Happy Birthday Master Blaster: आसान नहीं है क्रिकेट का भगवान होकर भी इंसान बने रहना
Sachin Tendulkar 24 अप्रैल यानी आज अपना 51वां बर्थडे (Sachin Tendulkar 51st Birthday) मना रहे हैं. आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ अहम किस्से.
"मुझे स्कोरबोर्ड देखना पड़ता है कि मैं अभी आया हूं या मैंने सेंचुरी मार दी है."
सचिन तेंडुलकर (Sachin Tendulkar) ने ये बात साल 2008 में कही थी. टीम इंडिया का पहला विकेट गिरते ही इंडियन क्राउड पागल हो उठती थी. गम में नहीं. खुशी में. भारत शायद एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी जनता उसकी ही टीम का पहला विकेट गिर जाने को प्रार्थना कर रही होती थी. क्यूंकि उन्हें भगवान के दर्शन करने होते थे. भगवान जो उस खुरदुरी मिट्टी की एक स्ट्रिप पर विकेट गिरने के डेढ़ मिनट के अंदर आ पहुंचते थे. "First wicket down, in comes Sachin Tendulkar." टोनी ग्रेग (Tony Greig) कमेंट्री में ये बोलते थे. सचिन को वो सेचिन कहते थे. उसमें अपार स्नेह और इज्ज़त जुड़ी हुई थी. उन्हें चिल्लाना पड़ता था. मजबूरी थी. क्यूंकि स्टेडियम में मौजूद जनता शोर मचा रही होती थी. क्यूंकि पूरा देश चिल्ला रहा होता था. क्यूंकि सचिन रमेश तेंडुलकर मैदान में आ रहे होते थे. वही सचिन जो आज अपना 51वां बर्थडे (Sachin Tendulkar 51st Birthday) मना रहे हैं.
सचिन तेंडुलकर. मुंबई इंडियन्स बनाम कोलकाता नाईट राइडर्स. 2010. इशांत शर्मा की दूसरी गेंद. सचिन ने बल्ले का चेहरा दिखाया. हर्षा भोगले एक सेकेंड रुकते हुए कहते हैं, "Welcome to text book. Turn to page 32." उनके हाथ में वही बल्ला है जिससे ग्वालियर में 200 रन मारे थे. उसी ओवर की आखिरी गेंद पर एक कवर ड्राइव मारी. सीधे किताब से निकली हुई. वो किताब जो सचिन ने खुद लिखी. 24 साल तक. आने वाली खेपों के लिए. जो उन्हें टीवी में देख क्रिकेट खेलने का सपना देखते थे. सचिन अपने बेसिक्स दुरुस्त रखने की बात कहते थे. उनके तो थे ही. रमाकांत आचरेकर की कोचिंग में विकेट पर एक रुपये का सिक्का रखके बैटिंग करने की आदत ने सचिन को वो बनाया, जो दुनिया बननी चाहती है. बन पाएगी? मुश्किल है. बचपन में सुना था कि विजेता कभी अलग चीज़ें नहीं करता. वो हमेशा चीज़ों को अलग तरीके से करता है. सचिन ने किया. मेरे हिसाब से आज सचिन उन्हीं विकेटों पर रक्खे एक रूपये के सिक्के की कमाई खा रहे हैं.
खाने से था भयंकर प्रेमसचिन को खाने से प्रेम था. था क्या, है. बहुत खाते थे. वाजिब भी है. खेलते भी बहुत थे. किसी टूर पर कहीं गए थे. इंग्लैंड शायद. क्रिकेट करियर के बिलकुल ही शुरूआती दिनों की बात है. वहां सलाद वगैरह खाने को मिलता था. शर्त ये होती थी कि एक बार जितना ले लिया, ले लिया. दोबारा नहीं मिलेगा. सचिन का न मन भरता था न प्लेट. एक ट्रिक अपनाई. मिलने वाले छोटे से बाउल में पहले सलाद वाली पत्तियां रखते थे. ऐसे रखते थे जिससे की उन पत्तियों की एक बाउंड्री बन जाये. कटोरे से कुछ इंच ऊपर तक. कटोरे में जगह बढ़ जाती थी. अब इसमें सलाद भर लेते थे. ये थी स्ट्रेटेजी बनाने की ताकत. खाने से लेकर खेलने तक.
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नहीं मारा था कवर ड्राइवऐसी ही एक स्ट्रेटेजी बनाई थी ऑस्ट्रेलिया में.साल 2004 में. बार-बार कवर ड्राइव मार के आउट हो रहे थे. सीरीज़ का चौथा टेस्ट सिडनी में था. तय कर लिया कि कवर ड्राइव ही नहीं मारेंगे. दो दिन बैटिंग की. 436 गेंदें खेलीं. 241 रन बनाये. लेकिन कवर ड्राइव एक भी नहीं मारीं. कवर खुला छोड़ दिया गया. इन्वाईट किया जा रहा था कि हुज़ूर कवर्स में मारिये. नहीं मारा. ऊपर फेंकी हुई गेंदें जो मिडल और ऑफ की लाइन में थीं, डिफेंड कर दी गयीं. कभी जिनपर ऑरगाज़्म की हद तक छोड़ आने वाली कवर ड्राइव्स लगा करतीं थीं, उस दिन वही गेंदें रोकी जा रही थीं. अनुशासन. मोहब्बतें का अमिताभ बच्चन इस अनुशासन को देख बल्लियों कूद रहा होगा. मैच खत्म होने के बाद ऑस्ट्रेलिया का लेजेंड विकेट कीपर एडम गिलक्रिस्ट कहता है कि ये उनके लिए ऑस्ट्रेलिया में खेली गयी सबसे मुश्किल सीरीज़ थी.
पाकिस्तान के खिलाफ कमाल के शॉट्सवो लड़का जो नींद में चलता था, सेंचुरियन में 1 मार्च 2003 के मैच के 12 दिन पहले से सोना भूल जाता है. उसे नींद नहीं आती है. पाकिस्तान से मैच होना है. वर्ल्ड कप 2003. सुपर सिक्स. मैच में 98 रन बनाता है 75 गेंद पर. सचिन बताते हैं कि वो अपने मन में उस मैच को एक साल पहले ही खेल चुके थे. वर्ल्ड कप का शेड्यूल पहले ही आ चुका था और 1 मार्च को पाकिस्तान से मैच होना तय हुआ था. सचिन जहां भी जाते, उन्हें उस मैच के बारे में कहा जाता. दुनिया को सब कुछ मंज़ूर था लेकिन उस मैच में उन्नीस-बीस नहीं. सचिन को बीस होना ही था. इंडिया को बीस होना ही था. हुए भी. उस मैच में सचिन ने महज़ तीन शॉट्स से मैच जीता था. सिर्फ तीन शॉट्स और नॉक-आउट.
पहला वो शॉट जो आंखों के सामने तैरता ही रहता है. शॉर्ट और वाइड, ऑफ स्टम्प के बाहर. छः रन.
दूसरा - कलाई से खेली फ्लिक. मिडल और ऑफ स्टम्प की लाइन में अच्छी बॉल. कोई और होता तो शायद रोक देता या बल्ला छुआ के सिंगल ले लेता. लेकिन सचिन क्रीज़ में अन्दर घुसते हैं, शरीर को थोड़ा सा आगे की और झुकाते हैं, बॉल पर नज़र रखते हुए बैट का फ़ेस ले जाते हैं और कलाईयां घुमा देते हैं. चार रन.
तीसरा शॉट सबसे कमाल. सचिन तेज़ आती हुई गेंद पर ऑफ स्टम्प की और हल्का सा घुसे, और बॉल के रस्ते में अपना बल्ला अड़ा दिया. बस, इतना ही. बल्ला चलाया नहीं बल्कि अड़ाया. सचमुच. न कोई बैकलिफ्ट, न ही कोई फॉलोथ्रू. ऐसा लगा मानो सब कुछ रुक गया हो. सिर्फ बैट आकर बॉल के सामने खड़ा हो गया.
आकाश चोपड़ा से मांगी डिटेल्सतीनों शॉट्स शोएब अख्तर को. उस वक़्त दुनिया का सबसे तेज़ गेंद फेंकने वाला इंसान. आकाश चोपड़ा. टीम में बस अभी अभी आये थे. पहली बार. अक्टूबर 2003. अहमदाबाद के होटल में टीम मीटिंग का माहौल बन रहा था. आकाश कांप रहे थे. टीम मीटिंग तो भतेरी अटेंड की हुई थी उसने. लेकिन किसी भी टीम मीटिंग में सचिन तेंडुलकर नहीं हुआ करते थे. जॉन राइट तब इंडिया के कोच थे. टीम दो हिस्सों में बंटी. बैट्समेन और बॉलर्स. आकाश पर जॉन राइट का फोकस था. क्यूंकि उसने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ प्रैक्टिस मैच खेले थे. आकाश से पूछा गया कि सामने वाले खेमे की तबीयत है कैसी. हाल-चाल लेने वालों में सबसे आगे सचिन थे.
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डारेल टफी कैसी गेंद फेंक रहा है? विटोरी ने अपनी आर्म-बॉल फेंकी या नहीं. रफ़ स्पॉट का कितना फ़ायदा उठाया जा रहा है और न जाने क्या क्या. सचिन तैयार होना चाहते थे. न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़. एक एक डीटेल जानना था. सब कुछ. लेकिन मज़े की बात ये थी कि वो ये सब कुछ एक बेहद नए लड़के से जानना चाह रहे थे. इंडिया ने पहले बैटिंग की. आकाश चोपड़ा 42 रन बनाकर आउट हो गए. उनके पवेलियन जाते वक़्त अहमदाबाद के लोग तालियां पीट रहे थे. शोर बढ़ता ही जा रहा था. आकाश चोपड़ा ड्रेसिंग रूम में पहुंच कर बैठ गए. लेकिन तालियां नहीं रुक रही थीं. क्यूंकि सचिन तेंडुलकर धीमे-धीमे मैदान पर चलते हुए क्रीज़ पर पहुंचने वाला था. 2000-2001 की फ़ेमस इंडिया ऑस्ट्रेलिया की सीरीज़. राहुल द्रविड़ और नयन मोंगिया बात कर रहे थे. राहुल द्रविड़ ने नयन से कहा
"मैं सचिन को बचा के रखना चाहता हूं. तेंडुलकर को किसी भी हालत में दिन के आखिरी हिस्से में जब लाइट जा रही होगी, बैटिंग करने आने नहीं दूंगा. उस वक़्त ऑस्ट्रेलिया के बॉलर्स खूंखार हो जाते हैं. उनके खिलाफ़ तेंडुलकर हमारी बेस्ट होप है."
यहां से तेंडुलकर की मौजूदगी और टीम में उनकी अहमियत का हिसाब लगाया जा सकता है. सबसे अहम बात थी प्लेयर्स और सचिन के बीच म्यूचुअल रेस्परक्ट.
90 का दशक ख़त्म होते होते सचिन क्रिकेट से ऊपर उठ चुके थे. अब सचिन श्रेष्ठता का पर्याय बनने लगे थे. एक-एक रन एक नया रिकॉर्ड होने लगा था. सचिन का विकेट बॉलर्स के लिए जश्न से सपना बनने लगा था. पीटर सिडल का पहला टेस्ट विकेट, सचिन तेंडुलकर. वो कहते हैं कि जीवन भर इस बात को नहीं भूलेंगे. ऐसा बहुत कुछ है जो मैं कभी नहीं भूलूंगा. मैदान में उठने वाला सचिन...! सचिन!!! का शोर. अख्तर पर छक्का. कैडिक को डरबन के बाहर मारा छक्का. कैस्प्रोविच के सर के ऊपर से मारा छक्का. वार्न, स्टुअर्ट मैकगिल को आगे निकलकर लॉन्ग-ऑन के ऊपर से मारे छक्के. ग्वालियर की 200 रन की इनिंग्स. ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 175. ओलंगा का बनाया भूत. रावलपिंडी में बनाये 141. वर्ल्ड कप जीत के बाद धोनी की ओर दौड़ते हुए सचिन. और इंडिया का विकेट गिरने पर मचने वाला शोर. क्यूंकि सचिन तेंडुलकर बैटिंग पर आने वाले होते थे.
सचिन तेंडुलकर होना आसान नहीं है. न ही आसान है भगवान होते हुए भी इंसान बने रहना. शुक्रिया, सचिन. जन्मदिन मुबारक.
ये खबर हमारे साथी केतन ने लिखी थी.
वीडियो: रणजी फ़ाइनल में मुंबई टीम की हालत देख सचिन तेंडुलकर ने किसे सुना दिया?