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टर्म इंश्योरेंस या लाइफ इंश्योरेंस, आपके लिए कौन सा बीमा सही है अभी जान लीजिए

लोग अक्सर टर्म और लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में कन्फ्यूज हो जाते हैं.

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जितनी जल्दी पॉलिसी खरीदो प्रीमियम उतना सस्ता पड़ता है.

घर परिवार में कमाई करने वाले सदस्य के मन में कभी न कभी ये ख्याल जरूर आता है कि हमें कुछ हो गया तो हमारे घर वालों का क्या होगा. उनका खर्चा कैसे चलेगा. बच्चे और बुजुर्ग मां-बाप अपना ख्याल कैसे रखेंगे? अगर कोई लोन लिया है तो हमारी मौत के बाद वो पैसे घर वाले कहां से भरेंगे. उन्हें परेशान किया गया तो? ऐसी ही तमाम चिंताओं का जवाब होती है- लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी. लेकिन कुछ लोग जीवन भर के लिए नहीं बल्कि एक तय समय के लिए ऐसे बीमा लेना चाहते हैं. उनके लिए टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी काम आती है. आइए इसे विस्तार से समझते हैंः

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टर्म में सिर्फ कवर का पैसा, लाइफ में रिटर्न का भी फायदा

टर्म लाइफ इंश्योरेंस एक तरह की जीवन बीमा पॉलिसी ही होती है. कई बार लोग टर्म और लाइफ इश्योरेंस में कन्फ्यूज हो जाते हैं. इसलिए सबसे पहले दोनों में अंतर समझ लेते हैं. टर्म और लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी दोनों ही मरने पर कवर देती हैं. टर्म वाली पॉलिसी सिर्फ डेथ कवर ही देती है जबकि लाइफ वाली पॉलिसी कुछ रिटर्न भी ऑफर करती है. टर्म इंश्योरेंस की बारिकियों को और विस्तार से समझने के लिए हमने पॉलिसीबाजार में टर्म इंश्योरेंस हेड ऋषभ गर्ग से बात की. उन्होंने कहा कि 

मान लेते हैं किसी आदमी ने 10 साल वाला 1 करोड़ रुपये का टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी लिया. इसके लिए वह 20,000 रुपये का प्रीमियम भरता है. इस दस साल के अंदर अगर उसकी मौत हो जाती है तो घर वालों को 1 करोड़ रुपये मिल जाएंगे. दस साल बीत जाने के बाद पॉलिसी एक्सपायर हो जाएगी. यानी कोई फायदा नहीं मिलेगा.

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इसके उलट लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी डेथ कवर के साथ-साथ मैच्योरिटी बेनेफिट भी देती है. डेथ कवर यानी कंपनी ने आपके मरने पर जो फायदे देने का वादा किया है वो और पॉलिसी पूरी होने पर जो रिटर्न मिलता है उसे मैच्योरिटी बेनेफिट कहते हैं. लाइफ इंश्योरेंस हो या टर्म, दोनों का एक ही मकसद होता है. हमारे न रहने पर भी परिवार वालों को कोई तकलीफ न हो. या हमारी किसी देनदारी की भरपाई के लिए परिवार वालों को कोई दिक्कत ना उठानी पड़े.

जितनी जल्दी खरीदो उतना बढ़िया

टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी एक तरह से आपकी सैलरी का बैकअप होती है. किसी दुर्घटना में आपकी जान चली जाए तो घर में कमाई का जरिया भी खत्म हो जाता है. ऐसे में ये पॉलिसी आपके नहीं रहने पर घरवालों की जरूरतों का खयाल रखती है. बीमा पॉलिसी कोई भी हो जितनी जल्दी खरीदी जाए उतनी बढ़िया. दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ बीमा पॉलिसी का प्रीमियम महंगा होता जाता है. ऋषभ बताते हैं कि 25 साल और 35 साल वाले के लिए एक ही पॉलिसी के प्रीमियम में 50-100 फीसदी का फरक हो सकता है.

अब आप पूछेंगे कि प्रीमियम क्या है? दरअसल बीमा कंपनी पॉलिसी के तहत कुछ फायदे देने के वादा करती है. इन फायदों के बदले बीमाकर्ता से एक शुल्क वसूला जाता है. इसे ही प्रीमियम कहते हैं. प्रीमियम देने की अवधि ग्राहक अपनी सुविधा के हिसाब से चुन सकते हैं. जैसे- मासिक भरना है कि 6 महीने पर या साल में एक बार ये चुनना ग्राहक के हाथ में होता है. टर्म पॉलिसी को अपनी जरूरत के हिसाब से 10 साल, 20 साल, 30 साल के लिए खरीद सकते हैं. इनमें से ज्यादातर टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम पूरी अवधि भर वही रहता है. ऐसी पॉलिसी बाजार में लेवल टर्म पॉलिसी के नाम से उपलब्ध हैं.

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जितने तंदुरुस्त उतना कम प्रीमियम

प्रीमियम की रकम बीमा लेने वाले की सेहत, उम्र और उसके कितने साल और जिंदा रहने की संभावना है, इन चीजों के आधार पर तय की जाती है. पॉलिसी देने से पहले बीमा कंपनी बीमाकर्ता की व्यक्तिगत मेडिकल रिपोर्ट देखती है. यह भी देखती है कोई अनुवांशिक बीमारी तो नहीं है. उस हिसाब से प्रीमियम की रकम तय होती है. जो शख्स जितना तंदुरुस्त होता है उसका प्रीमियम उतना कम होता है. कई बार लोग बीमारी के बारे में बीमा कंपनी को नहीं बताते. बीमा खरीदते समय तो इसका फायदा मिल सकता है, लेकिन ये हरकत आप पर भारी भी पड़ सकती है.

होता ये है कि बीमा क्लेम करने के बाद कंपनी मामले में छानबीन करती है कि वाकई दावे में दम है या नहीं. अगर जांच में सामने आता है कि आपने बीमारी के बारे में जानकारी छिपाई थी तो वह बीमा आवेदन रद्द कर देती है.

टर्म से लाइफ में हो सकते हैं शिफ्ट

अगर पॉलिसी एक्टिव रहने के दौरान बीमित शख्स की किसी कारण मौत हो जाती है तो उसके परिवारवालों को बीमा के फायदे मिलेंगे. पॉलिसी खत्म होने के बाद बीमित शख्स को कुछ भी उसे बीमा के कोई फायदे नहीं मिलेंगे. कई टर्म पॉलिसी कन्वर्टिबल भी होती हैंं. मतलब आप चाहें तो टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी को परमानेंट लाइफ या यूनिवर्सल लाइफ इंश्योरेंस में भी बदल सकते हैं. इस बारे में हर बीमा कंपनी का अलग-अलग नियम होता है. लेकिन टर्म को लाइफ में बदलने पर प्रीमियम बढ़ जाता है.

सैलरी की 10-20% रकम बराबर हो कवर

कई लोगों इसका फैसला नहीं कर पाते कि उन्हें कितने रुपये का कवर लेना चाहिए. ऋषभ ने बताया कि इसका फैसला दो चीजों पर निर्भर करता है. आपकी सैलरी और खर्चे. सैलरी के 10-20 गुणा बराबर रकम वाला कवर लेनी चाहिए. जैसे अगर किसी की सैलरी 10 लाख रुपये है तो उसके लिए एक-दो करोड़ वाली पॉलिसी सही रहेगी.

दूसरा तरीका है खर्चे के अनुपात में पॉलिसी ली जाए. मान लेते हैं 10 लाख रुपये कमाने वाले का साल में 5 लाख रुपये का खर्चा आता है. महंगाई की मौजूदा दर के हिसाब से अगले 20 सालों में उसका खर्चा डेढ़ करोड़ रुपये के आसपास होगा. इसलिए इस कस्टमर को कम से कम डेढ़ करोड़ का पॉलिसी कवर तो लेना ही चाहिए. अगर प्रॉपर्टी या किसी अन्य असेट में निवेश कर रखा है तो उस स्थिति में कवर की रकम घटा भी सकते हैं.

ऊंचे क्लेम सेटलमेंट रेश्यो वाली कंपनी बढ़िया

किसी बीमा कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो बताता है कि उसने कितने दावों पर पैसा दिया है. मान लेते हैं किसी कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो 98% है. इसका मलतब है वह 100 में 98 दावों पर बीमा का पैसा दे देती है. उसके बाद ये देखना चाहिए कि पॉलिसी कौन-कौन से फायदे दे रही है. जो पॉलिसी आपकी जरूरतों से मेल खाती हो उसे ही खरीदना चाहिए. पॉलिसी के फायदे बढ़ाने के लिए अलग से राइडर भी जोड़ सकते हैं. जैसे अगर गाड़ी चलाते हैं तो एक्सीडेंट डेथ बेनेफिट राइडर जोड़ सकते हैं. यह राइडरपॉलिसी के दौरान एक्सीडेंट की वजह से मौत होती है तो ज्यादा पैसे मिलते हैं.

एक पॉपुलर राइडर होता है एक्सीडेंट डेथ और डिसेबिलिटी बेनेफिट. मान लेते हैं किसी एक्सीडेंट में बीमाकर्ता किसी भी तरह से दिव्यांग हो जाता है. इस स्थिति में बीमा कंपनी उसे अलग तरह के फायदे ऑफर करती है जैसे प्रीमियम कम हो जाती है या मैच्योरिटी बेनेफिट बढ़ जाता है.

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