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ग्राउंड रिपोर्ट कुंडा : यहां आतंक के आगे सारे समीकरण खत्म हो जाते हैं

नारा लगता है, जब राजा भैया हारेगा तो 'स्थान विशेष' पर गोली मारेगा.

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19 फ़रवरी 2017 (Updated: 23 फ़रवरी 2017, 13:47 IST)
Updated: 23 फ़रवरी 2017 13:47 IST
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लोग अपने घरों के आस-पास सुख शांति चाहते हैं. सुख का नहीं पता, लेकिन कुंडा में घुसते ही एक 'अतिरिक्त शांति' पसरी हुई दिखती है. सब अपने काम में व्यस्त हैं, फिर भी कहीं शोर नहीं है. सन्नाटे का ये सैचुरेशन डर पैदा करता है. रास्ते भर राजा भैया पर बतकही के बाद हम यहां पहुंचे तो लगभग हर बाइक पर राजा भैया का पोस्टर दिखा. हमारे ड्राइवर ने कहा, 'सर छोड़िए ना ये वाली सीट, सीधे रायबरेली चलते हैं.' रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के बारे में दो बातें काबिल-ए-गौर हैं. वो 1993 से यानी 23 साल से यहां से निर्दलीय विधायक हैं; और वो बीजेपी और सपा दोनों सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. हमारी दिलचस्पी थी कि 'गुंडागर्दी और दबंगई' के भारी आरोपों के बावजूद ये शख्स 88 हजार वोटों के अंतर से चुनाव कैसे जीतता है. रिपोर्ट में किसी का नाम छपने से उन्हें कोई तकलीफ हो, इसलिए कई जगहों पर नाम नहीं छापे हैं. उनके लिए इस रपट में 'भैया', ‘चाचा’ और ‘दादा’ सरीखी रिश्तेदारियां खोज ली गई हैं. आप समझ जावेंगे.
भदरी रियासत के राजा थे बजरंग बहादुर. उन्होंने एक लड़के को गोद लिया और नाम रखा उदयप्रताप सिंह. उदयप्रताप पर भी कई क्रिमिनल केस रहे. वो आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद में भी रहे. रघुराज प्रताप सिंह इन्हीं के बेटे हैं. राजा भैया 1993 में पहली बार विधायकी जीते. विधायक बनने के लिए 25 साल की उम्र चाहिए होती है, लेकिन आरोप लगता है कि तब राजा भैया की उम्र कम थी.
राजा भैया के शुरुआती करियर में कल्याण सिंह उनके खिलाफ प्रचार करने कुंडा आए थे. उन्होंने नारा दिया था, 'गुंडा विहीन कुंडा करौ, ध्वज उठाय दोऊ हाथ.' लेकिन फिर भी राजा भैया चुनाव नहीं हारे. फिर कल्याण सिंह ने भी उनकी ताकत पर 'मुहर' लगा दी. अगले ही साल राजा भैया कल्याण सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. जब कल्याण सिंह सरकार से जब बसपा ने समर्थन वापस ले लिया था तो राजा भैया ने ही उनकी कुर्सी बचाई थी. इसके अलावा वो रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे. लेकिन मायावती सरकार में उन पर उन पर पोटा (प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट) लगाकर जेल भेज दिया गया. फिर 2003 में मुलायम सरकार बनी और 25 घंटे के अंदर राजा भैया से पोटा की धाराएं हटा ली गईं. लेकिन फिर कोर्ट ने सरकार के फैसले पर रोक लगा दी. राजा भैया लकी रहे कि 2004 में पोटा कानून ही वापस ले लिया गया. kunda raja bhaya तब से राजा भैया मुलायम का एहसान मानते हैं. मायावती सरकार में उन पर ‘आतंकी गतिविधियों’ का चार्ज लगा था, वो मुलायम ने धुलवा दिया. प्रतापगढ़ के पत्रकार मानते हैं कि वैसे तो राजा भैया का कुछ भरोसा नहीं है, लेकिन साइकिल से उनकी यारी अब थोड़ी भावनात्मक और कुछ अधिक टिकाऊ हो गई है. राजा भैया को सपा-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन है. इसलिए उनके खिलाफ सिर्फ भाजपा, बसपा और तीन निर्दलीय उम्मीदवार और हैं. पड़ोस की बाबागंज (सुरक्षित) विधानसभा से वो 'अपने आदमी' विनोद सरोज को चुनाव लड़वा रहे हैं. उनका ही प्रभाव है कि यहां भी सपा-कांग्रेस गठबंधन एक निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन दे रहा है. अपनी सीट पर जीत को लेकर वो आश्वस्त हैं, इसलिए बाबागंज में भी प्रचार करने जा रहे हैं. हाल ही में वहां उन्होंने लड़कियों का डांस करवाया. प्रतापगढ़ के एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'राजा भैया हर पार्टी के 20-25 विधायकों को अपनी झोली में रखते हैं. वो निर्दलीय होकर भी अकेले नहीं हैं. कभी कोई टूट-फूट हो तो उत्तर प्रदेश में यही आदमी सरकार की जान बचा सकता है.'
राजा भैया काम क्या करवाते हैं? कुंडा तहसील और गांवों में जिससे भी पूछा उसने दो ही बातें कहीं, 'हर साल गरीब परिवार की 100 से ज्यादा लड़कियों की 'नि:शुल्क' शादी कराते हैं, दहेज समेत. इतना सामान देते हैं कि कोई क्या देगा. दूसरा, वो नेत्र शिविर लगवाते हैं. जहां कोई भी अपनी आंखों की जांच फ्री में करा सकता है.' 'बस इसी आधार पर चुनाव जीत जाते हैं?'
'अरे गरीबों की मदद करते हैं. दरबार लगाते हैं. वो लखनऊ रहते हैं. पर बीच-बीच में यहां बेंती के अपने महल में जनता दरबार लगाते हैं. किसी को कोई समस्या हो, उनके पास जाए. वो अपने किसी वरिष्ठ कार्यकर्ता को ड्यूटी दे देते हैं कि इनका ये मामला सुलझाओ. जाओ देखो न्याय हुआ कि नहीं. पुलिस-कचहरी क्या खाकर करेगी, जैसा न्याय वो करते हैं.'
'इसके अलावा राजा भैया ने क्या किया?''अरे सड़क बनी है. बिजली 14-16 घंटे आ रही है.''इसमें अखिलेश का श्रेय नहीं है?''है. उनका भी. अब तो बात एक्कै है.'
कुंडा से 5 किलोमीटर दूर जमेठी गांव गया, जहां एक महिला से पूछा कि राजा भैया कौन हैं तो बोलीं, 'वो तो राजा हैं.' 50 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ से जब कुंडा के लिए निकल रहा था तो एक पत्रकार ने कहा था, 'आप जा रहे तो देख आओ. पर राजा भैया सिर्फ भय की वजह से ही जीतता है. और कोई फैक्टर नहीं है.' हैरत हुई कि कुंडा में वाकई राजा भैया के खिलाफ कोई नहीं बोलता. एक आदमी भी नहीं. यहां तक कि उनके खिलाफ लड़ रहे बीजेपी कैंडिडेट जानकीशरण पांडे भी नहीं. प्रचार का 'हाई टाइम' है, लेकिन शाम 5 बजे ही वो हमें चुनावी दफ्तर पर मिल गए. पूछा कि यहां कैसे, तो बोले, 'अभी दो दिन पहले हमारी गाड़ियों पर 'अराजक तत्वों' ने तोड़ फोड़ कर दी थी और प्रचार से रोकने की कोशिश की थी. तो हम लोगों ने सोचा कि शाम को ज्यादा देर तक प्रचार करना उचित नहीं है.' bjp kunda यूपी बार काउंसिल के मेम्बर रहे पांडे का घर कौशाम्बी की सिराथू विधानसभा में है. कुंडा कौशाम्बी लोकसभा में लगता है, इस आधार पर वो खुद के 'बाहरी' होने को डिफेंड करते हैं. उनसे कई तरह से राजा भैया के बारे में सवाल पूछा लेकिन उन्होंने एक शब्द भी कैमरे पर उनके खिलाफ नहीं कहा. नाम तक नहीं लिया. बल्कि ये जरूर कहा, 'हमें पार्टी जहां से लड़ने का आदेश देती है, हम उसे मानते हैं.' मैंने कहा कि राजा भैया को हराने की आपकी रणनीति क्या है तो बोले, 'हम यहां किसी को हराने नहीं आए हैं. हम मोदी जी के काम पर वोट मांग रहे हैं.' बताइए साहब! आलोचना के लिए सब्जेक्ट ही नहीं है. ये तक नहीं कहा गया कि राजा भैया के समर्थकों ने गाड़ी फोड़ दी. ‘अराजक तत्व’ कह रहे हैं. एक लोकतांत्रिक स्टेट में ये पर्याप्त डरावनी बात है. मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद को बुहारने वाले अखिलेश को कुंडा घूम आना चाहिए. जब कुछ नहीं बचा तो जानकीशरण ने अखिलेश सरकार के गुंडाराज की थोड़ी आलोचना की और फिर कहा, 'हम किसी के खिलाफ वोट नहीं मांग रहे. अपने मोदी जी के अच्छे काम पर ही वोट मांग रहे हैं. वही हमारे लिए काफी है.'
बीजेपी दफ्तर में मैंने ऑफ कैमरा पूछा कि आप लोग राजा भैया के खिलाफ बिल्कुल नहीं बोलते? तो वहीं बैठे एक कार्यकर्ता ने कहा, 'आप लोग क्या चाहते हैं. एकाध कार्यकर्ता कम हो जाए हमारा?'
जमेठी गांव में ही 65 साल के एक पुराने कांग्रेसी और अब सपाई हो गए 'दादा जी' मिले. उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष तो खूब किया लेकिन सफलता नहीं मिली. इस पूरी विधानसभा में वो इकलौते मिले, जिन्होंने राजा भैया के बारे में कुछ 'मिली जुली' बातें कहीं. आलोचना तो नहीं की, लेकिन ये जरूर कहा कि राजा भैया अगर चुनाव बाद भाजपा के साथ चले गए तो उन्हें सपोर्ट नहीं करूंगा. क्योंकि आरएसएस से मेरा विरोध है. सावरकर जहरीला आदमी था. यहां पर ही किसी ने कहा कि मायावती ने गुंडे मुख्तार अंसारी से हाथ मिला लिया तो राजा भैया से क्यों चिढ़ती है? इस वाक्य को दो-तीन बार पढ़ लीजिए. इसी में बहुत कुछ छिपा है. मैंने पलटकर यही सवाल पूछा तो 'दादाजी' बोले, 'अतिथि गृह कांड (गेस्ट हाउस कांड) में सुनते हैं कि राजा भैया ने मायावती को चप्पल दिखा दी थी. सुनते हैं ऐसा. सच नहीं पता.' यहां पर गांव वालों से पूछा कि राजा भैया को विधायक बने 23 साल हो गए. अब सांसदी का चुनाव क्यों नहीं लड़ते? इस पर 'दादाजी' ने कहा, 'संसदीय क्षेत्र एक बड़ा इलाका होता है. क्या पता वहां उनके जातीय समीकरण फिट न हो रहे हों.' लेकिन तुरंत एक 'काकाजी' ने कहा, 'अगर वो सांसद हो जाएंगे तो दिल्ली जाना पड़ेगा. वो अपने क्षेत्र और अपनी जनता से दूर नहीं जाना चाहते.' kunda raja 'लेकिन वो तो अब भी लखनऊ में ही रहते हैं.' (दूर कुछ ऐसी आवाज सुनाई जैसे कोई इस बातचीत का रस ले रहा हो.) जवाब मिला, 'लखनऊ में रहते हैं पर यहां आते रहते हैं.' इस गांव में सबका कहना था कि राजा भैया के यहां उनकी डायरेक्ट एंट्री है और वो जनता के लिए हमेशा उपलब्ध हैं. लेकिन किसी के पास राजा भैया का फोन नंबर नहीं था. एक के पास था क्योंकि वो राजा भैया का कार्यकर्ता था. एक-दो लोगों ने कहा कि वो उनके लखनऊ वाले आवास पर भी गए हैं. वहां कुंडा वालों के लिए दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं. पहुंचते ही चाय नाश्ता मिलता है. वो यहां के गरीबों का लखनऊ के पीजीआई तक में इलाज करवा देते हैं.
जब हम लोगों से बात कर रहे थे तो एक विकलांग लड़का अपनी व्हीलचेयर पर बैठा सब देख रहा था. उसकी तरफ बढ़े तो वह चक्का चलाकर सरपट भाग गया. बाद में किसी से पूछा कि वो व्हीलचेयर उसे राजा भैया ने दी थी क्या, तो जवाब मिला, 'नहीं. आप यही सवाल पूछते और वो मना नहीं कर पाता, इसलिए भाग गया.' तफरीह तफरीह में तालाब में मगरमच्छ का सवाल पूछा तो लोगों ने कहा कि उसमें सिर्फ मछलियां होती हैं. ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं. जब कैमरा वैमरा समेट लिया और चाय-वाय आ गई तो मिली जुली बातें करने वाले 'दादाजी' से धीमे से पूछा कि सच बताइए, राजा भैया लड़कियों की शादी करा के चुनाव जीतते हैं या डर बनाकर? तो वो मुस्कुराए, बंद टीवी की ओर देखने लगे और फिर हाथ से 'छोड़ो यार' का इशारा करके रह गए.
हमारे ड्राइवर ने बतलाया कि जब कैमरे पर सब लोग राजा भैया के गुण गा रहे थे, तब पीछे से कुछ लड़के मजे ले रहे थे. उनमें से एक ने हमारे ड्राइवर से कहा कि आपका रिपोर्टर जो पूछ रहा है, वो सब सच बात है. मगरमच्छ वाली बात भी सच थी. ड्राइवर बीजेपी दफ्तर का रास्ता पूछने से डर रहा था. लोग जब एक आदमी की जरूरत से ज्यादा तारीफ करने लगें तो यही होता है. एक जगह मैं रास्ता पूछने उतरा तो वहां दो-तीन मुसलमान थे. बिना किसी का नाम लिए उनसे चुनाव का माहौल भी पूछ लिया. एक सांस में जवाब मिला, 'यहां सब शांतिपूर्ण है. किसी को कोई डर नहीं है. कोई दिक्कत नहीं है. राजा भैया बड़े अंतर से चुनाव जीत रहे हैं. मैंने पूछा कि काम कैसा कराया है. सबने कहा कि बहुत अच्छा. तरह-तरह से कुरेदा तो इस भाषा में जवाब मिला, 'कतौं सड़क मां कोर-कसर बाकी होए तो अबकी उहौ होई जाई.' एक स्कूल के सामने एक मास्टर साहब से यहां का जातीय समीकरण तो वो बोले, 'राजा भैया सब समीकरण डांक गए हैं.'
बीजेपी दफ्तर से निकला तो वहां 'राजा भैया' का बिल्ला लगाए एक नौजवान पूर्व प्रधान मिला. उसने कहा, 'बहुत देर से आपका इंतजार कर रहा हूं. मेरी बात रिकॉर्ड कीजिए.' मैंने कहा बता दीजिए मैं डायरी में लिख लेता हूं. फिर उसने बात शुरू की, 'मेरा नाम आदित्य कुमार मिश्र है. परम आदरणीय, शान-ए-अवध, गरीबों के मसीहा रघुराज प्रताप सिंह विकास पुरुष हैं...आदि आदि.' एक-एक विशेषण उसने जबरदस्ती डायरी में लिखवाया. रिपोर्टर को गुस्सा नहीं करना होता! और वहां क्या खाकर गुस्सा करते!

बड़ी मुश्किल से पीछा छूटा!

अगर आप चुनाव कवर करने जाएं तो लगता ही नहीं कि यहां लोग राजा भैया के सिवा किसी पर बात करना चाहते हैं. ऐसा लगता है कि सब पर उनकी नजरों में चढ़ने का, नंबर बनाने का भूत सवार है. एक धूल भरा मैदान है जिसमें सब लोटे जा रहे हैं. जबकि असल बात ये है कि कुंडा में पिछले कार्यकालों में ज्यादा विकास कार्य नहीं हुए. यहां खेती-किसानी अच्छी है. आंवला का बढ़िया कारोबार है. आम के बाग हैं. लेकिन एग्रीकल्चर बेस्ड इंडस्ट्री की सख्त जरूरत है. जो पिछले 23 साल में राजा भैया नहीं लगवा पाए. यहां बेरोजगारी भी बहुत है. बीजेपी ऑफिस में ही 'ऑफ द रिकॉर्ड' किसी ने दावा किया कि एक कोल्ड स्टोरेज शुरू हुआ था वो भी उनके लोगों ने बंद करवा दिया. राजा भैया की कार्यशैली विधायक की कम और राजा की ज्यादा है. लेकिन पिछले पांच सालों में बिजली और सड़क दोनों स्तरों पर सुधार हुआ है. पहले 8 घंटे बिजली आती थी, पर 16-18 घंटे आ रही है. शहर की सड़कें भी काफी सुधर गई हैं. उसका श्रेय अखिलेश को भी देने में लोग हिचकते नहीं. बसपा कैंडिडेट की बात रह गई. कुंडा में वो 'कम समझदार' कहलाएंगे जिन्होंने आसानी से बता दिया कि इस बार राजा भैया की जीत का अंतर कम हो सकता है. वजह, बसपा कैंडिडेट परवेज अख्तर अंसारी. कुंडा में मुस्लिम और दलित आबादी 30 फीसदी है. कैमरे पर कोई कुछ भी कहे, बहुत सारे लोग राजा भैया को वोट नहीं देते हैं. जमेठी गांव में ही किसी ने बड़े 'प्रभावित' हाव-भाव के साथ किसी पुराने कैंडिडेट के बारे में बताया, ‘अरे वो कैंडिडेट राजा भैया के खिलाफ 18 हजार वोट पाया था. बड़ी बात है.’ इस बार मुस्लिम-दलित परवेज के साथ जा सकते हैं. लेकिन परवेज की दिक्कत ये है कि वो भी कुंडा के रहने वाले नहीं हैं. वो कौशाम्बी के करारी के रहने वाले हैं. थोड़ी सी दोस्ताना बातचीत में कुछ नौजवानों ने मान लिया कि राजा भैया के खिलाफ यहां किसमें हिम्मत है जो लड़े. इसलिए बाहर से कैंडिडेट लाने पड़ते हैं. वो भी ज्यादा आंचा-पांचा नहीं करते. चुपचाप चुनाव लड़कर लौट जाते हैं. राजा भैया का चुनाव चिह्न 'आरी' है. वही आरी जिससे लकड़ी काटी जाती है. शहर में घुसते ही बाइक पर उनका स्टिकर लगाए एक लड़का मिला था. अमित सिंह. उससे इस बार का नारा पूछा तो उसने दो नारे बताए,
'अबकी बार डेढ़ लाख पार'और'वोट नहीं रसगुल्ला है, आरी खुल्लमखुल्ला है.'
कुंडा की सीमा से निकलकर रायबरेली के ऊंचाहार आए तो लोगों ने बताया कि असली नारा लोगों ने आपको बताया नहीं. ये इस चुनाव का नारा नहीं है, पुराना है. लेकिन लड़के हंसी-मजाक में दबी जुबान से आज भी लगाते हैं:
'राजा भैया हारेगातो स्थान विशेष पर गोली मारेगा'

https://www.youtube.com/watch?v=E7Lug3YKD7o
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