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Share Split की ABCD, जानें इसे शेयर का छुट्टा क्यों कहते हैं

हमारे फोन पर आए दिन ये नोटिफिकेशन आता रहता है कि फलां कंपनी शेयर स्प्लिट (Share Split) कर रही है. मगर ज्यादातर लोगों को ये नहीं पता होता कि शेयर स्प्लिट क्या होता है.

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शेयर स्प्लिट के बाद अक्सर स्टॉक के दाम बढ़ जाते हैं. (साभारः Freepik)

हमारे फोन पर आए दिन ये नोटिफिकेशन आता रहता है कि फलां कंपनी शेयर स्प्लिट (Share Split) कर रही है. मगर ज्यादातर लोगों को ये नहीं पता होता कि शेयर स्प्लिट क्या होता है. आज हम आपको यही बताएंगे. इस आर्टिकल में जानेंगे कि शेयर स्प्लिट करके कंपनियों को क्या फायदा मिलता है, ये होता कैसे है और निवेशकों को इससे कोई फायदा मिलता है या नहीं.

शेयरों स्प्लिट मतलब शेयरों का छुट्टा

शेयर स्प्लिट का मतलब है शेयरों का बंटवारा. और आसान भाषा में कहें तो शेयरों के टुकड़े. शेयर स्प्लिट होने के बाद कंपनी की टोटल वैल्यू यानी उसका मार्केट कैपिटलाइजेशन वही रहता है. बस शेयरों की संख्या बढ़ जाती है और उनके दाम घट जाते हैं. इसे एक उदाहरण से समझते हैं. मान लेते हैं कि किसी के पास 100 का एक नोट है. उसके बदले उसे 50 के दो नोट दे दिए जाएं. अब इस आदमी के पास नोटों की संख्या जरूर बढ़ जाएगी. मगर उन नोटों की कुल कीमत तब भी 100 रुपये ही रहेगी. आम बोलचाल की भाषा में हम कहेंगे इस आदमी के पास 100 रुपये के बदले 50 के दो छुट्टे हो गए. शेयर स्प्लिट भी इसी तर्ज पर काम करता है. तो कह सकते हैं कि शेयर स्प्लिट मतलब शेयरों का छुट्टा हो गया.

कंपनियों क्यों करती हैं शेयर स्प्लिट?

अब आप पूछेंगे कि जब पैसे उतने ही रहने वाले हैं तो शेयरों में बंटवारा करने की जरूरत ही क्या है? इसका जवाब भी जान लेते हैं. कई बार ऐसा होता है कि शेयरों के दाम काफी बढ़ जाते हैं. एक औसत निवेशक के लिए उन्हें खरीदना मुश्किल हो जाता है. इस तरह उस शेयरों में ज्यादा लोग खरीद बिक्री नहीं कर पाते. शेयरों में खरीद-बिक्री का सिलसिला बढ़ाने के लिए कंपनियां शेयरों को तोड़कर सस्ता कर देती हैं. ताकि, और लोग भी उसे खरीद सकें और ज्यादा से ज्यादा ट्रेडिंग हो सके. किसी शेयर में जितनी ज्यादा ट्रेडिंग या खरीद बिक्री होती है उसके भाव उसी हिसाब से बढ़ते हैं.

शेयर स्प्लिट होता कैसे है?

शेयरों का बंटवारा फेस वैल्यू पर होता है. फेस वैल्यू किसी शेयर की ओरिजनल वैल्यू होती है. इसे दाम प्रति शेयर (Price per share) भी कह सकते हैं. मान लेते हैं कोई कंपनी 10 रुपये की फेस वैल्यू पर 2 करोड़ स्टॉक शेयर बाजार में उतारने जा रही है. उसके दाम 400 रुपये पर लिस्ट हुए. इस तरह कहा जाएगा कि फलां कंपनी का शेयर अपनी फेस वैल्यू के 40 गुना दाम पर लिस्ट हुआ. कुल मार्केट कैप होगा 2 करोड़ X 400 रुपये= 800 करोड़ रुपये.

अब मान लेते हैं, 3 सालों बाद कंपनी के शेयर 4,000 रुपये पर पहुंच गए. आप खुद समझ सकते हैं अगर किसी के पास 10,000 रुपये हैं तो 400 रुपये के भाव पर ये शख्स 25 शेयर खरीद सकेगा. जबकि, 4,000 रुपये के भाव पर दो ही शेयर खरीदे जा सकेंगे. इस वजह से शेयरों में खरीद बिक्री भी सीमित हो जाएगी.

कंपनी का बोर्ड 1:5 के अनुपात में शेयर स्प्लिट करने का फैसला करता है. इसका मलतब है कि हर एक शेयर के बदले 5 शेयर हो जाएंगे. मार्केट में इस कंपनी के 2 करोड़ शेयर हैं, तो इस हिसाब अब बाजार में इस कंपनी के 10 करोड़ शेयर हो जाएंगे. मगर मार्केट कैप 800 करोड़ रुपये ही रहेगा. मगर फेस वैल्यू यानी दाम प्रति शेयर 10 रुपये से घटकर 2 रुपये हो जाएगा. 

इसे और आसान तरीके से एक उदाहरण से समझते हैं. मान लेते हैं कि एक निवेशक के पास इस कंपनी के 10 शेयर हैं. 4,000 रुपये के हिसाब से इनकी मौजूदा कीमत 40,000 रुपये होगी. अगर शेयरों का 1:5 के हिसाब से बंटवारा हुआ तो उसके खाते में शेयरों की संख्या बढ़कर 50 हो जाएगी. मगर कुल रकम 40,000 रुपये ही रहेगी. इस बंटवारे के बाद एक शेयर का दाम 800 रुपये हो गया. दाम सस्ते होने के बाद अक्सर खुदरा निवेशक ऐसे शेयरों को खरीदने दौड़ते हैं. डिमांड बढ़ने के कारण शेयरों के दाम बढ़ते हैं जिससे कंपनी को फायदा होता है.

इसे IRCTC के शेयर स्प्लिट से समझते हैं. IRCTC का शेयर 14 अक्टूबर, 2019 को 644 रुपये पर लिस्ट हुआ था. 2 साल में ही, 19 अक्टूबर 2021 को इसके शेयर 6369 रुपये पर पहुंच गए. यानी दो सालों में 100 फीसदी से ज्यादा. इस स्तर पर पहुंचकर भी शेयरों के दाम बढ़े ही जा रहे थे. एक आम निवेशक के लिए IRCTC के शेयर खरीदना मुश्किल हो गया था. कंपनी ने 1 के बदले 5 शेयर के साथ शेयर स्प्लिट का ऐलान किया था. शेयर स्प्लिट होने के बाद IRCTC के एक शेयर का दाम 900 रुपये की रेंज में आ गया. शेयर बाजार में कंपनी के कुल शेयरों की संख्या भी 25 करोड़ रुपये से बढ़कर 125 करोड़ हो गई. इस तरह निवेशकों के पास औसत दाम में IRCTC के शेयर खरीदने का रास्ता खुल गया. साथ ही कंपनी के शेयरों में ट्रेडिंग भी बढ़ गई, जो शेयर स्प्लिट के पीछे का मकसद होता है.