकरण को साधे रहने वाले नीतीश कुमार सीट बंटवारे को लेकर रत्ती भर भी टेंशन लेने को तैयार नहीं हैं.
नीतीश कुमार ने अपने सिपहसलारों, जिसमें ललन सिंह, संजय झा, विजय चौधरी और अशोक चौधरी जैसे नेता शामिल हैं, के ज़रिए बीेजेपी को मैसेज भिजवा दिया है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को दो टूक कह दिया गया है कि एनडीए के सहयोगी दलों से निपटने की जिम्मेदारी उनकी है. किस पार्टी को कितनी सीट मिलेगी. इसका फॉर्मूला उनको ही तय करना होगा. जदयू का इससे कोई लेना देना नहीं है.
नीतीश कुमार ने साफ साफ कहा कि इन सब दलों को बीजेपी ने गठबंधन में जोड़ा है. इसलिए सीटों के बंटवारे की जिम्मेदारी भी उनकी रहेगी. नीतीश कुमार के इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हरी झंडी दे दी है. नीतीश कुमार की सारी कवायद बस इस बात की है कि भले ही सांकेतिक तौर पर लेकिन वो एनडीए गठबंधन में बड़े भाई और बिग बॉस बने रहना चाहते हैं. इसके लिए जदयू हर हाल में बीजेपी से अधिक सीटों पर लड़ने की तैयारी में हैं.
जदयू ने तो सीट बंटवारे के पचड़े से पल्ला झाड़ लिया. लेकिन सिरदर्द बीजेपी के मत्थे मढ़ गया. अब ‘भानुमति के कुनबे’ को जोड़ना उनके लिए परेशानी का सबब हो गया है. एक को मनाते हैं तो दूसरा रूठ जाता है. चिराग, जीतन, उपेंद्र सबको साथ लेकर चलना है.
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं. चिराग पासवान अपने लिए 40 सीट मांग रहे हैं. वो अपने को पीएम मोदी का हनुमान बताते हैं. पर हनुमान जी विपक्ष के बजाय एनडीए की ही लंका लगाने निकल पड़ते हैं. दरअसल चिराग अब गठबंधन की राजनीत के उस्ताद हो चुके हैं. दबाव बनाने के लिए कब कौन सा ट्रिक इस्तेमाल करना है इसका हुनर उनको बखूबी आ गया है.
खुद तो कुछ नहीं कहते हैं. लेकिन उनके लोग अकेले मैदान में उतरने की धमकी देते हैं तो कभी कहते हैं कि हमारी तैयारी सभी 243 सीटों की है. चिराग पासवान के बहनोई और जमुई से सांसद अरुण भारती आए दिन सीट के बंटवारे को लेकर नए-नए फॉर्मूले सुझाते हैं. फिर डिस्क्लेमर भी जोड़ देते हैं कि ये उनकी निजी राय है.
मतलब सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. जिनके लिए मैसेज हैं वहां पहुंच जाए और अगर कहीं गलती से बात बिगड़ जाए तो फिर ये बहाना भी रहेगा कि मेरी बयान पार्टी का स्टैंड नहीं है. अब नीतीश कुमार की चाहत है कि 200 सीट बीजेपी और जदयू के खाते में रहे. और बाकी बची 43 सीटों में चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को एडजस्ट किया जाए. पर यही काम मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा है.
नीतीश कुमार ने तो खुद को इस मुसीबत से अलग कर लिया है. सीटों की बातचीत में उनकी एंट्री तब होगी जब बीजेपी बाकी सहयोगी दलों के साथ फॉर्मूला तय कर ले. और सहयोगी दलों की डिमांड इतनी है कि अगर बीजेपी उन्हें मना ले तो उनके पास बचेगा क्या?
पीएम मोदी 15 सितंबर को बिहार आए. उनके दौरे से पहले ही जीतन राम मांझी ने बम फोड़ दिया. बोधगया में अपने घर पर उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को कम से कम 15 सीटें चाहिए. इस डिमांड के पीछे उनका अपना तर्क है.
मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी को अब तक मान्यता नहीं मिली है. चुनाव आयोग से मान्यता लेने के लिए उनके पास आठ विधायक हों. साथ ही उनका वोट शेयर कम से कम 6 प्रतिशत हो. आठ सीटें जीतने के लिए वे 15 सीटें चाहते हैं.
मांझी ने कहा कि इस चुनाव में उनका एक ही लक्ष्य है. पार्टी को मान्यता मिल जाए. इसके लिए वे आठ से कम सीट पर मानने को तैयार नहीं हैं. मांझी ने कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो फिर उनके पास अकेले चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
मांझी के बयान के बाद तुरंत चिराग पासवान की प्रतिक्रिया आई. उन्होंने उनकी डिमांड को दबाव वाली पॉलिटिक्स बता दिया. अब चिराग और मांझी का ‘याराना’ तो किसी से छुपा नहीं है. दोनों एक दूसरे की ओर बयानों की बंदूक ताने रखते हैं. जब चिराग की ओर से सीटों का दावा आता है तो जीतन राम मांझी भी बस यही कहते हैं कि जितनी ताकत होगी उतनी ही मिलेगी न! हवा में कुछ कह देने से काम नहीं होता.
राजनीति के जानकार बताते हैं कि भले ही चिराग और मांझी अपने लिए माहौल गरम करते रहे. हवाई किले बनाते रहे. लेकिन धरातल पर हाथ वही आएगा जो मिलना चाहिए. दोनों नेता मोदी सरकार में मंत्री हैं. अब भला कौन मंत्री वाली सुख सुविधा ठुकराए. हां, छोड़ने पर इससे बड़ा कुछ मिल जाए तो त्याग और बलिदान करने पर विचार किया जा सकता है.
चिराग तो वैसे भी पिछली बार अकेले लड़ने का नफा-नुकसान समझ चुके हैं. मात्र एक सीट जीत पाए थे. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को कुछ सीटों पर नुकसान जरूर हुआ था. बीते दिनों बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और चिराग पासवान में सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत हुई थी. बताया जा रहा है कि चिराग की पार्टी को 22 से 25 सीटें मिल सकती हैं. फ़ॉर्मूला ये बना है कि उनके पास लोकसभा के 5 सांसद हैं. एक लोकसभा में औसतन 5 विधानसभा सीटें होती हैं. इस हिसाब से 25 सीटें बनती हैं.
जीतन राम मांझी 15 सीट मांग रहे हैं. पर पिछली बार मतलब 2020 के चुनाव में उन्हें सात सीटें मिली थीं. चार ही जीत पाए थे. हो सकता है उनके कोटे में एक दो सीटें बढ़ जाए. उधर, RLSP के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की कोई डिमांड नहीं है. सीटों की संख्या को लेकर उन्होंने अपने पत्ते अब तक नहीं खोले हैं. उन्होंने फ़ैसला किया है कि अपनी डिमांड पब्लिक फोरम पर नहीं रखेंगे. लेकिन लव-कुश फॉर्मूले के लिए उनका साथ बहुत ज़रूरी है.
कभी केंद्रीय मंत्री रहे कुशवाहा के दिन अच्छे नहीं चल रहे. लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने तीसरा मोर्चा तो बनाया पर पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. इस बार वे कोई गलती दोहराने के मूड में नहीं हैं.
बीजेपी की कोशिश ये है कि दुर्गा पूजा तक चिराग़ पासवान, जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा से सीटों की संख्या पर डील फाइनल हो जाए. इसके बाद जेडीयू और बीजेपी के नेता आपस में अपने अपने कोटे की सीटें तय कर लेंगे.
बीजेपी जितनी सीटों पर लड़ेगी, जेडीयू ने उससे कम से कम एक सीट अधिक पर चुनाव लड़ने का संकल्प लिया है. आखिर उसे पब्लिक को ये मैसेज भी तो देना है कि बिहार में आज भी वहीं बिग ब्रदर हैं.
तो फिर इस तरह, फ़ाइनल हो गया है कि बीजेपी चालीस सीटों में अपने सहयोगी दलों को एडजस्ट करेगी. गृह मंत्री अमित शाह के रणनीतिक कौशल की यही परीक्षा भी होनी है. बीजेपी ने ये भी तय किया है कि इस बार बिहार में यूपी वाला फ़ॉर्मूला चलेगा.
यानी सहयोगी दलों के कोटे वाली सीटों पर बीजेपी अपने मजबूत उम्मीदवार उतारेगी. फंडा ये है कि हर हाल में जीतना है. ताकि जीतने के बाद ज़रूरत पड़ने पर अपने हिसाब से उनका उपयोग भी हो सके. क्योंकि त्रिशंकु विधानसभा की हालत में छोटे दल कभी भी पाला बदल लेते हैं.
ऐसी स्थिति को रोकने के लिए ही बीजेपी ने यूपी के पिछले चुनाव में इस तरह का प्रयोग किया था. वही प्रयोग अब बिहार में दोहराने की तैयारी है. वैसे बीजेपी और जेडीयू अपने बलबूते बहुमत का आंकड़ा पार करने की योजना में हैं. जिससे बाक़ी सहयोगी दलों के रोज रोज के प्रेशर टैक्टिक्स से बचा जाए. लेकिन ऐसा होगा क्या ये तो भविष्य के गर्भ में है.
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महागठबंधन में क्या चल रहा है?
अब बात महागठबंधन की कर लेते हैं. तेजस्वी यादव फिर से दस जिलों की यात्रा पर निकल चुके हैं. यात्रा से पहले उनके एक बयान ने महागठबंधन के कैंप में खलबली मचा दी. उन्होंने एक जनसभा में कहा कि समझ लिए सभी 243 सीटों पर तेजस्वी चुनाव लड़ रहा है.
उनके इस बयान के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं. चर्चा तेज हो गई है कि क्या यह सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का एक तरीका भर है या फिर राजद की तरफ से कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति है.
तेजस्वी यादव का यह बयान ऐसे समय में आया है जब राजद और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर तनाव की खबरें चल रही हैं. इससे पहले वोटर अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को पीएम फेस बताया था. लेकिन राहुल गांधी से मुख्यमंत्री के चेहरे के बारे में पूछा गया था, तो उन्होंने इस सवाल को टाल दिया था. कांग्रेस को लगता है कि ऐसा करने पर उसे अगड़ी जातियों का वोट नहीं मिलेगा. राहुल गांधी के इस रुख से राजद सुप्रीमो लालू यादव भी नाराज बताए जा रहे हैं.
खबर है कि लालू यादव ने सीट बंटवारे की कमान खुद संभाल ली है. और वो कांग्रेस को 50-55 से ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं हैं. तेजस्वी यादव का यह बयान इन अटकलों को और भी मजबूत करता है. ऐसा लगता है कि राजद कांग्रेस को यह साफ संदेश देना चाहती है कि बिहार में महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव ही हैं और इस पर उन्हें कोई समझौता मंजूर नहीं है.
वीडियो: राजधानी: नीतीश ने बीजेपी को सीट शेयरिंग में फंसाया!