01 फ़रवरी, 2023 का दिन. बजट का दिन. 2023-24 का बजट पेश करेंगी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. लेकिन आख़िर ये बजट होता क्या है? कैसे शुरू हुआ? बजट को बजट क्यों कहते हैं? 'इकॉनमिक सर्वे', 'ट्रेड डेफिसिट', 'रेवेन्यू बजट' और 'कैपिटल बजट' जैसे शब्दों के क्या मायने हैं? बजट में मेरे लिए क्या है? इन सबके उत्तर पूछने पर बड़े-बड़े जानकार, बड़े-बड़े फ़िगर्स, डेटा और मुश्किल टर्म्स हमारी तरफ उछाल देते हैं. फिर हमारी जो बजट को लेकर थोड़ी बहुत उत्सुकता होती भी है, वो भी जाती रहती है. ‘कोऊ नृप होई…’ वाली तटस्थता ओढ़ लेते हैं हम. इसी को ध्यान में रखते हुए हमने बजट से पहले स्पेशल सीरीज़ शुरू की है. बजट 2023. जिसमें सब नहीं भी, तो बहुत कुछ बताएंगे. और बताएंगे, आपकी-हमारी, यानी आसान भाषा में.
भारत सरकार का पहला बजट पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली ने क्यों पेश किया था?
भारतीय बजट का इतिहास भाग-1: संविधान में बजट का कोई ज़िक्र नहीं तो फिर हम बजट को 'बजट' क्यों कहते हैं?


‘भारतीय बजट का इतिहास’ लंबा है. पहले भाग में हम जानेंगे: बजट को बजट क्यों कहते हैं? अंतरिम बजट क्या होता है? आज़ादी से पहले तक का भारतीय बजट का इतिहास? और आज़ाद भारत के शुरुआती कुछ बजट.
Budget नाम आया कहां से-असल में ‘बजट’ शब्द के मूल में है फ़्रांस का एक शब्द ‘बुगेट' (bougette). बुगेट का अर्थ है एक छोटा चमड़े का बैग, बटुआ या थैली. और कई बार इसके अंदर के सामान के लिए भी ‘बुगेट’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. अतीत में कहा जाता था कि ब्रिटेन के ‘चांसलर ऑफ़ एक्सचेकर’ (Chancellor of the Exchequer) यानी वित्तमंत्री ने अपना ‘बजट’ खोला. मतलब उन्होंने अपना बैग खोला जिसमें से ‘वित्तीय योजनाओं’ से संबंधित दस्तावेज़ निकाले.

बीबीसी के एक आर्टिकल के अनुसार,
छठवीं शताब्दी में बाइबिल के एक अनुवाद में ‘बोवगे (bowge)’ शब्द आया था. जहां पर इसका मतलब था, चमड़े का बैग. ये बोवगे, एक फ्रांसीसी शब्द ‘बोग (bouge)' से आया था. उससे पहले लैटिन के ‘बुलगा (bulga)’ और उससे भी पहले केल्टिक के ‘बोल्ग (bolg)’ से. जिसका अर्थ था, एक बैग या बोरी. ‘बैली (belly)’ जैसे शब्द भी यहीं से आए हैं. उसके बाद लोग कहने लगे, ‘अपना बजट खोलो’. जिसके मायने थे ‘ज़रा दिखाओ तो तुम्हारे पास क्या है’ या फिर ‘हमें बेवूकफ मत बनाओ, हम जानते हैं तुम्हारे पास कुछ नहीं है.’
धीरे-धीरे ‘बजट’ को ‘वित्तीय योजनाओं के दस्तावेज़’ के संदर्भ में ही प्रयोग में लाया जाने लगा. और उसमें से ‘खोलने’ या ‘निकालने’ का संदर्भ छूटता गया.
भारत की बात करें तो, हमारे संविधान में ‘बजट’ शब्द का उल्लेख नहीं मिलता. संविधान के आर्टिकल 112 में इसके बजाय ‘एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट’ यानी ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है.
दरअसल, जैसे लोकसभा चुनावों को हम आम भाषा में ‘आम चुनाव’ कह देते हैं, वैसे ही देश के बजट को हम ‘आम बजट’ कह देते हैं. लेकिन ये ज़रूर है कि ‘बजट’ शब्द के साथ औपचारिक-अनौपचारिक वाली रेखा पूरी तरह मिट चुकी है. हालांकि 2022-23 में ‘बजट’ शब्द से ‘डू-अवे’ करते हुए निर्मला सीतारमण ने इसे 'देश का बहीखाता' कहा था. साथ ही उन्होंने इसे किसी ‘बुगेट' (bougette) में नहीं रखा था. बल्कि इसे लाल रंग के एक कपड़े में डोरी से बांधा था.

लेकिन अगर आपको लगता है कि ये पहली बार था जब बजट से जुड़ी कोई परंपरा तोड़ी गई थी तो आपको भारतीय बजट के पूरे इतिहास को ज़रूर जानना चाहिए. जिसमें नई परंपराएं जोड़ने, पुरानी परंपराएं तोड़ने और और कई दोबारा से इंट्रड्यूस करने की लंबी ‘परंपरा’ रही है.
# बजट की भारत में शुरुआतसाल था 1860. ढेरों शुरुआती क्रांतियों और विद्रोहों को दमन करते हुए ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ की हालत पतली हो चली थी. ऐसे में ज़रूरत थी खर्च और आमदनी का हिसाब-किताब रखने की. जेम्स विल्सन इस काम के लिए सबसे मुफ़ीद अंग्रेज माने गए. उन्हें 1859 में क्वीन विक्टोरिया ने भारत भेज दिया. बजट के अलावा टैक्स को लेकर क़ानून बनाने और भारत में काग़ज़ की मुद्रा की शुरुआत करवाने के लिए.
इससे पहले टोपी बनाने और बेचने से अपने करियर की शुरुआत करने वाले जेम्स धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए थे. वो ब्रिटेन के संसद सदस्य और वहां के वित्त सचिव भी रह चुके थे. इंडिया आने के बाद से 1860 तक, वो उस समय के वायसराय की वित्त परिषद के सदस्य रहे.

आपको ये पढ़ कर समझ में आ रहा होगा कि ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ब्रितानी हुकूमत में कैसा सामंजस्य था. और क्यों इन दोनों को अलग-अलग मानना बेमानी है.
बहरहाल, 1860 में भारत का सबसे पहला आम बजट पेश किया गया. और ये बजट पेश हुआ था 07 अप्रैल, 1860 को शाम के 5 बजे. इसे अविभाजित भारत का पहला आम बजट और जेम्स विल्सन को भारतीय बजट व्यवस्था का पितामह माना गया.
नोट- अब इस 07 अप्रैल वाली डेट के साथ बहुत कनफ़्यूजन है. हमने रिसर्च के वास्ते कई रिसोर्सेज़ क्रॉस वेरिफ़ाई किए. आधी जगहों पर ये डेट 07 अप्रैल, 1860
तो आधी जगहों पर 18 फ़रवरी, 1860 बताई गई है. इकनॉमिक टाइम्स तो साल भी बदल देता है, शायद किसी टाइपो के चलते, और तारीख़ 18 फ़रवरी, 1869
की कहता है.
आज डेढ़ सौ सालों के बाद भी सफलतापूर्वक चल रहे ‘स्टेंडर्ड चार्टर’ बैंक और ‘दी इकनॉमिस्ट’ न्यूज़पेपर के संस्थापक जेम्स विल्सन इस बजट को पेश करने के बाद ज़्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहे. 11 अगस्त, 1860 को भारत में ही उनकी मृत्यु हो गई. आज भी उनकी कब्र कोलकाता की प्रसिद्ध चौरंगी लेन के पास स्थित है. जिसे 2007 में तब के एक इनकम टैक्स ऑफ़िसर ने दोबारा खोजा और उसका जीर्णोद्धार करवाया.

1860 का पहला बजट ब्रिटिश मॉडल पर बेस्ड था. इसमें ज़्यादातर प्रावधान और समीक्षाएं सैनिकों और सैन्य बल को लेकर थे. इसमें वित्त मंत्री के जॉब प्रोफ़ाइल की भी रूपरेखा तय हुई थी. जेम्स विल्सन ही वो व्यक्ति थे, जो भारत में पहली बार इनकम टैक्स क़ानून भी लेकर आए थे. जिसका ‘छिटपुट’ विरोध भी हुआ था. दी वीक के एक आर्टिकल के अनुसार-
ब्रिटिश शासित भारत के बेहतरीन सिविल सर्वेंट्स में से एक चार्ल्स ट्रेवेलियन ने तब सवाल उठाया था कि राज्य उन लोगों पर कर कैसे लगा सकता है जिनका सरकार में कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है. सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग ट्रेवेलियन से नफरत करने लगा कि वो मूल निवासियों के बारे में क्यों बात कर रहे हैं. लेकिन प्रबुद्ध अंग्रेजों और भारतीयों ने उनकी बहसों से प्रेरणा ली. जल्द ही, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ जैसे संगठनों का जन्म हुआ. जो सरकार में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की मांग रखने लगे.

बात करें आज़ाद भारत के पहले बजट की तो सब जगह आपको यही पढ़ने को मिलेगा कि भारत सरकार का पहला बजट 26 नवंबर, 1947 को आर. के. शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था. और ये बात काफी हद तक सही भी है, लेकिन पूरी तरह नहीं. क्योंकि ये आज़ादी के बाद का बेशक पहला बजट था लेकिन इससे पहले मुस्लिम लीग के लियाक़त अली खान पहले भारतीय थे, जो भारत की अंतरिम सरकार का बजट पेश कर चुके थे. जी, वही लियाक़त अली खान जो बाद में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने. हालांकि लियाक़त अली खान का ये बजट, 'अंतरिम बजट’ तो था ही, लेकिन ‘अंतरिम सरकार’ का बजट भी था.
अंतरिम (अंतिम निर्णय से पहले की व्यवस्था) का मतलब होता है, दो रेगुलर के बीच के ट्रांसिक्शन के दौरान. जैसे यहां पर ‘अंतरिम सरकार’ का मतलब-
जब अंग्रेज़ हुकूमत जाने वाली थी और आज़ाद भारत की सरकार बनने वाली थी तो इस दौरान कुछ समय, सत्ता हस्तांतरण के लिए एक अल्पकालीन सरकार बना दी गई. 2 सिंतबर, 1946 में.
ताकि आवश्यक कार्य न रुकें और सत्ता हस्तांतरण भी तेजी से हो.

तो ये हो गई ‘अंतरिम सरकार’. ऐसे ही अंतरिम बजट का भी हिसाब है. किसी के इस्तीफे, सरकार के गिर जाने या आम चुनाव या ऐसे ही कई अन्य कारणों के चलते जब नए, पूर्णकालिक बजट के आने में देर हो तो तब तक के लिए एक टेंटेटिव बजट बना लिया जाता है. ताकि आवश्यक कार्य न रुकें. उसे कहते हैं 'अंतरिम बजट’.
# वोट ऑन अकाउंट-कई जगह आपको पढ़ने को मिलेगा कि ‘वोट ऑन अकाउंट’ और ‘अंतरिम बजट’ दोनों एक ही हैं. लेकिन इन दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर है. इसे उदाहरण से समझाना ज़्यादा बेहतर होगा. मानिए इस साल मई में चुनाव होने हैं, तो सरकार फ़रवरी में ‘अंतरिम बजट’ और उसके साथ ‘वोट ऑन अकाउंट’ भी पेश करेगी. अब अगर मई में दोबारा वही सरकार आती है तो हो सकता है कि वो चुनाव से पहले वाले अंतरिम बजट को ही पूर्णकालिक बजट मानकर उसपर आगे काम करे और कोई पूर्णकालिक बजट पेश ही न करे. क्योंकि ‘अंतरिम बजट’ के लगभग सभी कंपोनेंट्स, पूर्णकालिक बजट की तरह ही होते हैं. इवन ‘डिबेट’ भी दोनों ही तरह के बजट का हिस्सा होती हैं. बस अंतर ये होता है कि अंतिरम बजट में लोक-लुभावन वादे करने से सरकार को बचना चाहिए.

लेकिन नई सरकार के आने तक इस वर्तमान सरकार (जिसे केयरटेकर सरकार भी कह सकते हैं) को भी संसद चलाने के लिए पैसे चाहिए न? तो इसी अल्पकालिक व्यय की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 में एक ‘वोट ऑन अकाउंट’ की व्यवस्था की गई है. ये व्यवस्था भारत के समेकित कोष (कंसोलिडेटेड फंड) से केंद्र सरकार को अग्रिम रूप से एक अनुदान मुहैया कराती है. ये अनुदान नए वित्तीय वर्ष से लेकर नई सरकार के बनने तक सरकारी कामकाज चलाने में काम आता है. इसलिए ही आम तौर पर 'वोट ऑन अकाउंट' दो महीने के अंतराल के लिए पेश होता आया है. 'वोट ऑन अकाउंट’ और ‘अंतरिम बजट’ में एक और अंतर ये है कि 'वोट ऑन अकाउंट’ के लिए चर्चा (डिबेट) का प्रावधान नहीं है.
# आज़ाद भारत का आज़ाद बजट-वैसे, आज़ाद भारत के लिए आर. के. शनमुखम चेट्टी का पहला बजट भी पूर्णकालिक बजट नहीं था. क्योंकि ये भी सिर्फ़ सात महीने से कुछ ज़्यादा समय का था. अपने अगले बजट में ख़ुद षणमुखम चेट्टी ने इस पिछले बजट को ‘अंतरिम बजट’ कहा था. तब से अब तक आज़ाद भारत में कुल 91 आम बजट पेश किए जा चुके हैं, जिसमें से 72 पूर्णकालिक और 15 अंतरिम बजट हैं (14, अगर 1947-48 वाले बजट को पूर्णकालिक माना जाए तो) इसके अलावा 4 ऐसे बजट भी हैं जो विशेष अवसरों पर पेश किए गए है.
शनमुखम के इस पहले बजट में किसी नए कर का प्रावधान नहीं था. इसमें ये निर्णय भी लिया गया था कि जब तक पाकिस्तान के नोट छपने शुरू नहीं हो जाते, तब तक वो भारत की मुद्रा का इस्तेमाल कर सकता है.

शनमुखम को लेकर नेहरू को लगता था कि कोयंबटूर की एक मिल के मुद्दे पर वो कुछ ज़्यादा ही पर्सनल इंट्रेस्ट दिखा रहे हैं. इस बारे में जब नेहरू ने शनमुखम से पूछा तो देश की ये पहले वित्त मंत्री, नेहरू के मंत्रिमंडल को छोड़कर चल दिए कि, ‘उनके चरित्र पर कैसे ऊंगली उठाई गई?.’
शनमुखम के इस्तीफे के बाद, क्षितिश चंद्र नियोगी ने 1950 में भारत के दूसरे वित्त मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला. उन्होंने महज 35 दिनों के लिए पद संभाला और फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ कॉन्ग्रेस छोड़कर चल दिए. यूं उन्हें बजट पेश करने का मौका नहीं मिला. वो, और बाद में हेमवंती नंदन बहुगुणा, ऐसे दो वित्त मंत्री हुए हैं जिन्हें बजट पेश करने का मौका नहीं मिला.
जॉन मथाई आज़ाद देश के पहले रेल मंत्री थे. क्षितिश के बाद वो वित्त मंत्री बने. 1950 में उन्होंने गणतंत्रिक देश का पहला वित्त बजट पेश किया था. हालांकि ‘योजना आयोग’ के वित्त मंत्रालय में बढ़ते दख़ल के चलते उन्होंने इस बजट को पेश करने के कुछ ही महीनों बाद इस्तीफ़ा दे दिया था.
इसके बाद RBI के प्रथम गवर्नर सी. डी. देशमुख को वित्त मंत्री बनाया गया. उन्होंने 1952 में पहली बार देश के नागरिकों द्वारा चुनी गई सरकार ने बजट पेश किया था. पहले बजट के डॉक्यूमेंट्स सिर्फ़ अंग्रेज़ी में छपा करते थे. हिंदी में भी छपना शुरू हुए 1955-56 वाले बजट से.

इन कुछ सालों के दौरान बजट में ‘रक्षा’, ‘खाद्यान्न’, ‘योजना आयोग’, ’बाढ़’ और ‘अकाल’ जैसे कीवर्ड हावी रहे थे.
‘योजना आयोग’ की बात बहुत बार हो रही है, तो आपको बता दें कि मोदी सरकार के प्रथम कुछ कार्यों में से एक था योजना आयोग को भंग करना और उसके बदले नीति आयोग का गठन करना. 1 जनवरी, 2015 में नीति आयोग की स्थापना की जा चुकी थी.
जब किसी क्लास में कोई दोस्त कई बार फेल हो जाता था तो उसकी मौज लेते हुए संगी कहते थे कि बंदा पंचवर्षीय योजना पूरी करेगा. ये ‘पंचवर्षीय योजना’, योजना आयोग की ही देन थी. योजना आयोग ही इनको बनाता, लागू करता और मॉनीटर करता था. 1951 से 2017 तक, देश में कुल 12 ‘पंचवर्षीय योजनाएं’ बनाई गईं. लास्ट वाली पंचवर्षीय योजना को 2015 से 17 तक नीति आयोग ने आगे बढ़ाया. क्योंकि 1 जनवरी, 2015 में नीति आयोग की स्थापना की जा चुकी थी. उसके बाद 13वीं पंचवर्षीय योजना कभी नहीं आई. (...क्रमशः)

अगले एपिसोड में
जानेंगे उस दुर्योग के बारे में, जो आज़ाद भारत के पहले 22 सालों तक वित्त मंत्रियों से जुड़ा रहा.
(ये स्टोरी हमारे साथी रहे दर्पण साह की लिखी है)
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