जब नंबर 10 और 11 के बल्लेबाजों ने सेंचुरी ठोकी और पूरी टीम से ज़्यादा रन बना डाले
भारतीय थे. न उनसे पहले, न उनके बाद ये कारनामा कोई और कर पाया है.
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First Class Cricket में मज़ेदार रिकॉर्ड बनाने वाले Shute Banerjee And Chandu Sarwate (ट्विटर)
# जीत की तलाश
साल 1946. दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो चुका था. भारत पर अब इंग्लैंड की पकड़ कमजोर पड़ रही थी. आज़ादी करीब थी. आज़ादी से पहले के अपने आखिरी टूर में इंडियन क्रिकेट टीम इंग्लैंड पहुंची. इफ्तिखार अली खान पटौदी टीम के कप्तान थे. टीम पांच ऑल राउंडर्स और चार बोलर्स के साथ इंग्लैंड गई थी. इस टूर पर टीम को कुल 33 मैच खेलने थे. इसमें तीन टेस्ट और 29 फर्स्ट क्लास गेम शामिल थे. टूर की शुरुआत फर्स्ट क्लास मैच से हुई. टीम इंडिया पहला मैच करीबी अंतर से हार गई. दूसरा ड्रॉ रहा. अब तीसरा मैच लंदन के द ओवल मैदान में होना था. सामने की टीम थी सरे. जिसमें लॉरेंस फिशलॉक, अल्फ्रेड गोवर और एलेक बेडसर जैसे प्लेयर्स थे. ये सारे इंग्लैंड टीम के सदस्य थे. पटौदी के बिना उतरी टीम इंडिया ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग का फैसला किया. विजय मर्चेंट टीम के कप्तान थे. विजय हज़ारे और रूसी मोदी बिना खाता खोले वापस हो लिए. गुल मोहम्मद ने मर्चेंट के साथ 111 रन की पार्टनरशिप की. लेकिन उनके 89 और मर्चेंट के 53 रन के अलावा बाकी पूरी टीम सस्ते में निपट गई.इंडिया ने 205 के टोटल पर नौ विकेट खो दिए. इन नौ में से पांच विकेट तो बेडसर ने लिए. भारत की आखिरी जोड़ी के रूप में चंदू सरवटे, जिन्हें ऑलराउंडर की हैसियत से टीम में रखा गया था, के साथ शुट बनर्जी क्रीज पर थे. बनर्जी एक मीडियम पेसर थे, जो बिहार की ओर से खेलते थे. मैच का पहला दिन था. शाम के चार बजकर तीन मिनट हुए थे. क्रीज़ पर थी भारत की आखिरी जोड़ी. सरे के लिए इससे बेहतर क्या ही हो सकता था. उन्होंने तो बैटिंग की तैयारी शुरू कर दी. क्रिकेट मंथली के मुताबिक सरवटे ने बाद में कहा था,Only instance of No.10 & No.11 scoring a Hundred#OnThisDay in 1946, Chandu Sarwate (124*) & Shute Banerjee (121) became the only no.10 & 11 to score a FC hundred in same innings - v Surrey at Oval.
Both added 249 for last wicket - 2nd highest partnership for 10th wicket in FC. pic.twitter.com/fboseuP5z0 — Cricketopia (@CricketopiaCom) May 13, 2018
'बनर्जी मुझे जॉइन करने आया. सरे के कैप्टन को लगा कि हम मुश्किल से कुछ मिनट खेलेंगे. उन्होंने ग्राउंड्समैन को बुलाया और उसे बताने लगे कि उन्हें कौन से रोलर की जरूरत होगी. लेकिन उस शाम हम कुछ भी ग़लत नहीं कर सकते थे.'
# बदल गए जज़्बात
बैटिंग की तैयारी कर रहे सरे के कप्तान को अंदाजा नहीं था कि भारतीय टीम का सबसे तेज पेसर आज बल्ले से बवाल करने आ रहा है. दिन का खेल खत्म होने पर सरवटे 102 और बनर्जी 87 रन पर खेल रहे थे. सिर्फ दो घंटे में बने 193 रनों को देख सरे के तोते उड़ चुके थे लेकिन भारतीय खेमे में इतना आश्चर्य नहीं था. क्योंकि इस मैच से पहले दोनों ही प्लेयर्स के नाम दो-दो फर्स्ट क्लास सेंचुरी थी. रणजी के पिछले ही सीजन में बनर्जी ने बिहार के लिए ओपनिंग करते हुए फिफ्टी मारी थी. सरवटे भी होल्कर (अब का मध्य प्रदेश) के लिए ओपनिंग कर चुके थे. उन्होंने रणजी सेमीफाइनल में सेंचुरी भी मारी थी. यहां तक कि 1945-46 में यह दोनों एकसाथ ईस्ट ज़ोन के लिए ओपनिंग भी कर चुके थे. चार दिन के मैच का दूसरा दिन रेस्ट डे था. अगले दिन, 13 मई 1946 की सुबह साढ़े 11 बजे मैच फिर से शुरू हुआ. माहौल बन चुका था. इंग्लिश मीडिया ने कयास लगाने शुरू कर दिए थे. क्या ये जोड़ी लास्ट विकेट के लिए 307 रन का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ पाएगी? मैदान में भीड़ बढ़ रही थी. वर्ल्ड वॉर के दौरान गिरे बमन से टूटे ओवल के स्टैंड्स भरते जा रहे थे. गेम शुरू होने के थोड़ी देर बाद बनर्जी ने अपनी सेंचुरी पूरी की. और चंद मिनटों बाद एक बॉल को लेग साइड की ओर धकेल इंग्लैंड में दसवें विकेट के लिए सबसे बड़ी पार्टनरशिप का रिकॉर्ड तोड़ दिया. अब यह दोनों दसवें विकेट के लिए 236 रन जोड़ चुके थे. पिछला रिकॉर्ड 1909 में बना था. तब इंग्लिश काउंटी टीम केंट के फ्रैंक वूली और अल्बर्ट फील्डर ने 235 रन जोड़े थे.अंत में 12 बजकर 27 मिनट पर बनर्जी आउट हुए. तब तक वह सरवटे के साथ तीन घंटे और 10 मिनट में 249 रन जोड़ चुके थे. फर्स्ट क्लास क्रिकेट के इतिहास में पहली बार नंबर 10 और नंबर 11 के बल्लेबाजों ने सेंचुरी स्कोर की. ना तो बनर्जी-सरवटे से पहले और ना ही बाद में कोई यह कारनामा कर पाया. बाद में सरे ने बैटिंग की और 135 पर सिमट गई. फॉलोऑन खेलने उतरे अंग्रेज 338 पर आउट हुए. इसमें सरवटे के पांच विकेट शामिल थे. बाद में भारत ने सिर्फ एक विकेट खोकर जीत के लिए जरूरी 20 रन बना लिए. हालांकि इस गज़ब के प्रदर्शन के बाद भी बनर्जी और सरवटे के लिए यह टूर भूलने लायक रहा. बनर्जी को जहां एक भी टेस्ट में मौका नहीं मिला वहीं सरवटे ने टूर पर सिर्फ एक टेस्ट खेला. इस मैच में उन्होंने ज़ीरो और दो रन बनाए. बोलिंग में सात ओवर फेंकने वाले सरवटे को एक भी विकेट नहीं मिला.On this day Ranji Trophy 1948-49: Bihar defend record lowest 78 against Delhi
Bihar 153 and 136 Delhi 212 and 48 Bihar won by 29 runs.#ShuteBanerjee 6/22@BCCI @BCCIdomestic pic.twitter.com/x5dTCwnnpB — Hareram Tiwari (@Hareram29534083) January 23, 2020
बनर्जी ने इस मैच के लगभग तीन साल बाद, 1949 में अपना पहला और इकलौता टेस्ट खेला. जबकि सरवटे का करियर कुल नौ टेस्ट मैचों का रहा. इधर, बेडसर के लिए यह मैच एक बुरी याद बनकर रह गया. अपने करियर में दिग्गजों को आउट करने के लिए मशहूर रहे बेडसर दो भारतीय टेलेंडर्स को नहीं आउट कर पाए, यह कहानी आज भी चटकारे लेकर सुनी जाती है. सरवटे 22 जून 1920 को पैदा हुए थे. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनके नाम 32.73 की ऐवरेज से 7430 रन दर्ज हैं. इतना ही नहीं उन्होंने फर्स्ट क्लास मैचों में 494 विकेट भी लिए थे.#11June_1946 Chandu Sarwate dismisses Peter Judge twice in two minutes fastest pair ever. Clay & Judge opened in first inns P Judge was bowled by Sarwate first ball Vijay Merchant enforced the follow-on Clay & Judge opened in second inns P Judge was bowled by Sarwate first ball. pic.twitter.com/qMlXPo8Ytq
— ONE FOR ALL (@mohsinstats) June 11, 2020
माइकल ज्वुइल बेवन, जिसने क्रिकेट की डिक्शनरी में ‘फिनिशर’ शब्द को जगह दिलवाई