The Lallantop
Advertisement

अति सूधो सनेह को मारग है, जहां नेकु सयानप बांक नहीं

वैलेंटाइन्स डे पर आज एक कविता रोज़ में पढ़िए प्रेम के अनूठे कवि घनानंद को.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
लल्लनटॉप
14 फ़रवरी 2018 (Updated: 14 फ़रवरी 2018, 10:09 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
अविनाश मिश्रा
अविनाश मिश्रा

अविनाश मिश्र मेरे कुछ ही गिने चुने साहित्यिक मित्रों में से एक हैं, या केवल एकमात्र हैं. बाकी मित्र या तो साहित्य वाले नहीं हैं या बाकि साहित्य वाले, मित्र नहीं हैं. होने को ‘साहित्य वाला’ कहने से अविनाश को आपत्ति हो सकती है, लेकिन मैंने उनसे कुछ भी लिखने की ‘आज़ादी’ की ‘आज्ञा’ ले रक्खी है. अस्तु…
05 जनवरी, 1986 को जन्मे अविनाश की ‘अज्ञातवास की कविताएं’ शीर्षक से कविताओं की पहली किताब साहित्य अकादेमी से गए बरस छपकर आई है. ‘नए शेखर की जीवनी’ प्रकाशनाधीन है. आज उनके माध्यम से कबीर को पढ़िए एक कविता रोज़ में. ओवर टू अविनाश:


प्रिय पाठको,
एक कविता रोज़ में आज बातें घनानंद की.
घनानंद हिंदी साहित्य के रीतिकाल की आजाद धारा के कवि हैं. श्रृंगार रस को प्रमुखता से अपनी कविता में बरतने वाले घनानंद कृष्ण की भक्ति उनकी सखी-सहेली होने के भाव से करते हैं.  घनानंद की आसक्ति और विरक्ति दोनों ही उल्लेखनीय हैं. कहते हैं कि वह बहादुरशाह के मीर मुंशी थे और वहीं पर सुजान नाम की एक डांसर से उन्हें प्यार हो गया. जिंदगी से जुड़े धुंधले तथ्यों के साथ साहित्य में मौजूद घनानंद की कविताओं का एक बड़ा हिस्सा सुजान को ही संबोधित है. सुजान के बारे में भी ज्यादा जानकारियां नहीं मिलती हैं. हालांकि कुछ सूचनाएं यों बताती हैं कि सुजान के प्यार में चोट खाकर ही घनानंद वैरागी हुए. आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने 'घनानंद ग्रंथावली' संपादित की है, जिसमें घनानंद का वह काव्य-संसार मौजूद है जो किसी भी कवि को युगों तक यादगार बनाए रखने के लिए पर्याप्त है.

अब पढ़िए घनानंद की एक बहुत कोटेबल रचना :


अति सूधो सनेह को मारग है, जहां नेकु सयानप बांक नहीं।
तहां सांचे चलैं तजि आपुनपौ, झिझकैं कपटी जे निसांक नहीं॥

घन आनंद प्यारे सुजान सुनौ, यहां एक ते दूसरो आंक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटांक नहीं॥
अर्थात्: घनानंद यहां 'ये रास्ते हैं प्यार के’ वाले मूड में हैं और कह रहे हैं कि प्यार के रास्ते पर जरा भी सयानापन और चालाकी नहीं चलती है, क्योंकि यहां तो सच्चाई के साथ ही आगे बढ़ा जा सकता है. ईगो को यहां छोड़ना पड़ता है. छल-कपट रखने वालों को इस रास्ते पर चलने में झिझक होती है.
यहां घनानंद विरक्त होकर भी सुजान को भूल नहीं पाते और उसका नाम लेकर कृष्ण को संबोधित करते हैं कि एक के सिवा प्यार में कोई दूसरा नहीं होता.
लेकिन हे कृष्ण! तुम कौन से स्कूल से पढ़ कर आए हो कि मन (दिल) भर लेते हो और देते छटांक भर (थोड़ा-सा प्यार) भी नहीं हो.

अब घनानंद की एक और रचना : 


घनानंद के प्यारे सुजान सुनौ, जेहिं भांतिन हौं दुख-शूल सहौं।
नहिं आवन औधि, न रावरि आस, इते पर एक सा बात चहौं॥

यह देखि अकारन मेरि दसा, कोइ बूझइ ऊतर कौन कहौं।
जिय नेकु बिचारि कै देहु बताय, हहा प्रिय दूरि ते पांय गहौं॥
अर्थात् : यहां भी घनानंद सुजान का नाम लेकर कृष्ण से कह रहे हैं कि सुनो मैं गम उठाने के लिए जिए चले जा रहा हूं, लेकिन तुम्हारे इंतजार की न तो कोई मियाद है और न ही इसके खत्म होने की कोई उम्मीद.
मेरी इस हालत के लिए मैं खुद को क्या जवाब दूं, यह तुम बता दो. मैं तुम्हारे पैर छू कर प्रार्थना करता हूं.


इनके बारे में भी पढ़ें :
कालिदास
राजशेखर
भर्तृहरि
सरहपा
अब्दुल रहमान
विद्यापति
अमीर खुसरो

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement