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किस मजबूरी में विदेशियों को पैसा दे-देकर खराब तेल खा रहे हैं हम?

भारत हर साल लगभग 60% खाद्य तेल बाहर से मंगाता है. मुख्यतः पाम ऑयल, जिससे न सिर्फ़ हमारी सेहत बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता पर भी असर पड़ता है। अब सवाल है, क्या हरित क्रांति के बाद हमें "तेल क्रांति" की ज़रूरत है?

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भारत 60% खाद्य तेल इम्पोर्ट करता हैं (इंडिया टुडे)

अभी अभी बारिश का मौसम गया हैं. उससे याद आती हैं गरम गरम पकौड़ों की. अभी सर्दियां भी आने वाले हैं, तब बनेंगें मेथी के पराठें. पर क्या आपने कभी सोचा है कि जिस तेल में आपके घर में खाना पक रहा हैं, छौंक लग रहा हैं, वह आता कहा से हैं? आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि भारत में खाये जाने वाला एडिबल आयल यानी खाद्य तेल, लगभग 60 % बाहर से आता हैं. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में संदीप दास ने बताया कि सितम्बर के महीने में, एडिबल आयल का इम्पोर्ट पिछले महीने के मुक़ाबले 51% बढ़ा. और जो हम बाहर से मंगाते हैं, उसमें सबसे ज्यादा आता हैं पाम आयल. फिर सोयाबीन और फिर सनफ्लावर आयल.

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हमारे देश में ज्यादातर बनता हैं सरसों का तेल, नारियल के तेल, तिल का तेल, मूंगफली, सोयाबीन आदि. भारत ने 2023-2024 में 16 मीट्रिक टन एडिबल आयल इम्पोर्ट किया. लगभग 1.5 लाख करोड़ रूपए का तेल. मतलब हम एडिबल आयल जैसी ज़रुरत मंद चीज़ के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं. पर अब आप पूछेंगें कि प्रॉब्लम क्या हैं? आ रहा हैं, आने दो.  लेकिन प्रॉब्लम तो हैं.

पहली- निर्भरता। डिपेंडेंस. वो ज़माना याद है? जब अमेरिका हमें अनाज देता था. PL-480 के तहत, 1960 के दशक में. एक बार तो जब हमने पाकिस्तान से लड़ाई की ठानी, तो अमेरिका ने गेहूं रोककर हमें दबाव में लाने की कोशिश भी की थी. तो बस वही बात हैं. खाद्य तेल के लिए अगर हम इतना ज्यादा निर्भर रहें, तो वह भी किसी समय हमारे खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता हैं. इसे कहते हैं यूज़िंग "ट्रेड ऐज़ अ वेपन". हम सबसे ज्यादा इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से खाद्य तेल मंगाते हैं.

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दूसरी प्रॉब्लम हैं लोगों के बदलते हुए कन्सम्प्शन पैटर्न. 
अब क्योंकि पाम आयल सस्ता मिलता हैं, कई पैकेज्ड आइटम में उसे डाला जाता हैं. बिस्किट, नमकीन, इन सब के पैकेट्स पर आपने पढ़ा होगा- "वैजिटेबल आयल". लेकिन कई डॉक्टर्स का कहना हैं कि वह सेहत के लिए अच्छा नहीं होता. उसमें हाई सैचुरेटेड फैट होता हैं. मतलब ऐसा फैट जो आपके बुरे वाले कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा देता हैं. पर जब तेल ही वही मिलेगा, सस्ता भी वही मिलेगा. तो क्या लोगों के पास कोई और ऑप्शन रहता हैं? शायद नहीं. जो लोग महंगे तेल नहीं खरीद पाएंगे, तो पाम आयल, या उसके साथ मिला हुआ तेल ही खाएंगे. और हाँ. यह महंगे तेल, कोई बिज़नेसमैन की मर्ज़ी से महंगे नहीं है. क्योंकि देश में आयल सीड कम पैदा होता है, तो तेल भी कम बनता है. आयल सीड कम क्यों पैदा होता हैं? देश की फार्म पॉलिसीस के चलते. इसके बारे में और जानने के लिए आप अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के साथ हुई बैठकी का यह एपिसोड देख सकते हैं. 00:38:12 मिनट से.

अब सोचिए, इससे नुकसान सिर्फ सरकार के वॉलेट को नहीं है, जो अरबों डॉलर बाहर भेजे जा रहे हैं. बल्कि, इससे हमारे शरीर और सेहत पर भी असर पड़ रहा है. विरोधाभास देखिये यहाँ- हमारे पास सरसों, नारियल, मूंगफली, तिल, सूरजमुखी जैसी तेल देने वाली फसलें हैं। हमारा मौसम भी इन्हें सपोर्ट करता है। हमारी डाइट भी इन्हीं पर बसी थी। लेकिन हमने धीरे-धीरे विदेशी तेल को अपनी रसोई में जगह दे दी. बिगड़ी हुई फार्म पॉलिसीस के चलते। खैर, तो क्या समय आ गया हैं, की जैसे एक बार हरित क्रान्ति हुई थी, उसी तरह देश में अब खाद्य तेल को लेकर भी एक क्रान्ति की ज़रुरत हैं? आप इस बारे में क्या सोचते हैं?  

वीडियो: बैठकी: MSP से लेकर Ethanol और फ्री राशन पर कृषि अर्थशास्त्री प्रो. अशोक गुलाटी ने क्या बता दिया?

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