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प्राइवेट इंटरनेट देने वाली VPN कंपनियों ने झोला उठा लिया है, सरकार का ये फैसला बना वजह!

प्राइवेट इंटरनेट इस्तेमाल करना मुश्किल होने वाला है.

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Why are companies like ExpressVPN and Nord VPN leaving India?
सरकार के फैसले का असर कंपनियों पर साफ देखा जा सकता है.
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सूर्यकांत मिश्रा
3 जून 2022 (Updated: 3 जून 2022, 05:56 PM IST) कॉमेंट्स
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हाल में एक खबर आई कि वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क सर्विस देने वाली कंपनी ExpressVPN भारत में अपनी सर्विस बंद कर रही है. अब पढ़ने में भले ये कोई आम खबर जैसे ही लगे लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस खबर को दुनिया भर की न्यूज एजेंसियों ने तरजीह दी है. India Today की खबर के मुताबिक, VPN सर्विस मुहैया कराने वाली एक और कंपनी Nord भी देश से अपना कारोबार समेटने के मूड में है. आखिर VPN (Virtual private network) क्या बला है? और ऐसा क्या हुआ जो इन कई और कंपनियां ने भारत में अपना बोरिया बिस्तर समटने का फैसला कर लिया है.

क्या है Virtual private network?

अब इंटरनेट का इस्तेमाल तो हम सभी करते हैं. इसका सबसे आसान और सुलभ तरीका है मोबाइल डेटा सर्विस या फिर वाई-फाई से अपने डिवाइस को कनेक्ट कर लेना. अब इस तरीके में कोई बुराई नहीं, लेकिन ये भी कोई छिपी बात नहीं कि ऑनलाइन सिक्योरिटी और यूजर की प्राइवेसी हमेशा दाव पर लगी होती है. जब सब कुछ खुला खेल फर्रुखाबादी टाइप है, मतलब कोई सा भी वाई-फाई इस्तेमाल कर लो, कहीं से भी कनेक्ट हो जाओ. ऐसे में फर्जीवाड़ा होना कोई मुश्किल भी नहीं है. आए दिन हैकिंग से जुड़ी खबरें आती रहती हैं. आप और हम तो ठहरे आम यूजर लेकिन उन संस्थानों या लोगों का क्या जिनके लिए इंटरनेट सिक्योरिटी ही सब कुछ है. इसी दिक्कत से बचने का उपाय है VPN, बोले तो वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क. वर्चुअल मतलब आभासी बोले तो जो वास्तविक लगे लेकिन असल में नहीं हो. आसान भाषा में कहें तो खुद का इंटरनेट. ऐसी तकनीक जो असुरक्षित या ओपन सोर्स इंटरनेट को सेफ कनेक्शन में बदलने का काम करती है. खुश होने वाली बात ये है कि इसके लिए आपको खुद का कोई सैटेलाइट आसमान में बिठाने की जरूरत नहीं है और दुखी करने वाली बात ये कि इसके लिए आपको जेब ढीली करनी पड़ेगी. ऐसी ही सर्विस देने का काम ExpressVPN और Nord जैसी कंपनियां करती हैं.

वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क
काम कैसे करता है VPN?

लैपटॉप हो या स्मार्टफोन, आप जब भी इंटरनेट पर कुछ भी सर्च करते हैं तो आपकी रिक्वेस्ट सबसे पहले सर्विस प्रदाता बोले तो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) के पास जाती है. यहां सबसे पहले आपकी ऑनलाइन कुंडली जैसे डिवाइस का आईडी, लोकेशन की पहचान होती है, उसके बाद उसको संबंधित वेबसाइट के सर्वर से जोड़ा जाता है. कहने का मतलब आपके और उस वेबसाइट के बीच अब जो भी डेटा का आदान-प्रदान होगा उसमें इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एक ब्रिज का काम करेगा. मतलब आपकी सर्च या ब्राउज़िंग से जुड़ा पूरा लेखा जोखा उनके पास दर्ज होगा ही. एक बात और जान लीजिए. आपको लगता है कि आपने इनकॉगनिटो मोड पर कोई काम कर लिया और आप दुनिया जहान की आंखों से बच गए तो आप मुगालते में हैं. इनकॉगनिटो मोड पर जब आप काम करते हैं तो आपकी हिस्ट्री और कुकीज भले आपके ब्राउजर पर रिकॉर्ड नहीं होते. लेकिन इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर या इंटरनेट कंपनी जरूरत पड़ने पर इसको बड़े आराम से देख सकती है. ऐसे ओपन सोर्स इंटरनेट की एक दिक्कत और है, इसमें कई बार बहुत सारी वेबसाइट खुलती नहीं हैं. ये तो हो गई आम जिंदगी लेकिन यहां बात हो रही है VPN की.

अब इतना तो हम आपको बता चुके कि ये वाला इंटरनेट आपको किसी सर्विस प्रदाता से मिलेगा. तो अगर आप डिवाइस पर TheLallantop.com टाइप करेंगे तो आपकी रिक्वेस्ट जाएगी सीधे VPN सर्वर पर वो भी Encrypted होकर. अब इसको ऐसे समझिए जैसे पाइप में पानी जाता है. मतलब दिख तो रहा है और नहीं भी. आपके और VPN सर्वर के बीच यही पाइप होता है जो सिर्फ ये बताता है कि कुछ सर्च किया जा रहा है लेकिन क्या, वो नहीं. अब जैसे ही आपका डेटा या सर्च रिक्वेस्ट VPN सर्वर तक पहुंच जाएगा तब ये डेटा Decrypt हो जाएगा, बोले तो पाइप से पानी बाहर. सर्वर संबंधित वेबसाइट से आपके लिए डेटा मांगेगा और फिर उसको पाइप में डालकर मतलब Encrypted करके आप तक पहुंचा देगा. आपने इंटरनेट पर क्या देखा, क्या खोजा. किसी को कुछ नहीं पता चलेगा.

VPN कैसे काम करता है 

VPN प्रोटोकॉल क्या है?

ये एक किस्म का अग्रीमेंट है या नियमों का सेट है VPN क्लाइंट और VPN सर्वर के बीच. आसान भाषा में कहें तो वो तरीके जिनसे डेटा का आदान प्रदान होगा. तकनीक की भाषा में आजकल PPTP, SSTP, IPSec, OpenVPN, SoftEther जैसे प्रोटोकॉल इस्तेमाल में हैं.

VPN कैसे इस्तेमाल करें और कौन करे?

इस्तेमाल तो बहुत आसान है. चाहे तो संबंधित वेबसाइट पर अकाउंट बना सकते हैं या गूगल प्ले या ऐप स्टोर से ऐप डाउनलोड करके अपने मन का प्लान ले सकते हैं. एक बार जो इससे जुड़ गए तो आप इंटरनेट की दुनिया में आजाद पंछी. कोई आपको पहचानने वाला नहीं, ना ही डेटा चोरी की टेंशन. दुनिया की हर वेबसाइट आपकी जद में. उदाहरण के लिए आप TheLallantop.com को दुनिया जहान में कहीं भी बैठकर देख सकते हैं, भले वो सिर्फ इंडिया में ही देखने के लिए बनी हो. वैसे हमारे साथ ऐसा है नहीं. अब रही बात कि कौन इस्तेमाल करे तो होना तो ये चाहिए कि सभी लोग इसका इस्तेमाल करें लेकिन ये संभव नहीं. तो वो संस्थान जो बैंकिंग से जुड़े हैं या कोई सरकारी एजेंसी या फिर डेटा सिक्योरिटी फर्म. इनके लिए तो VPN अनिवार्य है.

क्या फायदे हैं?

अब गिनाने बैठे तो पूरी पोथी लिख जाएगी. शॉर्ट एण्ड स्वीट में जान लीजिए. प्राइवेसी और सिक्योरिटी तो मिलेगी ही सही. इंटरनेट की परफॉर्मेंस भी जबर हो जाएगी. आपका खुद का इंटरनेट है तो Bandwidth throttling या Data Throttling का झंझट ही नहीं. फ़्रीडम ऑफ स्पीच की तरह अगर आप भी फ़्रीडम ऑफ इंटरनेट के पक्षकार हैं तो VPN आपई के लिए बना है.

सरकार ने कहां गरारी फंसा दी?

अब ये तो साफ समझ में आता है कि VPN सिर्फ दो लोगों के बीच का खेल है. खेल खत्म काम खत्म. मशहूर हिन्दी फिल्म के संवाद की तरह जिसमें किरदार कहता है कि तुमने कछु करो नई और हमने कछु देखो नई. लेकिन अब सरकार इसमें बदलाव चाहती है. दरअसल भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने पिछले महीने नए नियम बनाए हैं. इन नियमों के मुताबिक, VPN सेवा देने वाली कंपनियों को यूजर के सभी रिकॉर्ड पांच साल के लिए रखने ही पड़ेंगे. नए नियम 27 जून से प्रभावी होंगे. अगर ऐसा हुआ तो प्राइवेट नेटवर्क का असल उद्देश ही खत्म हो जाएगा. इसी को देखते हुए ExpressVPN जो ब्रिटिश वर्जिन आइलेंड बेस्ड कंपनी है, उसने तो भारत से अपने कारोबार को खत्म करने का फैसला किया है. और भी कई कंपनियां शायद ऐसा कर सकती हैं. हालांकि, कंपनी ने अपने ब्लॉग में बताया कि यूजर कंपनी के दूसरे देश में मौजूद सर्वर से इंटरनेट एक्सेस कर पाएंगे.

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