बुधवार 3 दिसंबर को डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया ऐतिहासिक निचले स्तर तक गिर गया. न्यूज वेबसाइट मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया 90.13 के स्तर निचले स्तर तक लुढ़क गया. इसका सीधा सा मतलब हुआ है कि एक डॉलर खरीदने के लिए 90 रुपये 13 पैसे खर्च करने पड़ेंगे. वैसे तो इस हफ्ते की शुरुआत से रुपया हर दिन गिरावट का नया रिकॉर्ड बना रहा है. लेकिन यह पहला मौका है जब एक डॉलर का दाम 90 रुपये के पार गया है. मंगलवार 2 दिसंबर को भी डॉलर में रुपये में गिरावट देखने को मिली थी. 2 दिसंबर को रुपये में 42 पैसे की गिरावट आई और यह 89.95 प्रति डॉलर पर बंद हुआ.सोमवार 1 दिसंबर को भी रुपया आठ पैसे गिरकर 89.53 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. इस साल अब तक रुपये में 4% से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है. सिर्फ नवंबर में ही यह 0.8% गिरा है.
डॉलर पहली बार 90 रुपये के पार, इसमें आपका नफा या नुकसान?
Rupee falls: बैंकों की तरफ से ऊंचे स्तरों पर डॉलर की खरीद बढ़ने और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की तरफ से भारत के पूंजी बाजार से पैसा निकालने से रुपया कमजोर पड़ा है.
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रुपये में गिरावट के वैसे तो कई कारण हैं . टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंकों की तरफ से ऊंचे स्तरों पर डॉलर की खरीद बढ़ने और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की तरफ से भारत के पूंजी बाजार से पैसा निकालने से रुपया कमजोर पड़ा है. जानकारों का यह भी कहना है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के फैक्टर्स ने रुपये की चाल को प्रभावित किया. न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक खबर बताती है कि रुपये में गिरावट का एक बड़ा कारण ये है कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर अभी अटकी पड़ी है. ब्रोकरेज फर्म एलकेपी सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट रिसर्च एनालिस्ट (कमोडिटी एवं करेंसी) जतीन त्रिवेदी ने कहा कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर कोई स्पष्ट जानकारी न मिलने से रुपया और कमजोर पड़ गया है. शेयर बाजार हो या करेंसी मार्केट में निवेश करने वाले लोग ये अब आश्वासनों के बजाय ठोस जानकारी चाहते हैं. इसकी वजह से पिछले कुछ हफ़्तों में रुपये में बिकवाली तेज़ हुई है.
वहीं, विदेश से सामान मंगाने वाले कारोबारियों (आयातकों) की डॉलर की डिमांड बढ़ी है. ये कारोबारी पहले के मुकाबले ज्यादा डॉलर खरीद रहे हैं क्योंकि विदेशों से ज्यादातर सामान खरीदने पर इसका पेमेंट डॉलर में किया जाता है. कच्चा तेल हो या सोना वगैरह भी खरीदने के लिए डॉलर में पेमेंट होता है. भारत बड़े पैमाने पर विदेशों से तेल, मशीनरी , इलेक्ट्रॉनिक्स और सोना-चांदी आदि खरीदता है. इन सब कारोबारियों की बढ़ती मांग के कारण भी रुपया गिरा है.इसके अलावा जानकारों का कहना है कि तेल कंपनियों और केंद्र सरकार को जो अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाने होते हैं, वे भी डॉलर में चुकाए जाते हैं. इससे भी डॉलर की मांग बढ़ गई.
रुपये में कमजोरी के ये सब तो कारण हैं ही लेकिन एक और भी बड़ा कारण है. वह ये है कि विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. फिनरेक्स ट्रेज़री एडवाइजर्स LLP के ट्रेजरी हेड अनिल कुमार भंसाली ने कहा, “एफपीआई यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक बड़े पैमाने पर डॉलर खरीद रहे हैं. जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयर बेचकर अपना पैसा वापस विदेश ले जाते हैं, तो वे डॉलर खरीदते हैं, जिससे रुपये की वैल्यू गिरती है.
लल्लनटॉप ने दिल्ली विश्वविद्यालय के माता सुंदरी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर सिद्धार्थ राठौर से रुपये में आई तेज गिरावट पर बात की. उन्होंने बताया कि रुपया कमजोर होने की वजह यह है कि विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकाल रहे हैं . व्यापार घाटा भी बढ़ा है . लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक रुपये को किसी तय स्तर पर रोकने के बजाय उसे धीरे-धीरे बाजार के हिसाब से गिरने दे रहा है.
क्या अभी और गिरेगा?
जानकारों का ये भी कहना है कि रुपया 90 का मनोवैज्ञानिक स्तर के पार पहुंच गया है अब रुपया और लुढ़क सकता है. अनिल कुमार भंसाली का कहना है कि अगर आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला करता है तो रुपया और लुढ़क सकता है. आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की 3 दिंसबर से शुरू हो रही है और इस बैठक के नतीजों की घोषणा 5 दिसंबर को होनी है. वहीं, क्रिसिल लिमिटेड के चीफ इकोनॉमिस्ट धर्मकीर्ति जोशी का भी मानना है कि रुपया एक निर्णायक मोड़ के करीब पहुंच रहा है. उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा कि रुपये में रिकवरी की उम्मीद है. जोशी ने कहा कि अगर भारत और अमेरिका के बीच कोई व्यापार समझौता हो जाता है तो रुपया फिर से मजबूत होने लगेगा.
आपको फायदा या नुकसान?
आपको आपके काम की यानी रुपया गिरने से हमारा और आपका क्या फायदा नुकसान होने वाला है? वैसे तो रुपये में गिरावट को आमतौर पर निगेटिव माना जाता है. रुपया गिरने से सबसे बड़ा फायदा निर्यातकों को होता है. भारत के कई व्यापारी ( निर्यातक) ऐसे हैं जोकि अपना सामान विदेशों में बेचते हैं. इनमें आईटी सेक्टर, दवा कंपनियां, टेक्सटाइल और ऑटो कंपोनेंट से जुड़े एक्सपोर्टर शामिल हैं. ये सब डॉलर में भुगतान पाते हैं, इसलिए रुपये में कमजोरी उनके मुनाफे को बढ़ा देती है. इसके अलावा विदेश में काम करने वाले भारतीयों के परिवारों को फायदा है, क्योंकि उन्हें हर डॉलर के बदले ज्यादा रुपये मिलते हैं.
लेकिन रुपये में गिरावट से फायदा से ज्यादा नुकसान होता है. रुपये में गिरावट के चलते विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों को पढ़ाई लिखाई करना और वहां रहना काफी महंगा हो जाता है. अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी और सिंगापुर में पढ़ रहे भारतीय छात्रों ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि रुपये में गिरावट के चलते उनकी फीस महंगी हो गई है. भले ही उनका कॉलेज या यूनिवर्सिटी सीधे तौर पर फीस नहीं बढ़ाई है लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत से उनका बोझ बढ़ गया है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि रुपये में गिरावट के कारण रहने का खर्च और सालाना ट्यूशन फीस लाखों में बढ़ सकती है. एजुकेशन लोन की किस्त का समय भी बढ़ सकती है.
Indian Education Ministry's Bureau of Immigration के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2024 में 7.6 लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए. पिछले कुछ सालों में विदेश पढ़ने जाने वालों की तादाद बढ़ी है. कोविड वाला साल ( 2020) को छोड़ दिया जाये तो विदेशों में पढ़ने वाले भारतीयों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है. साल 2020 में लगभग 2.6 लाख भारतीय छात्र विदेश पढ़ाई करने गए थे . साल 2023 में 8.95 लाख से ज़्यादा भारतीय पढ़ाई के लिए विदेश गए.
इसके अलावा रुपये में गिरावट के कई और भी नुकसान हैं. जैसे कि विदेशों में घूमना-फिरना महंगा हो जाता है. विदेशों से कच्चा तेल, गैस, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स, मोबाइल, मशीनरी, खाद्य तेल वगैरह बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है. इससे देश का आयात बिल बढ़ता है और महंगाई बढ़ती है. अगर कच्चा तेल विदेशों से महंगा खरीदा जाएगा तो जाहिर है कि तेल कंपनियों को भी पेट्रोल-डीजल महंगा करना पड़ सकता है और इससे ट्रांसपोर्ट कॉस्ट बढ़ती है. उद्योगों का उत्पादन खर्च बढ़ जाता है और कई कंपनियां अपनी बढ़ी हुई लागत लोगों पर डाल देती हैं. इस वजह से हमारे आपके जरूरत की चीजों के दाम बढ़ सकते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के माता सुंदरी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर सिद्धार्थ राठौर का कहना है कि रुपया कमजोर होने से पेट्रोल, फर्टिलाइजर, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स जैसे सामान महंगे होने से महंगाई बढ़ती है. विदेश में पढ़ाई और विदेश यात्रा का खर्च बढ़ जाता है. जिन कंपनियों ने डॉलर में कर्ज लिया है, उनकी किस्तें महंगी हो जाती हैं. कुल मिलाकर हालात अभी संकट जैसे नहीं हैं, लेकिन रुपये की यह कमजोरी महंगाई, चालू खाते के घाटे और आम लोगों के बजट पर असर डालती है. इसलिए इसे संभालने के लिए आरबीआई की तरफ से नीतिगत कदम बहुत जरूरी हो जाते हैं.
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