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बैंक अगर सनी देओल का घर नीलाम करता तो उसकी प्रक्रिया क्या होती?

SARFAESI एक्ट के तहत बैंक NPA की वसूली के लिए Loan Default करने वाले की प्रॉपर्टी जब्त कर सकते हैं.

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सनी देओल पर बैंक ऑफ बड़ौदा के 55.99 करोड़ रुपये बकाया हैं. (तस्वीर साभार- Freepik, इंडिया टुडे)

बैंक ऑफ बड़ौदा ने बीजेपी सांसद और एक्टर सनी देओल की प्रॉपर्टी की नीलामी के लिए रविवार को अखबार में विज्ञापन दिया था. यह नीलामी 25 अगस्त को होनी थी. हालांकि बैंक ने सोमवार को नीलामी का नोटिस लेने की जानकारी देकर सभी को चौंका दिया. नोटिस रद्द करने के पीछे बैंक ने तकनीकी खामियों को कारण बताया है. आइए जानते हैं अगर नीलामी होती तो उसकी प्रक्रिया क्या होती.

तो इसलिए घर बेच रहे थे बैंक

बैंक के मुताबिक सनी देओल पर दिसंबर 2022 से लेकर अब तक 55.99 करोड़ रुपये का बकाया है. इसमें लोन की रकम, ब्याज और पेनल्टी शामिल है. इस पैसे की रिकवरी के लिए बैंक ने सनी देओल के विला को बेचने का विज्ञापन दिया था. विला के अलावा बैंक ने 599.44 स्क्वायर मीटर की एक और प्रॉपर्टी नीलामी के लिए रखी थी. यहां सनी साउंड्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी चलती है. सनी देओल ने लोन लेते समय इस कंपनी को अपना कॉरपोरेट गारंटर बनाया था. जबकि, उनके पिता धर्मेंद्र लोन के पर्सनल गारंटर थे. नोटिस में ये भी कहा गया था कि देओल अभी भी बकाया रकम जमा कर सकते हैं और अपनी प्रॉपर्टी बेचने से रोक सकते हैं. बैंक, सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल असेट्स एंड एन्फोर्सटमेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट (SARFAESI) एक्ट, 2002 के तहत इस प्रॉपर्टी की नीलामी करने जा रहा था.

ये कानून देता है घर बेचने का अधिकार

कई बार लोन लेकर लोग पैसे नहीं चुकाते. लोन का बकाया नहीं मिलने का मतलब है बैंकों का घाटा. ऐसी सूरत में बैंक उधारकर्ता की प्रॉपर्टी बेचकर थोड़ी बहुत जो भी वसूली हो सके उसे वसूलने की कोशिश करते हैं. सनी देओल के मामले में भी ऐसा ही हुआ है. SARFAESI एक्ट बैंकों या वित्तीय कंपनियों को इसी संबंध में अधिकार देता है. 

SARFAESI एक्ट के तहत बैंक डिफॉल्ट करने वाले की प्रॉपर्टी जब्त कर सकते हैं. बैंकों को प्रॉपर्टी बेचने के लिए अदालत की इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती. अगर जमीन एग्रीकल्चरल जमीन हो तब अदालत की इजाजत लेनी पड़ती है. जब उधारकर्ता लगातार 6 महीने तक EMI मिस करता जाता है तब बैंक उसे बकाया चुकाने के लिए 60 दिनों का समय देता है. अगर इन 60 दिनों में भी उधारकर्ता पैसे न चुका पाए तो बैंक इस लोन को नॉन परफॉर्मिंग असेट यानी NPA घोषित कर देता है और इसकी नीलामी की प्रक्रिया शुरू करता है. ये कानून सिक्योर्ड लोन की स्थिति में ही लागू होता है. सिक्योर्ड लोन मतलब, जिस लोन के बदले बैंक उधारकर्ता की प्रॉपर्टी अपने पास रखते हैं. इस तरह बैंक अपना घाटा कम करता है. अगर लोन, ब्याज और पेनल्टी वसूलने के बाद कोई रकम बचती है तो बैंक उसे उधारकर्ता को वापस कर देता है.

ऐसे होती है प्रक्रिया

बैंक पहले प्रॉपर्टी का दाम तय करते हैं. फिर ऑनलाइन पोर्टल्स के जरिए ऐसी प्रॉपर्टी की नीलामी होती है. बैंकों को नीलामी से पहले उससे जुड़ी सारी जानकारी अखबार में विज्ञापन के जरिए देनी होती है. तय तारीख तक प्रॉपर्टी के लिए बोली लगाई जाती है. तारीख आने पर नियमों और नीलामी प्रक्रिया के आधार पर बैंक विजेता बोली का ऐलान करते हैं. उसे प्रॉपर्टी बेच दी जाती है. बोली लगाने वाला चाहे तो इस प्रॉपर्टी के लिए लोन भी ले सकता है. 

बैंकों की तरफ से नीलाम होने वाली प्रॉपर्टी फायदे का सौदा भी हो सकती हैं. दरअसल, बैंक अमूमन इन प्रॉपर्टी का बाजार दाम से कम दाम तय करते हैं. कई बार इस तरह की नीलामी में निवेशकों को कम दाम पर बढ़िया लोकेशन में जबरदस्त प्रॉपर्टी मिल जाती है. कई बार ऐसा होता है कि उस प्रॉपर्टी के लिए कोई खरीदार नहीं मिलता. ऐसी सूरत में बैंक खुद भी उस प्रॉपर्टी को खरीद सकते हैं.