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Freemium मतलब वो कांटा जिसमें आप कब फंस जाते हैं पता ही नहीं चलता

फ्री-मियम (Freemium) मतलब ऐप्स और सर्विसेस का वो कांटा जिसमें यूजर कब फंस जाता है, उसे पता ही नहीं चलता. तकरीबन बिना जाने वो महीने दर महीने सब्सक्रिप्शन देता रहता है. उसे लगता है कि ये तो फ्री है मगर वो फ्री-मियम है. इसे समझते हैं.

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Freemium: What is this business model and Why Does it Matter
Freemium वाला कांटा
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सूर्यकांत मिश्रा
13 मार्च 2025 (Published: 01:44 PM IST)
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स्मार्टफोन में ज्यादातर सर्विसेस और काम के ऐप्स आमतौर पर मुफ़्त हैं. मतलब Gmail से लेकर YouTube तक और Amazon से लेकर फ्लिपकार्ट तक. ऐप्स की बेसिक सर्विसेस का कोई पइसा नहीं लगता है. Gmail पर 15GB तक स्टोरेज फ्री है तो यूट्यूब कितने भी वीडियो देखने का कोई पैसा नहीं लेता. ई-कॉमर्स भी नॉर्मल सर्विस पर कोई पैसा नहीं लेते. हां आपको बिना विज्ञापन वाला यूट्यूब चाहिए या फास्ट डिलेवरी तो फिर प्रीमियम सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है. मगर उसकी कोई बाध्यता नहीं. मामला फ्री और प्रीमियम वाला है. लेकिन इनके बीच में एक कड़ी और भी है. फ्री-मियम.

फ्री-मियम (Freemium) मतलब ऐप्स और सर्विसेस का वो कांटा जिसमें यूजर कब फंस जाता है, उसे पता ही नहीं चलता. तकरीबन बिना जाने वो महीने दर महीने सब्सक्रिप्शन देता रहता है. उसे लगता है कि ये तो फ्री है मगर वो फ्री-मियम है. इसे समझते हैं.

क्या है फ्री-मियम

Free और Premium के मेलजोल से बना है फ्री-मियम. वैसे हम पहले ही क्लीयर कर देते हैं कि हमें किसी भी ऐप के चार्ज लेने से कोई दिक्कत नहीं है. हम तो बस यूजर को भरमाने वाले इस तरीके के बारे में बताने वाले हैं. यूट्यूब के उदाहरण से समझते हैं. 

आप ऐप पर वीडियो देख रहे हैं. एकदम कुछ इंटेन्स वाला सीन स्क्रीन पर नमूदार है और तभी कोई विज्ञापन आ जाता है. चावल में कंकड़ जैसे महसूस होता है. स्किप करने का भी जुगाड़ नहीं है. पूरी चिड़ के साथ आप विज्ञापन देखते हैं और फिर वीडियो. वीडियो जितना लंबा उतने ज्यादा विज्ञापन. हालांकि आपको पता है कि अगर प्रीमियम ले लिया तो इस झंझट से मुक्ति मिल जाएगी. मगर आप ऐसा नहीं करते. इसे आलस कहें या बजट की दिक्कत. हम फ्री वाली रेवड़ी खाते रहते हैं भले उसमें मिठास कम क्यों ना हो.

Freemium
YouTube 

अचानक से एक दिन उसी स्क्रीन पर एक मैसेज फड़फड़ाता है. जू-ट्यूब (शोएब अख्तर) तीन महीने के लिए मुफ़्त मिल रहा है. इसके बाद आपको एक्स अमाउन्ट हर महीने देना होगा. वाकई में प्रीमियम सब्सक्रिप्शन मुफ़्त मिल रहा होता है. इसमें कोई झोल नहीं है. तुसी झटपट ओके का बटन दबाते हो और बैंक डिटेल्स वगैरा फिल करके खुश हो लेते हो.

मन में लड्डू फूटता है कि चलो तीन महीने तो मौज ही मौज है. ऐप ने बोला भी है कि अगर इसके बाद आपको प्रीमियम सर्विस नहीं चाहिए तो आप कैंसिल कर सकते हैं. कोई चार्जेस भी नहीं हैं. वाकई में ऐसा ही है. मगर जनाब आप ऐसा कर नहीं पाते. तीन महीने में आपको बिना विज्ञापन वाले वीडियो, बैकग्राउन्ड प्ले जैसे फीचर्स की लत लग चुकी होती है.  

तीन महीने बाद ये सब्सक्रिप्शन चलता रहता है. क्योंकि इनकी फीस इतनी ज्यादा भी नहीं है तो भले आपने डेबिट का मैसेज देख भी लिया तो लोड नहीं आता. अगर लोड आता भी है तो फिर अच्छी सर्विस का लालच सामने आ जाता है. सर्विस कैंसिल करने की प्रोसेस भी उबाऊ होता है. मतलब तुसी फ्री-मियम वाले कांटे में अटक जाते हो.

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यूट्यूब सिर्फ एक उदाहरण है

लिस्ट लंबी है मसलन जीमेल का स्टोरेज हो या एप्पल म्यूजिक और टीवी का तीन महीने वाला सब्सक्रिप्शन. अजी इनको छोड़ भी दें तो Jio से बड़ा उदाहरण क्या ही होगा. मुफ़्त वाले मोबाइल नंबर का चस्का सभी ने चखा. जरूरत नहीं भी तो एक नंबर एक्स्ट्रा लिया. मगर अब सिर्फ नंबर जिंदा रखने के लिए महीने के कम से कम 189 रुपये तो लग ही रहे. यूट्यूब पर तीन महीने फ्री की मौज काटने के बाद 40 फीसदी यूजर उधर ही रह जाते हैं. माने कान इधर से नहीं उधर से पकड़कर कंपनियां अपनी पॉकेट भर ही लेती हैं.

अब उनका ये बिजनेस ठहरा बल तो क्यों उनको दोष दें. सोचना आपको है.  

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