आज भले ही भतेरे सोशल मीडिया ऐप आ गए हों. लेकिन OG सोशल मीडिया ऐप तो आज भी फेसबुक(Facebook) ही है. OG बोले तो अपने जमाने का असली हीरो. फेसबुक को शुरू हुए 20 साल हो चुके हैं. मगर दो दशकों के बाद भी फेसबुक दुनिया का नंबर 1 सोशल मीडिया ऐप बना हुआ है. फेसबुक को हर महीने 3 अरब से ज्यादा एक्टिव यूजर इस्तेमाल कर रहे हैं. और इस माइलस्टोन को अचीव करने का क्रेडिट कंपनी के फाउंडर और CEO मार्क जकरबर्ग (Mark Zukerberg) को जाता है. और भी लोगों को जाता है लेकिन मुख्यतः उन्हें ही जाता है, क्योंकि आईडिया उनका ही था.
जकरबर्ग के पास Meta के सिर्फ 13% शेयर, फिर क्यों उनके कहे बिना कंपनी में कुछ नहीं होता?
मेटा 18 मई 2012 को IPO लेकर आई थी. IPO से पहले जकरबर्ग ने कुछ ऐसा किया कि कंट्रोल जकरबर्ग के पास ही रहे. उन्होंने कंपनी में डुअल क्लास शेयर स्ट्रक्चर लागू कर दिया था.

जकरबर्ग ने मेहनत की है तो उन्हें इसका रिवॉर्ड भी मिला है. ब्लूमबर्ग के बिलिनेयर इंडेक्स(Bloomberg Billionaire Index) के मुताबिक जकरबर्ग दुनिया में दूसरे सबसे अमीर आदमी हैं. उनकी नेट वर्थ इस समय 241 अरब डॉलर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि मेटा या जकरबर्ग के लिए ये सफर मक्खन जैसा स्मूद रहा है. कंपनी कई ऊंचे-नीचे पड़ावों से गुजरी. 2021 में नाम बदलकर मेटा(Meta) कर दिया गया. वॉट्सऐप खरीद लिया, इंस्टाग्राम खरीद लिया. अरबों लगाकर मेटावर्स शुरू किया. कंपनी बढ़ रही थी तो शेयरहोल्डर को भी जबरदस्त रिटर्न मिला.
फिर आया कोविड. अरबों लगाकर जिस मेटावर्स को शुरू किया गया वो एक फ्लॉप प्रोजेक्ट साबित हुआ. बची खुची कसर आर्टिफिशियल इंटेलिसेंज(Artificial Intelligence) ने पूरी कर दी. इस लहर में वो पीछे ना छूट जाएं इसके लिए जकरबर्ग न आनन फानन में पूरा विभाग ही बंद कर दिया. कंपनी के 13 फीसदी लोगों को रातों रात काम से निकाल दिया गया.
कंपनी का रेवेन्यू 5 पर्सेंट घट गया. खर्चा 20 पर्सेंट बढ़ गया. 2022 की तीसरी तिमाही में यानी जुलाई से सितंबर के दौरान कंपनी की कमाई एक साल में घटकर आधी रह गई. करीबन 4.4 अरब डॉलर. कंपनी ने 2021 में अपना नाम बदलकर मेटा कर दिया. उसके बाद से शेयर भी 345 डॉलर से 70 फीसदी घटकर 101 डॉलर पर आ गए.

कोई और लिस्टेड कंपनी होती तो शेयरहोल्डर्स ऐसे कारनामे करने वाले सीईओ की जान ले लेते. लेकिन जकरबर्ग? उनके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. क्योंकि शेयरहोल्डर उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते. वैसे तो इंडिविजुअल स्तर पर जकरबर्ग के पास कंपनी में 13 पर्सेंट हिस्सेदारी ही है. लेकिन इसके बाद भी कंपनी में फैसले लेने का अधिकार जकरबर्ग के पास ही है. क्योंकि उनके पास है एक तुरुक का इक्का. नाम है- क्लास बी शेयर.
दरअसल, मेटा 18 मई 2012 को IPO लेकर आई थी. IPO से पहले जकरबर्ग ने कुछ ऐसा किया कि कंट्रोल जकरबर्ग के पास ही रहे. उन्होंने कंपनी में डुअल क्लास शेयर स्ट्रक्चर लागू कर दिया. इस व्यवस्था में कंपनी के शेयरों को दो कैटेगरी में बांट दिया जाता है. क्लास ए शेयर और क्लास बी शेयर. क्लास ए का एक शेयर एक वोट के बराबर होता है. जबकि क्लास बी का एक शेयर 10 वोट के बराबर होता है. IPO में क्लास ए शेयर ही बेचे जाते हैं. क्लास बी शेयर लिस्ट नहीं होते. जकरबर्ग के पास सबसे ज्यादा क्लास बी शेयर हैं. उनकी वैल्यू उन्हें मेजॉरिटी स्टेकहोल्डर बना देती है.
17 अप्रैल 2025 को कंपनी की तरफ से दिए दस्तावेजों के मुताबिक मार्क जकरबर्ग के पास मेटा के 141,000 क्लास ए शेयर हैं. क्लास बी के 342,606,985 99.8 हैं. दोनों को मिलाकर उनके पास कंपनी में 61% वोटिंग राइट्स हैं. इन्हीं क्लास बी शेयरों की बदौलत जकरबर्ग के पास कंपनी में ज्यादा शेयर ना होते हुए भी कंपनी के लिए फैसले लेने का अधिकार रखते हैं.

यही वजह है कि 70 फीसदी से ज्यादा शेयरों में गिरावट के बाद भी शेयरहोल्डर जकरबर्ग को कुछ नहीं कह सकते. अमेरिका में और भी ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने डुअल क्लास शेयर जारी किए हैं. मेटा के सफर को देखकर साफ साफ कहा जा सकता है कि डुअल क्लास स्ट्रक्चर किसी भी लिहाज से शेयरहोल्डर्स के लिए फायदेमंद नहीं हो सकता. इसलिए शेयरहोल्डर्स की जिम्मेदारी बनती है कि वो किसी भी कंपनी के शेयरों में इनवेस्ट करने से पहले देख लें कि कहीं वो डुअल क्लास शेयर तो नहीं हैं.
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