प्राइवेट बैंकों के बीच ज्यादा बीमा पॉलिसी कराने का जबर्दस्त कॉम्पिटिशन है. उनके बीमा कर्मचारियों पर नई-नई पॉलिसी कराने का प्रेशर रहता है. इसका खामियाजा कभी-कभी ग्राहकों को उठाना पड़ता है, जब उन्हें धोखे में रखकर पॉलिसी बेच दी जाती है.
बैंक ने धोखे से बेच दी है बीमा पॉलिसी? ये तरीका वापस दिलाएगा आपका पैसा
बीमा पॉलिसी वापस करने के लिए बैंक, इंश्योरेंस कंपनी, ओम्बुड्समैन और इरडा के पास कर सकते हैं शिकायत.

अगर बैंक ने आपको जबरदस्ती इंश्योरेंस पॉलिसी बेच दी है तो घबराने की जरूरत नहीं है. आपके पास कई ऐसे रास्ते मौजूद हैं जो पॉलिसी लौटाने के साथ पहला प्रीमियम वापस भी करा सकते हैं.
पॉलिसीएक्सडॉटकॉम के सीईओ नवल गोयल ने इस बारे में बिजनेस टुडे को बताया,
'बैंक ग्राहकों को बैंकश्योरेंस (Bancassurance) के जरिए बीमा पॉलिसी बेचते हैं. इंश्योरेंस कंपनी और बैंक के बीच साझेदारी होती है. बैंक अपने ग्राहकों को उस बीमा कंपनी की पॉलिसी बेचते हैं.'
मसला तब होता है जब बैंक के एजेंट अपना टारगेट पूरा करने के लिए किसी ग्राहक कोई भी पॉलिसी बेच देते हैं, जो ग्राहक के बजट के बाहर होती है या दी गई पॉलिसी बताए गए नियम-शर्तों से बिल्कुल अलग होती है.
इस समस्या पर ‘इंश्योरेंस समाधान’ की को-फाउंडर और सीओओ शिल्पा अरोरा ने दी लल्लनटॉप को बताया,
‘बैंक अक्सर उन लोगों को धोखे से पॉलिसी बेचने की कोशिश करते हैं, जो रुपये-पैसों के मामलों में थोड़े कच्चे होते हैं और उनके पास ज्यादा रकम होती है. मिसाल के तौर पर ऐसे सीनियर सिटीजन जिन्हें हाल ही में रिटायरमेंट की रकम मिली हो या घरेलू महिलाएं.’
शिल्पा ने आगे कहा,
‘कई बार लोन लेने आए लोगों को कहा जाता है कि ये इंश्योरेंस लेना जरूरी है या फिर फलां इंश्योरेंस लेने से लोन जल्दी मिल जाएगा. इस तरह लोग मजबूर होकर बीमा पॉलिसी खरीद लेते हैं. इंश्योरेंस समाधान में हम ऐसे ही लोगों की मदद करते हैं.’
शिल्पा बताती हैं कि कई बार तो ऐसा होता है जब सीनियर सिटीजन रिटायरमेंट के पैसे लेकर बैंक में एफडी कराने जाते हैं और वहां बिना उनकी जानकारी के एफडी की जगह उनका बीमा कर दिया जाता है. बाद में अगले साल उसका प्रीमियम कटता है तब उन्हें इस फ्रॉड की जानकारी होती है.
क्या है शिकायत का तरीका?शिल्पा बताती हैं कि बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority- IRDAI) ने ऐसे मामलों के लिए 15 दिनों का फ्री लुक पीरियड तय किया हुआ है. जिस दिन पॉलिसी आपके नाम चढ़ती है, उसी दिन से फ्री लुक पीरियड शुरू हो जाता है. अगर इन 15 दिनों के अंदर किसी भी कारण से पॉलिसी वापस करने का इरादा बनता है तो बैंक को नहीं सीधे इंश्योरेंस कंपनी को मेल लिखें. क्योंकि बैंक के पास आप सिर्फ चक्कर लगाते रह जाएंगे और इसी में फ्री लुक पीरियड निकल जाता है.
ऐसे ग्राहकों को सीधे इंश्योरेंस कंपनी के कस्टमर केयर सर्विस पर मेल भेजना होगा. मेल कागजी सबूत हो जाता है कि आपने शिकायत की है और आपका केस भी मजबूत हो जाता है. अगर कंपनी को आपकी दलील सही लगती है तो पॉलिसी कैंसिल होने के साथ पहले प्रीमियम का पैसा भी वापस हो जाता है.
फ्री लुक पीरियड के 15 दिन गए तो क्या होगा?ग्राहक पॉलिसी लेने के एक-दो साल बाद भी शिकायत कर सकते हैं. ऐसे मामलों में लोग इंश्योरेंस कंपनी की ग्रीवांस सेल यानी शिकायत निपटान फोरम पर जा सकते हैं. कंपनी की वेबसाइट पर ग्रीवांस ऑफिसर की जानकारी मिल जाएगी.
उसके मेल पर अपनी शिकायत डिटेल में लिखकर भेज दें. अपनी बात को साबित करने का कोई सबूत हो तो उसे भी साथ में अटैच कर दें. अगर ग्रीवांस अधिकारी को आपकी शिकायत वैध लगती है तो आपके पैसे वापस हो जाएंगे.
अगर वहां से 15 दिनों के अंदर कोई जवाब नहीं आता या आपकी शिकायत को खारिज कर दिया जाता है, तब इंश्योरेंस ऑम्बुड्समैन (जनहित अधिकारी) या बैंकिंग ऑम्बुड्समैन भी जा सकते हैं. इनका एक शिकायत फॉर्म आता है. फॉर्म भरकर और साथ में सबूत भी मेल कर दें या उनके ऑफिस में जमा कर दें.
अगर ऑम्बुड्समैन को लगता है कि ग्राहक को वाकई दिग्भ्रमित करके पॉलिसी बेची गई है तो पॉलिसी कैंसिल हो जाती है और प्रीमियम का पैसा भी वापस आ जाता है. लेकिन, अगर ऑम्बुड्समैन को लगता है कि कस्टमर ने भी अनदेखी की है, फिर उस मामले में पहली पॉलिसी को सिंगल प्रीमियम वाली पॉलिसी में बदल दिया जाता है. 5 साल बाद ग्राहक को पहले प्रीमियम का पैसा वापस मिल जाता है. कुल मिलाकर अगर आपकी शिकायत में दम है तो किसी भी सूरत में आपके पैसे बर्बाद नहीं होंगे.
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