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2 नवंबर, 1984: सज्जन कुमार भीड़ से कह रहा था- एक भी सिख नहीं बचना चाहिए

पुलिस पोस्ट के प्रभारी ने भीड़ से पूछा, कितने मुर्गे भून दिए.

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इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले अंगरक्षक दो ही थे. लेकिन एक पूरी कौम को उसकी सज़ा दी गई. (फोटोःइंडिया टुडे आर्काइव)
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17 दिसंबर 2018 (Updated: 17 दिसंबर 2018, 02:43 IST)
Updated: 17 दिसंबर 2018 02:43 IST
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17 दिसंबर, 2018. 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद की सज़ा हुई है.
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले से पहले 2013 में ट्रायल कोर्ट ने सज्जन को बरी कर दिया था. ये केस ट्रायल कोर्ट तक कैसे पहुंचा और ट्रायल कोर्ट ने किस आधार पर सज्जन कुमार को बरी किया, ये पूरे ब्योरे में जानिए.


25 मार्च, 1985 को दलजीत कौर के बयान पर दिल्ली पुलिस ने पांच चार्जशीट दाखिल की. इसके बाद कई जांच समितियां बनीं. कई कमिशन बने. इनका मकसद था इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ भड़की हिंसा की जांच करना. ये पता करना कि हिंसा कैसे भड़की, क्या हालात थे जिनकी वजह से भड़की.
दंगों में घायल सिख. किस्मत वाले ही चोटों सहित ज़िंदा बच पाए. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)
दंगों में घायल सिख. किस्मत वाले ही चोटों सहित ज़िंदा बच पाए. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)


शुरुआती शिकायतों से जस्टिस रंगनाथ कमिटी तक वेद मारवाह की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनी- मारवाह कमिटी. इसने पीड़ितों के बयान दर्ज़ किए. उन पुलिसवालों के भी स्टेटमेंट रेकॉर्ड किए, जिनपर हिंसा में शामिल होने या सब देखते हुए कुछ न करने का इल्जाम था. इससे पहले कि समिति अपना काम पूरा करती, केंद्र सरकार ने एक सदस्यीय जांच आयोग गठित कर दिया. इसमें थे जस्टिस रंगनाथ मिश्रा. मारवाह कमिटि ने जितने बयान दर्ज किए थे, वो इस जस्टिस रंगनाथ समिति को सौंपे जाने थे. मगर ऐसा हुआ नहीं.
7 सितंबर, 1985 को जगदीश कौर ने जस्टिस रंगनाथ कमिटी के आगे एक हलफनामा दिया. उन्होंने बताया कि 1 नवंबर, 1984 को उनके पति और बेटे को भीड़ ने मार डाला था. उन्होंने बलवान खोखर का नाम लिया. कहा, वो उनके पति और बेटे की हत्या में शामिल था. जगदीश कौर ने कैप्टन (रिटायर्ड) भागमल और गिरिधारी लाल का भी नाम लिया था. कहा कि जिस भीड़ ने उनके तीन चचेरे भाइयों की हत्या की, उसमें भागमल और गिरिधारी भी शामिल थे. 'पुलिस और प्रॉसिक्यूशन की मिलीभगत' 1986 में जब ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चला, तो सारे लोग बरी हो गए. मगर ये सब दिल्ली पुलिस और अभियोजन पक्ष की मिली-भगत से हुआ. 1992 में जैन-अग्रवाल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में आगे की जांच करने की सिफारिश की. जिन मामलों की जांच की सिफारिश की गई थी, वो थे- जसबीर सिंह के घर पर हमला और खेहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, नरेंदर पाल सिंह, रघुविंदर सिंह और कुलदीप सिंह की हत्याओं के मामले.
नानावटी कमिशन मई 2000 को जस्टिस नानावटी कमिशन का गठन हुआ. आयोग ने 9 फरवरी, 2005 को अपनी रिपोर्ट जमा की. जगदीश कौर, निरप्रीत कौर (निर्मल सिंह की बेटी) और संपूरण कौर (निर्मल सिंह की पत्नी) ने भी आयोग के आगे अपने बयान दर्ज़ करवाए. नानावटी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सज्जन कुमार के बारे में लिखा-
कई चश्मदीद गवाहों ने पालम कॉलोनी, तिलक विहार, राज नगर जैसे इलाकों में हुए दंगों में सज्जन कुमार, बलवान खोखर, प्रताप सिंह, महा सिंह और मोहिंदर सिंह की भूमिकाओं के बारे में गवाही दी है. ऐसा बताया गया है कि सज्जन कुमार, बलवान खोखर और कई और कांग्रेस नेता भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे. पुलिस ने इन लोगों के खिलाफ गवाहों और पीड़ितों के बयान तक दर्ज नहीं किए. बल्कि पुलिस ने नुकसान की शिकायतों रिकॉर्ड कीं. ये जांच कमिशन मानती है कि सज्जन कुमार और बलवान खोखर शायद इस दंगे में उसी तरह शामिल थे, जैसा कि गवाहों ने बताया है. ये बात दर्ज करने के लिए विश्वसनीय चीजें मौजूद हैं. कमिशन सरकार से ये सिफारिश करती है कि सज्जन कुमार के खिलाफ उन मामलों की जांच की जाए, जिनमें गवाहों ने खासतौर पर सज्जन कुमार का नाम लिया है मगर इसके बावजूद सज्जन कुमार पर कोई चार्जशीट दाखिल नहीं हुई. और इस तरह इन मामलों को अनट्रेस्ड बता दिया गया.
दंगाई मौकापरस्त भी थे. वो दुकानें जलाने के पहले लूट लेते थे. (फोटोःइंडिया टुडे आर्काइव)
दंगाई मौकापरस्त भी थे. वो दुकानें जलाने के पहले लूट लेते थे. (फोटोःइंडिया टुडे आर्काइव)


सरकार ने कहा, न्याय दिलाने की हरमुमकिन कोशिश करेंगे 10 अगस्त, 2005 को लोकसभा में और 11 अगस्त, 2005 को राज्यसभा में, केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि नानावटी आयोग ने जहां भी किसी इंसान का नाम लिया है और कहा है कि उनपर लगाए गए आरोपों की जांच होनी चाहिए या, वहां सरकार हरमुमकिन कोशिश करेगी कि ऐसा हो. नानवटी आयोग ने सज्जन कुमार के अलावा जगदीश टाइटलर और धरम दास शास्त्री के खिलाफ भी जांच कराए जाने की सिफारिश की थी. CBI ने अपनी चार्जशीट में क्या लिखा? 13 जनवरी, 2010 को CBI ने इस मामले में अपनी चार्जशीट दाखिल की. इसमें एजेंसी ने उन पुराने मामलों का भी ब्योरा दिया, जिनमें आरोपी बरी हो गए थे. इस चार्जशीट में भी सज्जन कुमार का ज़िक्र था. लिखा था-
कई गवाहों ने सज्जन कुमार के शामिल होने की बात कही है. पालम कॉलोनी के राज नगर में रहने वाली जगदीश कौर, सुदर्शन सिंह और बाकी कई लोगों ने सज्जन कुमार और बलवान खोखर के दंगों में शामिल होने की बात कही है. राज नगर में रहने वाली जगदीश कौर ने बताया कि उन्होंने सज्जन कुमार को लोगों से कहते सुना था- सिख एक नहीं बचना चाहिए, जो हिंदू भाई उनको शरण देता है उसका घर भी जला दो और उसको भी मारो. राज नगर के ही जसबीर सिंह ने भी सज्जन कुमार और बलवान खोखर की मिलीभगत के बारे में बताया है. उनका कहना है कि वो तो इनके खिलाफ शिकायत भी दर्ज करवाने गए थे, मगर पुलिस ने उनकी शिकायत लिखी नहीं. सज्जन कुमार का ट्रायल ही नहीं किया गया.
1984 के सिख विरोधी दंगों की ये तस्वीर दिल्ली की है. वही दिल्ली, जहां सिख बंटवारे के बाद आकर बसे थे. ये सोचकर कि सुरक्षित रहेंगे. (फोटोःइंडिया टुडे आर्काइव)
1984 के सिख विरोधी दंगों की ये तस्वीर दिल्ली की है. वही दिल्ली, जहां सिख बंटवारे के बाद आकर बसे थे. ये सोचकर कि सुरक्षित रहेंगे. (फोटोःइंडिया टुडे आर्काइव)


सज्जन कुमार पर क्या आरोप लगाए? चार्जशीट में बताया गया कि कैसे भीड़ जमा हुई. कैसे उन्होंने सिखों के घरों और गाड़ियों को फूंका. इसमें खेहर सिंह और उनके बेटे गुरदीप सिंह की हत्या भी दर्ज थी. निर्मल सिंह की हत्या का भी ज़िक्र था. और भी कई मामले दर्ज़ थे इसमें. इसमें CBI ने बताया था कि सज्जन कुमार ने राज नगर में भीड़ के आगे उकसाने वाला भाषण दिया. उन्हें सिखों के खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया. इलाके में हिंदुओं और सिखों के बीच सांप्रदायिक नफ़रत पैदा की. उनके बीच की शांति खराब की. ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा? 24 मई, 2010 को ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय किए. गवाहों से सवाल-जवाब चला. CrPC के सेक्शन 313 के तहत आरोपियों के बयान दर्ज किए गए. 30 अप्रैल, 2013 को ट्रायल कोर्ट का फैसला आया. इसमें पुलिस के खिलाफ सख्त टिप्पणियां थीं. कहा गया था कि पुलिस ने अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं की. ये भी लिखा गया कि कायदे से हर घटना की अलग FIR दर्ज की जानी चाहिए थी. मगर ऐसा न करके सारी शिकायतों को FIR नंबर 416/1984 में क्लब कर दिया गया. ये FIR 4 नवंबर, 1984 को दिल्ली कैंट थाने में दर्ज की गई थी. इस जजमेंट में एक घटना का ज़िक्र था-
पुलिस के इरादे उस रिपोर्ट से साफ होते हैं, जिसे जगदीश कौर ने लिखवाया था. इसमें उन्होंने अपने घर के नुकसान की अनुमानित कीमत बताई है. घर को हुए नुकसान की कीमत 45,000 कही गई है और घर के अंदर रखे सामान में 1,25,000 रुपये की कीमत बताई गई है. ऐसा लगता है कि पुलिस ने पीड़ितों को राज़ी कर लिया था कि उनके परिवार के जो लोग मारे गए, वो उनके लिए मुआवज़ा पाने और इसके लिए मोल-तोल करने का मौका हैं. ये भी मिसाल है कि पुलिस ने कुछ नहीं किया.
ये जिन जगदीश कौर का नाम लिया गया था, उनके पति और बेटे की भीड़ ने हत्या कर दी थी. 3 नवंबर, 1984 को जगदीश कौर ने खुद अपने पति और बेटे का अंतिम संस्कार किया. घर में जो भी फर्नीचर था, जो भी सामान था, उनसे चिता बनाई. खुद ही फिर उनको आग दी. ट्रायल कोर्ट की आपत्तियां ट्रायल कोर्ट ने सज्जन कुमार की भूमिका पर गवाहों द्वारा कही जा रही कई बातों पर शुबहा जताया था. फिर चाहे वो जगदीश कौर का बयान हो कि जगशेर सिंह का बयान. कोर्ट ने कहा कि जगशेर सिंह ने वारदात के 23 साल बाद जाकर सज्जन कुमार का नाम लिया. इसीलिए सज्जन कुमार के बारे में कही गई उनकी बातों पर संशय है. ट्रायल कोर्ट ने निरप्रीत कौर के सज्जन कुमार का नाम लेने की बात पर भी टिप्पणी की. कहा कि निरप्रीत ने भी काफी बाद में जाकर सज्जन का नाम लिया. 2007 के करीब. 1985 में जब निरप्रीत का शुरुआती बयान लिया गया था, तब उन्होंने सज्जन का नाम नहीं लिया था. ट्रायल कोर्ट ने कैसे किया बरी? ट्रायल कोर्ट ने ये भी कहा कि साज़िश रचने और उकसाने के अलावा सज्जन कुमार के ऊपर और कोई आरोप नहीं लगा. यहां तक कि नानावटी कमिशन के आगे दिए गए अपने हलफनामे में भी निरप्रीत कौर ने सज्जन कुमार का नाम नहीं लिया था. इसी आधार पर कोर्ट ने निरप्रीत की वो बात मानने से इनकार कर दिया, जिसमें निरप्रीत ने कहा था कि उन्होंने सज्जन कुमार को एक भीड़ के आगे खड़े होकर भड़काऊ भाषण देते हुए सुना था. इन्हीं आधारों पर ट्रायल कोर्ट ने सज्जन कुमार को बरी कर दिया था. जबकि बलवान खोखर और किशन खोखर को दोषी मानते हुए सजा सुनाई. इस फैसले को चुनौती दी गई. सज्जन कुमार को बरी किए जाने के डिसिज़न को चैलेंज किया गया. फिर ये केस पहुंचा दिल्ली हाई कोर्ट. जहां 17 दिसंबर, 2018 को सज्जन कुमार को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई. अदालत ने सज़ा का ऐलान करते हुए कहा-
ये एक असाधारण केस था, जहां सामान्य परिस्थितियों में सज्जन कुमार के खिलाफ आगे बढ़ पाना नामुमकिन होता. क्योंकि सज्जन कुमार के खिलाफ उठे मामलों को दबाने की बड़े स्तर पर कोशिश की गई. FIR तक दर्ज नहीं की गई. दर्ज की भी गईं, तो उनकी जांच ठीक से नहीं हुई. जहां जांच थोड़ी आगे बढ़ी, वहां भी जांच किसी वाजिब नतीजे पर नहीं पहुंची. चार्जशीट तक फाइल नहीं हुई. दिल्ली और बाकी भारत में 1 नवंबर, 1984 से 4 नवंबर, 1984 के बीच हुआ सिखों का नरसंहार राजनीति से जुड़े लोगों द्वारा रचा-बुना गया था. इसमें उनका साथ दिया उन संस्थाओं ने, जिनपर कानून का पालन करवाने का जिम्मा है. ये मानवता के खिलाफ किया गया अपराध था.



कांग्रेस नेता सज्जन कुमार समेत 4 दोषियों को सिख दंगे में सजा मिली है

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