मैग कार्लसन ने Chess World Cup जीता, फिर खड़े होकर प्रज्ञानंद से क्या कहा?
पहला मैच नॉर्वे के प्लेयर ने जीत लिया था. आखिरी टाईब्रेकर ड्रॉ हुआ. इस तरह मैग्नस विश्व विजेता बने.
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Chess World Cup के फाइनल में R Praggnanandhaa का Magnus Carlsen से दूसरा टाईब्रेकर ड्रॉ रहा. पहला टाईब्रेकर कार्लसन ने जीता था. नॉर्वे के कार्लसन ने इस ड्रॉ के साथ ही वर्ल्ड कप का ख़िताब अपने नाम कर लिया है. ये मैग्नस का पहला वर्ल्ड कप ख़िताब है. प्रज्ञानंद की बात करें तो 18 साल के इस लड़के ने शानदार प्रदर्शन किया. उन्होंने वर्ल्ड कप के दौरान दुनिया के कई नामी-गिरामी प्लेयर्स को हराया.
फाइनल में पहुंचने से पहले प्रज्ञानंद ने इस टूर्नामेंट के दौरान अपने अच्छे दोस्त अर्जुन एरिगैसी, वर्ल्ड नंबर 2 हिकारु नाकामुरा और वर्ल्ड नंबर 3 फैबियानो कारूआना को हराया था.
फाइनल में क्या हुआ?फाइनल मुकाबले को बहुत बेसिक से समझिए. पहले दो मैच ड्रॉ हुए. यानी वहां से कोई रिज़ल्ट नहीं मिला. फिर टाईब्रेकर हुआ. पहला टाईब्रेकर, नियमानुसार 25 मिनट का होता है (दोनों प्लेयर्स को हर चाल के बाद 10 सेंकड का टाइम दिया जाता है). इसमें प्रज्ञानंद को हार का सामना करना पड़ा. इस गेम में मैग्नस कार्लसन ने 47 चाल चलीं और अटैकिंग गेम खेला. वहीं, प्रज्ञानंद का डिंफेस मजबूत रहा, पर 37वें चाल के बाद से ही कार्लसन ने मैच पर मजबूती बना ली थी.
दूसरे टाईब्रेकर में कार्लसन सफेद, और प्रज्ञानंद ब्लैक साइड से खेल रहे थे. ब्लैक के लिए आमतौर पर जीतना थोड़ा ज्यादा मुश्किल होता है. इस मैच में 10वीं चाल के बाद से ही कार्लसन मजबूत स्थिति में पहुंच गए थे. प्रज्ञानंद हरेक चाल सोच समझकर चल रहे थे. हालांकि, कार्लसन ने एक शानदार डिफेंसिव दाव खेल दिया. जिसके बाद ब्लैक साइड से खेल रहे प्रज्ञानंद के लिए वापसी कर जीत पाना और मुश्किल हो गया. दूसरा टाईब्रेकर ड्रा हुआ. मैच के ख़त्म होते तक प्रज्ञानंदा के पास 14 मिनट और मैग्नस के पास 24:41 सेकंड बचे थे. दोनों ने हाथ मिलाया. मैच ख़त्म होने के बाद दोनों खड़े हुए और थोड़ी चर्चा भी हुई. क्या बात हुई, ये शायद भविष्य में पता चले.
प्रज्ञानंद और मैग्नस कार्लसन के बीच वर्ल्ड कप फाइनल से पहले 19 मुकाबले हुए. जिनमें कार्लसन ने 8 बार जीत हासिल की, प्रज्ञानंद 5 बार जीते और 6 मैच ड्रॉ रहे.
कौन हैं रमेशबाबू प्रज्ञानंद?महज 3 साल की उम्र में चेन्नई के इस लड़के ने शतरंज खेलना शुरु कर दिया था. चेस बोर्ड क्यों मिला जानते हैं? क्योंकि वो अपनी बहन वैशाली का गेम खराब करते थे. यानी उन्हें परेशान करते थे. वैशाली प्रैक्टिस करतीं, तो प्राग (घर का नाम) उनका बोर्ड खराब कर देते. इसके बाद प्राग को भी तीन साल की उम्र में चेस बोर्ड दे दिया गया. छोटे भाई ने बहन को देखते-देखते शतरंज की बारीकियां सीखीं. चार साल बाद सिर्फ 7 साल की उम्र में उन्होंने वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीत ली. उन्हें मास्टर का टाइटल मिला. 10 साल के हुए तो इंटरनेशनल मास्टर बने, 12 साल में ग्रैंड मास्टर. उस समय इस उम्र में ये कारनामा करने वाले वो दूसरे सबसे कम उम्र के शतरंज खिलाड़ी बने थे. उम्र जब 14 साल पहुंची तो Elo Rating System में उनके नंबर 2600 तक पहुंच गए, वो भी उस समय एक रिकॉर्ड था.
प्रज्ञानंद के कोच आरबी रमेश अक्सर एक लाइन कहते हैं, ‘प्राग जैसा बनो.’. लेकिन प्राग जैसा बनना आसान नहीं, वो ऐसा क्यों कहते हैं, ये भी बता देते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अमित कामथ की रिपोर्ट के मुताबिक रमेश बताते हैं कि प्राग वीडियो गेम, सोशल मीडिया और पार्टी के लिए समय नहीं लगाता. उसने शतरंज पर फोकस करने के लिए इन चीजों से दूर रहने का फैसला किया है.
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