लोगों का कहना है कि ये समय कठिन है. वो सभी भोले हैं. ये सबसे आसान समय है. हवा में तमंचा लहरा दिया गया है. एक हवाई फ़ायर कर दिया गया है. सुल्तान के स्कूटर पर बैठ कर आये फजलू ने जब दानिश को गोली मारी थी तो आस-पास जमा भीड़ को हटाने और उनमें खौफ़ पैदा करने के लिए उसने भी यही किया था. कोई सामने नहीं आया. हवा में लहराए तमंचे और हवाई फ़ायर का संदेश हम सब तक पहुंच गया है. चुप रहिये. अगर जीना चाहते हैं तो. अगर खुद को ताबूत में मौजूद नहीं पाना चाहते हैं तो. एक सफ़ेद बाल और काली स्क्रीन वाले न्यूज़ ऐंकर ने बहुत पहले एक गेस्ट को इंट्रोड्यूस करते हुए एक बात कही थी - "जो प्रतिबद्ध है वही लथपथ है."
आज सुबह एक लाश की तस्वीर दिखी. लथपथ. गौरी लंकेश. एक पत्रकार. बड़ी या छोटी पत्रकार, ये मायने नहीं रखता. मायने ये रखता है कि उसे उसके ही घर के बाहर गोली मार दी गई. 3 गोलियां. 4 दीवार में जा धंसी. छेद सिर्फ दीवार में ही नहीं देश के इतिहास में भी हो गया और उस छेद से डेमोक्रेसी रिसने लगी. गौरी का अपराध ये था कि उन्होंने सांस लेते रहने और ज़मीन पर जगह घेरने के अलावा अपने आस-पास के हालातों पर सवाल करना शुरू किया. उन्होंने इंसान होने की कीमत उनके हाथों चुकाई जो खुद भेड़ थे. ये घटना वो तमंचा थी जो हवा में लहराया गया. हवाई फ़ायर जाकर गौरी के गले में जा लगा. चूंकि वो प्रतिबद्ध थीं, मंगलवार की रात लथपथ थीं.
इस घटना को संज्ञान में लेते हुए वरुण ग्रोवर ने कुछ टिप्स दिए. चुप रहने और ज़िन्दा बने रहने के बारे में. वरुण ने सफ़र लखनऊ के गोमतीनगर से शुरू किया और फिर IIT के रास्ते नाप बम्बई पहुंच गए. लिट्रेचर सबसे अच्छा दोस्त होने के कारण लिखने-पढ़ने का शौक रहा जिसका गला इंजीनियरिंग भी नहीं घोंट पाई. इस बात को बार-बार कहे जाने से उन्हें चिढ़ बहुत होती है लेकिन फिर भी बता दिया जाए कि गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में उनके लिखे गीतों ने उन्हें मंच के बीचो-बीच ला खड़ा किया. फ़िल्म मसान इनकी ही लिखी है और बेहतरीन फिल्मों में से एक है. स्टैंड अप करना इनके लिए शौक से ज़्यादा ज़रूरत मालूम देता है और इसे ये अपनी ज़िम्मेदारी मानते हैं. फ़िज़िक्स प्रोफ़ेसर राहुल राम और जाट टेकी संजय राजौरा के साथ वरुण 'ऐसी तैसी डेमोक्रेसी' के एक तिहाई हिस्से हैं. पढ़ते हैं वरुण की कविता.
चुपचुप चुप चुप चुप चुप चुप चुप चुपनस नस में रग रग में चुप चुपआवाज़ों पर विष की वर्षा काल करेगा वरना गुपचुपचुप चुप चुप चुप चुप चुप चुप चुपनख में कख में नाभि में चुप ताले कुंडी चाभी में चुपचुप हुंकार भी चुप मिमियाना चोटें चुप और चुप सहलानाचुप ही सागर चुप ही दलदल चुप बुलडोज़र बस्ती समतलचुप ही आधी रात गली की चुप सुनसान सा कोना चुप ही सहमा बचता मानव चुप चक्कू इक पैनाचुप ही मूक खड़ा वो दर्शक चुप शर्मिंदा आँखें चुप मंज़िल की चुप खिड़की से जो चुपके से झाँकेंचुप ही आतम चुप परमातम चुप ही हंस अकेला चुप के मोहरे दोनों बाज़ू चुप ही हारे खेला