टेक कंपनियों ने इस साल छोटी गंगा बोलकर नाले में कुदा दिया!
वादे तो बहुत बड़े-बड़े किए, लेकिन मिला बहुत कम!
हर नया साल अपने साथ उम्मीद लेकर आता है. साल 2022 तो इस मामले में और अनूठा था. दुनिया नए साल में कोरोना से बाहर निकलने की उम्मीद के साथ कदम रख रही थी. टेक कंपनियों से भी झोला भरकर उम्मीद थी. नई डिजाइन और नए कलर में कप-प्लेट, मतलब प्रोडक्ट आएंगे. तमाम नई-नई टेक्नोलॉजी से दुनिया जहान रूबरू होगा. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. उलटे पूरा साल ही बुरी खबरें लेकर आया. लाखों लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे. साफ-साफ कहें तो वादे बहुत बड़े-बड़े थे, लेकिन मिला बहुत कम. हमने सोचा कि आपको बताया जाए कि टेक कंपनियों ने 2022 में क्या दिया.
चाही 5G स्पीड मिला पुराना सॉफ्टवेयरदेश 2020 से ही 5G की बाट जोह रहा था. आखिरकार 2022 के अक्टूबर महीने में सर्विस लॉन्च हो ही गई. हमें ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि यहां भारतीय टेलीकॉम कंपनियां स्मार्टफोन मेकर्स से कहीं आगे रहीं. 5G तो लॉन्च हो गया, लेकिन मिला नहीं. कहने का मतलब 'हाथ तो आया लेकिन मुंह नहीं लगा'. सोचा था कि फोन तो हमारा 5G है, तो बस फोन में नेटवर्क बदलेंगे और स्पीड फर्राटा भरेगी. बहुत सिर खपाने के बाद पता चला कि अभी फोन कंपनियों से सॉफ्टवेयर अपडेट आएगा तब बात बनेगी. क्या सैमसंग, क्या ऐप्पल और क्या गूगल, सबने आलस दिखाया. खैर, साल खत्म होते-होते सैमसंग और आईफोन में तो 5G स्टार्ट हो गया है, लेकिन गूगल पिक्सल में अभी शायद कुछ महीने लगेंगे.
ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) हेडसेट की जगह मिले पैरकहां तो सोच के बैठे थे कि 2022 मेटावर्स का साल होगा. फेसबुक की पैरेंट कंपनी ने नाम बदलने से लेकर ब्रांडिंग तक में मोटा पैसा बहाया था. लोगों में इसको लेकर क्रेज भी खूब दिखा. जन्मदिन से लेकर शादियां, तक मेटावर्स में होने लगी. लेकिन जल्द ही सब धड़ाम से गिर गया. ऐप्पल का AR हेडसेट तो UPSC की परीक्षा जैसा हो गया हा. क्लीयर ही नहीं हो रहा. अब सुना है 2023 में आएगा. पता नहीं, आएगा भी या नहीं. मार्क जकरबर्ग ने गाजे-बाजे के साथ Meta Quest Pro (mixed reality VR headset) लॉन्च किया, लेकिन जनता ने उसकी भी खूब खबर ली. खबर इसलिए क्योंकि इसके पहले वाले हेडसेट में कैरेक्टर के पैर ही नहीं थे, नए में लगा दिए. पब्लिक बोली साल भर में बस इतना ही कर पाए.
डिजाइन लैंग्वेज की जगह रंग बदल गएअब तो लगता है कि जैसे उम्मीद करना बेईमानी है. कितने साल हो गए, जब किसी स्मार्टफोन कंपनी ने कुछ शानदार जबरदस्त जिंदाबाद टाइप का डिजाइन बाजार में उतारा हो. यहां तो सारी कंपनियां यूजर्स के साथ खेल रही हैं, ऐसा लगता है. वही पुरानी डिजाइन, जिसमें कैमरे को कभी ऊपर कर दिया तो कभी नीचे. डिजाइन एलीमेंट बदलने की जगह रंग बदलने वाला फोन आ गया. अब आप ही बताओ, धूप में आपके स्मार्टफोन का रंग बदल जाए तो आपकी जिंदगी में क्या बदलेगा? कुछ नहीं. आखिर वो दिन कब आएगा, जब हमें लगे कि हमारा फोन बाकी फोन से बहुत नहीं तो थोड़ा अलग है.
बैटरी वैसी ही, चार्जिंग स्पीड बढ़ गईपांचवीं क्लास का बच्चा भी इस गणित को समझ जाएगा, जिसको टेक कपनियां नहीं समझ पा रही हैं. एक फोन की बैटरी अगर 1000 mAh की है, तो उतना ही चलेगी जितना उसको चलना चाहिए. कहने का मतलब बैटरी की क्षमता बढ़े तो अच्छा रहे. लेकिन हो एकदम उल्टा रहा है. चार्जिंग स्पीड 80 वाट, 100 वाट, 150 वाट से 250 वाट हो रही है. बोले तो बस चार्जर फोन में खोंसो और फुल चार्ज. इससे क्या हो जाएगा? बैटरी में जितना दम है, उतनी ही चलेगी भाई. अच्छा चार्जर है, तो क्या गले में लटका कर घूमें? बैटरी की क्षमता बढ़ाओ, चार्जिंग के लिए कुछ घंटे भी लगेंगे तो क्या प्रॉबलम है! रात में सोने तो सभी जाते हैं, चार्ज कर लेंगे.
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